कट्टरपंथ के बीच जायरा वसीम

By: Jan 23rd, 2017 12:07 am

newsकुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

कश्मीर में जायरा वसिम का उदाहरण हमारे सामने हैं। उन्होंने बालीवुड फिल्म में अपने अभिनय के दम पर दर्शकों में गहरी छाप छोड़ी थी और फिल्म निर्माता व निर्देशक अमिर खान ने भी स्वीकार किया कि उनका कार्य सराहनीय था। महबूबा मुफ्ती से जब वसिम मिलीं, तो महबूबा ने घाटी की युवतियों के लिए उन्हें रोल मॉडल करार दे दिया था। इसके बाद चरमपंथियों की तरफ से जायरा पर इतना अधिक दबाव बनाया गया कि उन्हें एक टीवी साक्षात्कार में कहना पड़ा कि उन्होंने जो कुछ भी किया है, वह उसके लिए शर्मिंदा हैं…

विश्वास करना भी मुश्किल हो रहा है कि सरकार द्वारा वित्तपोषित खादी ग्रामोद्योग बोर्ड ने अपनी डायरी और कैलेंडर से बिना पीएमओ की अनुमति लिए गांधी जी की सूत कातते हुए की लोकप्रिय मुद्रा में नरेंद्र मोदी की चरखे के साथ तस्वीर को छापने का फैसला कर लिया। संभवतया निचले स्तर से किसी व्यक्ति ने ही बोर्ड को ऐसा करने की सलाह दी होगी। बोर्ड के इस फैसले को लेकर जनता में आक्रोश पैदा हो गया, जिससे अंतर्विरोध पैदा होना लाजिमी था। पीएमओ की तरफ से इस फैसले को लेकर इतनी कड़ी प्रतिक्रिया नहीं आई, जितने की अपेक्षा थी। वास्तव में बोर्ड की इस करनी को लेकर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए थी, ताकि भविष्य में ऐसे अविवेकपूर्ण कृत्य की पुनरावृत्ति न हो सके। ऐसी हरकतों के जरिए गणतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंचा रहे लोगों को कठोर दंड से सुधारा जाना चाहिए।

अभी कुछ दिन पहले ही सिनेमाघरों में राष्ट्रीय गान बजाने और उस दौरान वहां मौजूद लोगों के लिए सम्मान के साथ खड़ा होना अनिवार्य किया गया था। लोग आज भी उस निर्णय का सम्मान नहीं कर रहे हैं और राष्ट्रीय गान के दौरान ही सिनेमाघरों के दरवाजे खोलकर बाहर निकल जाते हैं। उनकी सोच होती है कि यह सरकारी आदेश है, जिसका पालन किया जाना कोई जरूरी नहीं है। शायद ये अब तक इस हकीकत को समझ नहीं पाए हैं कि राष्ट्रीय गान और ध्वज बेहद पवित्र हैं, जो कि राष्ट्रीय सम्मान और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व करते हैं। लोगों को समझना होगा कि कोई भी आदेश या कानून राष्ट्रभक्ति की भावना नहीं जगा सकता। जनता के समक्ष जब राष्ट्रीय लाभ और व्यक्तिगत लाभ का विकल्प मौजूद होता है, तो उनको निजी भावनाओं के जरिए तय करना होता है कि वह किस ओर जाना चाहते हैं। गांधी जी खुद जन भावनाओं की चेतना थे। जैसा कि मैं पहले भी लिख चुका हूं कि जब उनके कुरान के पाठ को लेकर किसी ने आपत्ति जताई थी, तो उन्होंने प्रार्थना सभाओं में जाने से इनकार कर दिया था। उसके बाद वह सभा में तभी गए, जब उनके विरोध में उतरे लोगों ने विरोध की भावना को खत्म किया। हालांकि गांधी जी को कोलकाता में भी बेहद कामयाबी मिली, जहां के मुख्यमंत्री हुसेन शाहीद सुरहावर्दी ने कांग्रेस के सत्याग्रह के जवाब में मुस्लिम लीग के एक्शन प्लान की घोषणा कर दी थी। मौन सहमति के कारण यह एक्शन प्लान हिंदुओं और सिखों के नरसंहार का कारण बना। इस पर हुई प्रतिक्रिया ने हजारों लोगों की जान ले ली। गांधी जी कोलकाता गए और लोगों को हथियार छोड़ने को कहा। तब जो प्रभावशाली लोग थे, उन्होंने भी 24 घंटों के भीतर समर्पण कर दिया था। उस समय के गवर्नर जनरल लॉर्ड माऊंटबेटन ने तब टिप्पणी की थी कि जहां सशस्त्र बलों को भी कोई बड़ी सफलता नहीं मिल पाई, वहां अकेले आदमी ने यह कर दिखाया था।

