संपादकीय

देश की राजधानी दिल्ली के वायुमंडल में आजकल धुआं-धुआं सा है। अक्तूबर माह के बाद का यह रूटीन हो गया है। यह सर्दियों का कोहरा या कुहासा नहीं, बल्कि प्रदूषण है। दिल्ली एक गैस चैंबर बन चुकी है, अदालतों की ऐसी टिप्पणियां हम सुन चुके हैं, लेकिन कोई उपाय नहीं, जागरूकता नहीं, प्रयास नहीं। सुप्रीम

मूड बदलते चुनाव ने अपना दाना चुन लिया। वादों की खीर कड़वी नहीं होती, लेकिन आर्थिक यथार्थ की सफेदी दिखाई नहीं देती, इसलिए हिमाचल की नजर हुए दृष्टिपत्र और घोषणा पत्र ने कमजोर आर्थिकी का हवाला हल्का कर दिया। क्या चुनाव में खुशियों के दीप इस तरह जलेंगे कि सरकारी खजाने की सारी चमक बह

बुधवार आठ नवंबर को नोटबंदी की बरसी भी है और सालगिरह भी है। बरसी उनके लिए है, जो नोटबंदी के एक साल पूरा होने पर मातम मनाएंगे, प्रधानमंत्री मोदी के पुतले जलाएंगे और काला दिन के तौर पर अभियान चलाएंगे। ऐसे राजनीतिक दल नोटबंदी को ‘तालाबंदी’ करार देते हैं और आर्थिक विकास दर दो फीसदी

खामोश हिमाचल की छाती पर प्रचार के मूंग दलती पार्टियों की चीख निकल गई, लेकिन मतदाता टस से मस नहीं हुआ। यही इस चुनाव की खासियत और लोकतांत्रिक आस्था की विजय है कि जनता ने केंद्र और हिमाचल के सत्ता पक्षों का गुरूर निकाल दिया। न एक पक्ष के दावे झलकते हैं और न ही

हरियाणा के स्वास्थ्य एवं खेल मंत्री अनिल विज ने विवादास्पद बयान दिया है कि 100 कुत्ते मिलकर भी एक शेर का मुकाबला नहीं कर सकते। बयान गुजरात चुनाव के संदर्भ में दिया गया है। कौन ‘शेर’ है और किन्हें ‘कुत्ते’ माना गया है, मंत्री का आशय स्पष्ट है और इनकी व्यंजना हम पाठकों के विवेक

हिमाचल प्रदेश की खोखा पोलिटिक्स को पहली बार चुनौती देने के लिए सोशल मीडिया से अनुबंध करती राजनीति का नया अवतार जाहिर हुआ है। खोखा राजनीति यानी संकीर्णता से सिद्ध होती सियासत ने आज तक नेताओं की चाकरी में कार्यकर्ता और मतदाता को जिस भ्रम में रखा, उसके विपरीत वर्तमान चुनाव के सीधे आक्षेप सामने

मुद्दा सरदार पटेल का नहीं है। ‘सरदार’ के महात्म्य और ऐतिहासिकता को याद करने का भी आज मौका नहीं है। सरदार पटेल और पटेल वोट बैंक दोनों ही समानार्थी प्रतीत होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। गुजरात में आज का पटेल ‘हार्दिक’ है, ‘सरदार’ के सामने जिसका अस्तित्व और व्यक्तित्व बेहद बौना है। क्या गुजरात

चुनावी हसरतों के ताबूत पर लेटी आक्रामकता हिमाचल के स्वभाव और चरित्र को रेहड़ी लगाकर बेच रही है। मुद्दों का निरंकुश या राक्षसी हो जाना अब इस बात का साक्षी है कि युद्धक्षेत्र में जनता खामोश है। यह हकीकत है कि पक्ष-विपक्ष की दीवारों पर मतदाता का चुनावी खुमार चढ़ने से परहेज कर रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी फोन पर गुजरात के चुनावी बूथ कार्यकर्ताओं से बात कर रहे हैं। उनसे माहौल का जायजा ले रहे हैं और चुनाव में जुटने को प्रोत्साहित कर रहे हैं। इन संवादों में प्रधानमंत्री ने जीएसटी को एक ‘गलत फैसला’ माना है, लेकिन वह सवाल भी कर रहे हैं कि क्या  इसी आधार पर हिंदू