संपादकीय

गटर में तालीम का बटुआ गुम है और इधर हम देश की बुनियाद को खोज रहे हैं। नाहन में बच्चे न तो पक्के घड़े की तरह थे कि गुरुजन अपना मनोरंजन करते हुए बेखबर हो जाते और न ही रोबोट थे कि एक बार शुरू होते तो काम कर जाते। हिमाचल में प्राथमिक शिक्षा के

चुनाव की तारीखी घोषणा ने हिमाचल को पुनः मतदाता के जागरूकता कक्ष में पहुंचा दिया। हालांकि चुनाव में कूदी राजनीति काफी समय से प्रतिस्पर्धा से आगबबूला थी, लेकिन अब रणनीतिक खुलासों में जनता के आगे शीर्षासन होगा। चुनाव आयोग ने भले ही गुजरात से अलहदा करके हिमाचल में पहले घोषणा की, लेकिन आचार संहिता के

त्रिपुरा के राज्यपाल तथागत रॉय की टिप्पणी है कि आज दही-हांडी और पटाखों पर पाबंदी लगाई गई है, तो कल चिता जलाने पर भी पाबंदी लगाई जा सकती है। यदि दिवाली के मौके पर सिर्फ दिल्ली-एनसीआर में ही पटाखों की बिक्री के संदर्भ में एक राज्यपाल को अपनी संवैधानिक मर्यादा लांघनी पड़ी है, तो मुद्दा

हिमाचल में चुनाव की सरकती तारीख ने नैतिक-अनैतिक के बीच अंतर करना छोड़ दिया है और ऐसा प्रतीत होने लगा है कि सारी भुजाएं इस प्रदेश की हकदार हैं। मंत्रिमंडल की बैठकों में निरूपित उद्देश्यों का सौहार्द कितना भी नरम हो, लेकिन इस सद्भावना का यथार्थ केवल चुनावी घंटियां ही बजा रहा है। इसमें आश्चर्य

बेशक उत्तर प्रदेश में भाजपा को 325 सीटों का जनादेश हासिल हुआ और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने। अभी सरकार बने मात्र छह माह ही हुए हैं, लिहाजा कोई गंभीर सवाल नहीं, कोई संदेह या आशंकाएं भी नहीं, लेकिन महत्त्वपूर्ण बदलाव के संकेत तो दिखाई देने चाहिए। सड़कों के जानलेवा गड्ढे तो भरे जाएं। शिक्षा में

पर्यटन  की किश्तियां यूं तो हिमाचल के तट को छूने लगी हैं, लेकिन संभावनाओं का प्रवाह रुक सा गया है। ऐसे में जब कभी पर्यटन खुद एक नई परिभाषा में लिपट कर प्रस्तुत होता है, तो आशाओं के कदम भी शामिल होते हैं। ऐसा ही एक पर्यटन करवाचौथ बनकर शिमला के रिज पर घूमता है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने कुछ सर्वे कराए थे, जिनके निष्कर्ष हैं कि सामान्य अर्थव्यवस्था डूब रही है। कारोबार करने की भावनाएं और हौसले पस्त हो रहे हैं। मुद्रा-स्फीति बढ़ोतरी की ओर है और आर्थिक विकास दर फिसल रही है। सर्वे से ही आकलन सामने आया है कि 2017-18 के दौरान औसत विकास दर करीब 6.7

हिमाचल में उम्मीदों से भारी उम्मीदवारी को देखते हुए चुनाव की रेंज का हिसाब लगाया जा सकता है। राजनीतिक आरोहण में मुद्दों का हिसाब जो भी होगा, लेकिन इससे पहले टिकट खिड़की पर हिमाचली आचरण कतार में लगा है। यह दीगर है कि सियासी पहेलियों में प्रमुख पार्टियों का अभिप्राय अभी पर्दे में है, फिर

प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार अपने गांव में लौटे नरेंद्र मोदी…उसी गांव में पले-बढ़े और प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे…जिस स्कूल में मोदी पढ़े थे, उस स्कूल के बच्चे भी प्रधानमंत्री से खुद को जोड़ कर एक सपना पालने लगे हैं-मोदी की तरह बड़ा और महान बनने का ! प्रधानमंत्री ने स्कूल के गेट