प्रतिबिम्ब

शेर सिंह साहित्यकार   संस्मरण -गतांक से आगे… मेरी शंका का निवारण हो गया था। भारत अपने धर्म, रीति-रिवाज, संस्कृति, संस्कार, आस्था-विश्वास के लिए जाना जाता है। अयप्पा मंदिर या अयप्पा स्वामी केरल के सबरीमाला में स्थित आस्था का ऐसा ही केंद्र है। दक्षिण भारत के राज्यों में इस मंदिर और अयप्पा स्वामी का व्यापक प्रभाव

श्रद्धांजलि नामवर सिंह (जन्म : 28 जुलाई 1926, निधन : 19 फरवरी 2019) हिंदी के शीर्षस्थ शोधकार-समालोचक, निबंधकार तथा मूर्धन्य सांस्कृतिक-ऐतिहासिक उपन्यास लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी के प्रिय शिष्य रहे। अत्यधिक अध्ययनशील तथा विचारक प्रकृति के नामवर सिंह हिंदी में अपभ्रंश साहित्य से आरंभ कर निरंतर समसामयिक साहित्य से जुड़े हुए आधुनिक अर्थ में विशुद्ध

शेर सिंह  साहित्यकार संस्मरण -गतांक से आगे… ऐसे ही हुलिए में उसने वॉशरूम को यूज किया। दुआ-सलाम के बाद मैं उसको ध्यान से देखने लगा। काला कुर्ता-काला पजामा। माथे पर सफेद चंदन का टीका और बढ़ी हुई दाढ़ी। लेकिन पैरों में कुछ नहीं! बिल्कुल नंगे! नंगे पैरों के साथ ही उसने यूरिनल का उपयोग किया

मेरी किताब के अंश : सीधे लेखक से किस्त :11 ऐसे समय में जबकि अखबारों में साहित्य के दर्शन सिमटते जा रहे हैं, ‘दिव्य हिमाचल’ ने साहित्यिक सरोकार के लिए एक नई सीरीज शुरू की है। लेखक क्यों रचना करता है, उसकी मूल भावना क्या रहती है, संवेदना की गागर में उसका सागर क्या है, साहित्य में उसका

रमेश चंद्र ‘मस्ताना’ साहित्यकार लेखन एवं पठन-पाठन का साहित्य के साथ एक अटूट एवं गहन रिश्ता है और साहित्य सच्चे अर्थों में वही सार्थक है, जिसमें ‘हितेन सह सहितम्’ की भावना निहित हो। साहित्य लेखन का संबंध जहां सीधा समाज से जुड़ा हुआ होता है, वहां वह पाठक अथवा श्रोता के साथ सीधा संवाद स्थापित

शेर सिंह साहित्यकार कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम किसी विषय के प्रति बहुत उत्सुक और जिज्ञासु हो जाते हैं जिसके बारे में हम थोड़ी बहुत जानकारी रखते हैं। या उस विषय के बारे में अधिक तो नहीं, लेकिन कुछ न कुछ जानते अवश्य हैं। परंतु होता यह है कि उसके बारे में अधिक

बजट मुशायरा नहीं है, लेकिन शायरी से लबरेज बजट की तासीर देखिए ‘छू न सकूं आसमां, तो न सही। आपके दिलों को छू जाऊं, बस इतनी सी तमन्ना है।’ सोचता हूं हिमाचल के बजट में शेर न होते तो आर्थिकी के आंकड़े कितने खामोश होते। ठीक इसी तरह कवि की पंक्तियां अब पुस्तकालय को कारागार

मेरी किताब के अंश : सीधे लेखक से किस्त : 10 ऐसे समय में जबकि अखबारों में साहित्य के दर्शन सिमटते जा रहे हैं, ‘दिव्य हिमाचल’ ने साहित्यिक सरोकार के लिए एक नई सीरीज शुरू की है। लेखक क्यों रचना करता है, उसकी मूल भावना क्या रहती है, संवेदना की गागर में उसका सागर क्या है,

उम्मीद के आगे सच होने की मंशा मानव मन की कमजोरी भी है और अंतहीन मजबूती भी। जो महज दिखता है, उस किताब के पन्नों को पलटते हुए उस सत्य तक अपने शब्दों को पनाह देना ही भाव संचार को जिंदा रखता है। यह लिखित संचारण आदिमयत की अलिखित भूख भी है और मानवीय सपनों