अधूरी नींद का भारी नुक्‍सान

By: Jan 29th, 2017 12:08 am

अधिकांश लोग  नींद को आलस्य का पर्याय और प्रगति के रास्ते में बड़ी बाधा मानते हैं। नींद के प्रति इस रवैये के कारण ही हमारी नींद के घंटे घट रहे हैं। शोध बताते हैं कि 50 साल पहले आमतौर पर लोग आठ घंटे की नींद लेते थे, लेकिन अब यह घटकर औसतन 6.5 घंटे हो गई है। इसके कारण हमारा स्वास्थ्य तो प्रभावित हो ही रहा है, आर्थिक दृष्टि से भी हम बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं…

आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य को आयुर्वेद अच्छे स्वास्थ्य का आधार मानता है। सफल जीवन और बेहतर स्वास्थ्य एक हद तक अच्छी नींद पर भी निर्भर करता है, लेकिन न जाने क्यों नींद के मामले को हम बहुत हल्के में लेते हैं। अधिकांश लोग तो नींद को आलस्य का पर्याय और प्रगति के रास्ते में बाधा मानते हैं। नींद के प्रति इस रवैये के कारण ही हमारी नींद के घंटे घट रहे हैं। शोध बताते हैं कि 50 साल पहले आमतौर पर लोग आठ घंटे की नींद लेते थे, लेकिन अब यह घटकर औसतन 6.5 घंटे हो गई है। इसके कारण हमारा स्वास्थ्य तो प्रभावित हो ही रहा है, आर्थिक दृष्टि से भी हम बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते। नींद के दौरान हमारा दिमाग दिन भर के कामों और यादों को व्यवस्थित करता है और शरीर कुछ अंदरूनी मरम्मत का काम भी करता है। नींद कल लेने या कम आने से इस महत्त्वपूर्ण कार्य में बाधा पड़ती है। अच्छी नींद स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद होती है। अगर आप भरपूर नींद लेते हैं तो कई बीमारियों से दूर रहते हैं, लेकिन अगर आपको भरपूर नींद नहीं आती है तो कई बीमारियां होना शुरू हो जाती हैं। नींद न आने के कारण शरीर उतना फुर्तीला और ऊर्जावान नहीं रहता है। अच्छी नींद न आने से दिनभर सिरदर्द, मन न लगना, थकान लगने जैसी समस्याएं होती हैं। नींद न आने की मुख्य वजह व्यस्त, दिनचर्या और असंतुलित खान-पान होता है। नींद से जुड़ी गलत धारणा यह भी है कि किसी भी समय भरपूर नींद ले लेने से शरीर को आराम मिल जाता है। हमेशा से यह माना जाता था कि शरीर की जैविक घड़ी रात में काम के हिसाब से खुद को अभ्यस्त कर लेती है, लेकिन कई सारे अध्ययन बताते हैं कि ऐसा नहीं है। जो लोग रात में लंबे समय तक काम करते हैं, उनको टाइप 2 डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर का गंभीर खतरा होता है। जैविक घड़ी की सक्रियता में उतार-चढ़ाव के कारण आधी रात को चॉकलेट खाने से शुगर और फैट दिन के मुकाबले कहीं देर तक खून में  बने रहते हैं। खून में शुगर की अधिक मात्रा से टाइप- 2 डायबिटीज होता है और फैट का स्तर बढ़ने से दिल का रोग होता है। इसी कारण, रात की पाली में काम करने वालों में दिल के रोग का खतरा डेढ़ गुना ज्यादा होता है। रात में काम करने वालों में मोटापे का भी यही कारण है। दरअसल, यह सारी पेचीदगी जैविक घड़ी से जुड़ी है। शरीर एक खास समय पर ही खास तरह की सक्रियता दिखाता है। हमारे मस्तिष्क में कुछ हजार ऐसी कोशिकाएं होती हैं, जहां हमारे शरीर की मुख्य जैविक घड़ी होती है। कब सोना है, कब जगना है या भोजन पचाने के लिए लिवर को कब एंजाइम पैदा करना है, जैविक घड़ी इन सबको नियंत्रित करती है। यह घड़ी हमारे दिल की धड़कन को भी नियंत्रित करती है, यह सुबह धड़कन को तेज और शाम को सुस्त करती है। इसी कारण रात के खाने का दुष्प्रभाव शरीर पर ज्यादा पड़ता है।  जैविक घड़ी पर 20 सालों तक काम कर चुके कैंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रोफेसर माइकल हैस्टिंग्स का मानना है कि  हमारे सभी अंग खास समय पर खास काम करने के लिए पहले से तय आनुवंशिक निर्देशों के अधीन होते हैं। इसके अतिरिक्त दिन भर सक्रिय रहने के दौरान मस्तिष्क में जमा होने  वाले  ‘एनएसई’ और ‘एस-100 बी’  जैसे रसायन जमा हो जाते हैं। सोने के दौरान मस्तिष्क इनकी सफाई करता है। ठीक से नहीं सो पाने के कारण इन हानिकारक तत्त्वों का खात्मा नहीं हो पाता, जो मस्तिष्क के लिए घातक हो सकता है। नींद की कमी के कारण व्यक्ति अकेलेपन का शिकार  हो जाता है और उसमे असामाजिकता तेजी से बढ़ती है। इसका निष्कर्ष यह है कि भरपूर नींद हमारे भावनात्मक बेहतरी के लिए भी आवश्यक है। महिलाओं को भावनात्मक उठापटक और भी अधिक झेलनी पड़ती है, इसलिए उनके जीवन में संतुलित नींद की महत्ता और भी बढ़ जाती है। जैविक घड़ी के विपरीत चलने का असर केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ता, इसका व्यक्तिगत और राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक असर भी पड़ता है। रैंड यूरोप नाम की संस्था ने संतुलित नींद के अभाव के कारण पड़ने वाले आर्थिक प्रभावों का अध्ययन किया है। संस्था के अध्ययन से आंख खोलने वाले आंकड़े सामने आए हैं। अध्ययन बताते हैं कि  अमरीका में लोगों के ठीक से न सो पाने के कारण  सालाना 12 लाख काम के दिन बर्बाद हो जाते हैं। आर्थिक तौर पर देखें तो नींद के असंतुलन के कारण वार्षिक रूप से अमरीका 411 अरब डालर, जापान को 138.6 अरब डालर, जर्मनी 60 अरब डालर, ब्रिटेन, 50.2 अरब डालर और कनाडा को  21.4 अरब डालर का नुकसान होता है। ये आंकड़े बताते हैं कि नींद हमारे लिए आर्थिक दृष्टि से भी कितनी जरूरी है। और यह भी कि अच्छी नींद लेना हर दृष्टि से  फायदेमंद है।

-डा.जयप्रकाश सिंह


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