अमरीका को लेकर सतर्कता की जरूरत

By: Jan 3rd, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं )

अमरीका में ब्याज दरों के बढ़ने से इनके लिए अमरीका में ही निवेश करना लाभप्रद होगा। इनके द्वारा भारत से पूंजी निकालकर अमरीका वापस ले जाया जाएगा। बीते दिसंबर में हमारे शेयर बाजार के टूटने का यही कारण है। वर्ष 2017 में यदि फेड द्वारा तीन बार ब्याज दरों में वृद्धि की गई, तो भारत से भारी मात्रा में पूंजी का पलायन होगा। ऊपर से ट्रंप के कारण भारत से विदेशी निवेश वापस जाएगा। एच1बी वीजा पर हमारे कर्मी अमरीका को कम जाएंगे। हमारे निर्यात दबाव में आएंगे। दोनों कारण से हम दबाव में आएंगे…

अभी तक अमरीका की अर्थव्यवस्था ‘खुली’ थी यानी अमरीकी सरकार द्वारा अमरीकी कंपनियों को विदेश में निवेश करने को प्रोत्साहन दिया जा रहा था। अमरीका के केंद्रीय बैंक ‘फेड’ ने ब्याज दरें शून्यप्राय बना रखी थीं। अमरीकी कंपनियों के लिए अमरीका में ऋण लेकर भारत जैसे देशों में निवेश करना लाभप्रद था, चूंकि लिए गए ऋण पर उन्हें लगभग शून्य ब्याज देना होता था। अमरीकी सरकार विदेशों से कुशल श्रम को अपने देश में आमंत्रित कर रही थी। ये कर्मी एच1बी वीजा पर अमरीका जाकर काम करते थे। अमरीकी सरकार की सोच थी कि इन कर्मियों के प्रवेश से अमरीकी कंपनियां कुशल होंगी और अधिक लाभ कमा सकेंगी। इनसे अधिक मात्रा में कर वसूल किया जा सकेगा, जिसका उपयोग अमरीकी नागरिकों को स्वास्थ्य आदि सेवाएं उपलब्ध कराने में किया जा सकेगा। इसी कर वसूली के बल पर राष्ट्रपति ओबामा ने सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का भारी विस्तार किया है, जिसे ‘ओबामा केयर’ के नाम से जाना जाता है। रणनीति थी कि सरहद को खुला रखो और ब्याज दरों को न्यून रखो, ताकि अमरीकी कंपनियां पूरे विश्व में भ्रमण करके लाभ कमाएं। इन कंपनियों द्वारा दिए गए टैक्स से ओबामा केयर फलीभूत करो। इस रणनीति के कुछ लाभ भी दिख रहे हैं। अमरीका में बेरोजगारी दर 4.6 प्रतिशत के एक दशक के न्यूनतम स्तर पर आ गई है, लेकिन नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस रणनीति से संतुष्ट नहीं हैं। दरअसल रोजगार के ये आंकड़े ठोस नहीं हैं। अमरीका में रोजगार योग्य कर्मियों में लगभग तिहाई ने निराश होकर रोजगार ढूंढना ही बंद कर दिया है। एक ओर अमरीकी कंपनियों द्वारा एच1बी वीजा पर सस्ते भारतीय कर्मियों को रोजगार हासिल कराया जा रहा है, दूसरी ओर अमरीकी नागरिक बेरोजगार हो रहे हैं। अतः डोनाल्ड ट्रंप ने बयान दिया है कि एच1बी वीजा पर सख्ती की जाएगी।

अमरीकी कंपनियों द्वारा उत्पादन, कॉल सेंटर तथा अनुसंधान आदि का काम दूसरे देशों में कराने को हतोत्साहित किया जाएगा। अमरीकी कंपनियों को अमरीका में ही रोजगार उत्पन्न करने को प्रोत्साहित किया जाएगा। अमरीका वैश्वीकरण से पीछे हट रहा है। अमरीका का ध्यान अब अपने देश पर ज्यादा और विश्व पर कम होगा। इस दिशा परिवर्तन से भारत पर दो प्रकार से विपरीत प्रभाव पड़ेगा। तमाम अमरीकी कंपनियों ने भारत में कॉल सेंटर, रिसर्च सेंटर आदि स्थापित कर रखे हैं। वे इसे भारत में बंद करके वापस अमरीका ले जाएंगे। एच1बी वीजा पर भारतीय कर्मियों के लिए काम करना कठिन हो जाएगा। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा आयात कर में वृद्धि की जाने की संभावना है, जिससे भारतीय उद्यमों को निर्यात करने में कठिनाई आएगी। डोनाल्ड ट्रंप के आने से हमें विदेशी निवेश कम मिलेगा, हमारे कर्मी कम संख्या में अमरीका जाएंगे और हमारे निर्यात दबाव में आएंगे। अमरीकी केंद्रीय बैंक ‘फेड’ ने हमारे लिए परिस्थिति को और भी प्रतिकूल बना दिया है। दिसंबर में फेड द्वारा ब्याज दरों में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि की गई। साथ-साथ कहा गया है कि वर्ष 2017 में ब्याज दरों को तीन बार वृद्धि करने की संभावना है। अमरीका में ब्याज दरें बढ़ने से निवेशकों की प्रवृत्ति अपनी पूंजी को भारत जैसे विकासशील देशों से निकालकर वापस अमरीका ले जाने की बनेगी। वर्तमान में अमरीका में ब्याज दरें एक प्रतिशत से कम हैं, इसलिए निवेशक अमरीका में ऋण लेकर भारत सरकार द्वारा जारी बांड में निवेश कर रहे हैं, चूंकि भारत में ब्याज दरें ऊंची हैं।

अमरीका में ब्याज दरों के बढ़ने से इनके लिए अमरीका में ही निवेश करना लाभप्रद होगा। इनके द्वारा भारत से पूंजी निकालकर अमरीका वापस ले जाया जाएगा। बीते दिसंबर में हमारे शेयर बाजार के टूटने का यही कारण है। वर्ष 2017 में यदि फेड द्वारा तीन बार ब्याज दरों में वृद्धि की गई, तो भारत से भारी मात्रा में पूंजी का पलायन होगा। विदेशी निवेशक भारत से पूंजी निकाल कर अमरीका ले जाएंगे। ऊपर से ट्रंप के कारण भारत से विदेशी निवेश वापस जाएगा, चूंकि अमरीकी सरकार उन्हें वापस आने को प्रोत्साहित करेगी। एच1बी वीजा पर हमारे कर्मी अमरीका को कम जाएंगे। हमारे निर्यात दबाव में आएंगे। दोनों कारण से हम दबाव में आएंगे। इस परिस्थिति में हमें अपनी आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए। 1991 में लागू किए गए आर्थिक सुधारों के बाद हमारी रणनीति थी कि हम विदेशों से पूंजी को आकर्षित करेंगे। विदेशी निवेशक भारत में फैक्टरियां लगाएंगे। वर्तमान एनडीए सरकार इसी नीति पर चल रही है। प्रयास है कि मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत बड़ी विदेशी कंपनियों को भारत में फैक्टरियां लगाने को निमंत्रित किया जाए। एनडीए सरकार के बीते अढ़ाई वर्षों के कार्यकाल में इस दिशा में कम ही प्रगति हुई है। ट्रंप तथा फेड की ऊपर बताई गई नीतियों से परिस्थिति बदतर होगी। अतः विदेशी निवेश के पीछे भागने के स्थान पर अपनी पूंजी को देश में ही निवेश कराने पर ध्यान देना चाहिए।

नोटबंदी के समय में उद्यमियों एवं व्यापारियों को चोर के रूप में सरकार के द्वारा दर्शाया गया है। ऐसा करने से उद्यमियों का झुकाव देश के बाहर निवेश करने का बनेगा। ऐसे में हमें विदेशी पूंजी नहीं मिलेगी, चूंकि वह अमरीका को वापस जाएगी और घरेलू पूंजी भी नहीं मिलेगी क्योंकि वह यहां भयाक्रांत महसूस करेगी। अतः देश के व्यापारियों में विश्वास बनाना जरूरी है। वर्तमान में देश में वातावरण बन रहा है कि सरकारी कर्मी ईमानदार हैं और इनके द्वारा भ्रष्ट व्यापारियों को पकड़ा जा रहा है, परंतु वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। सरकारी कर्मियों की मदद से ही व्यापारी काले धंधे में लिप्त होते हैं। सरकारी कर्मी का काम है कि वह काले धंधे को राके। इनके द्वारा अपने दायित्व को निर्वाह न करने का दोष व्यापारी के ऊपर नहीं मढ़ना चाहिए। जैसे पुलिस कर्मी चोरी कराए और जनता चोर को दोष दे तो बात नहीं बनती है। इसी प्रकार सरकारी कर्मियों द्वारा कराए गए काले धंधे का दोष व्यापारी को नहीं देना चाहिए। देश में व्यापार के वातावरण को तत्काल सुधारने की आवश्यकता है। इसी क्रम में हमें निर्यातों को बढ़ाने के प्रयास छोड़कर आयात कर को बढ़ाना चाहिए और अधिकाधिक माल का घरेलू उत्पादन करना चाहिए, अन्यथा हम संकट में पड़ेंगे।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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