भारत तब से लेकर एक लंबा रास्ता तय कर चुका है। यहां पहले की अपेक्षा पंथनिरपेक्षता की भावना में काफी कमी आई है। पंथ के आधार पर खींची गई विभाजनकारी लकीरों से पंथनिरपेक्षता का क्षरण हुआ है। लेकिन इस स्थिति के लिए मुस्लिम बहुल आजादी के लिए अलग इस्लामिक देश की मांग करने वाली मुस्लिम लीग से ज्यादा कसूरवार कांग्रेस मानी जाएगी। पंथनिरपेक्षतावादी सिद्धांतों का अनुसरण करने वाली कांग्रेस खुद ही इनसे दूर हो रही है। कद्दावर मुस्लिम नेता मौलाना अबुल कलाम आजाद ने एक बार मुस्लिमों को चेताया था कि वे अविभाजित भारत ही मुसलमानों के लिए सुरक्षित है, क्योंकि इस स्थिति में वे कम संख्या में होने के बावजूद यह दावा कर सकते हैं कि उन्होंने आजादी के बाद देश की नियती को गढ़ने में बराबर का योगदान दिया है। लेकिन मुस्लिम तो उस समय ऊंची आशाओं पर सवार थे और उन्होंने एक कटे-फटे पाकिस्तान का पक्ष लिया। उन्हें विरासत में एक ऐसा देश मिला, जहां मुस्लिमों व अन्यों में भेदभाव होना स्वाभाविक था। वास्तव में वे गिनती में चाहे कितने भी हों, लेकिन वहां जीवन स्तर बेहद दयनीय है। वहां बलात् धर्मांतरण करवाया जा रहा है और गैर मुस्लिम लड़कियों को मुस्लिम लड़कों से शादी करनी पड़ रही है। मौलाना के कहे वचन सच साबित हो रहे हैं। दूसरी तरफ भारत में भी करीब 18 करोड़ मुस्लिमों की व्यावहारिक तौर पर शासन में कोई सुनवाई नहीं है। जैसा कि सच्चर समिति भी जता चुकी है कि उनकी स्थिति यहां दलितों से भी बदतर है। हालांकि इस चिंताजनक स्थिति के लिए मुस्लिम खुद जिम्मेदार हैं। कश्मीरी मुस्लिम तो पहले से ही ऐसे व्यवहार कर रहे हैं, जैसे कि वे आजाद हों। विलय के समय शेख अब्दुल्ला ने महाराजा हरि सिंह को समर्थन दिया था, क्योंकि उस दौरान कबायली टुकडि़यां लगातार घाटी में घुसपैठ कर रही थीं। यह अलग विषय है कि जब नई दिल्ली ने तीन विषयों-रक्षा, संचार व विदेश मामलों से बढ़कर हस्तक्षेप करने की कोशिश की, तो वह उसके विरोध में आ गए थे।

जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के कारण कश्मीरियों की आलोचना सहनी पड़ रही है, क्योंकि वे मोदी को हिंदुओं को नेता मानते हैं। वे इस बात को भूल रहे हैं कि वह भारत के प्रधानमंत्री हैं। वे मोदी के विचारों से सहमती रखते हों या नहीं, लेकिन 540 सदस्यीय लोकसभा में मोदी 282 सीटें जीतकर सत्ता में आए हैं। कश्मीर में जायरा वसिम का उदाहरण हमारे सामने हैं। उन्होंने बालीवुड फिल्म में अपने अभिनय के दम पर दर्शकों में गहरी छाप छोड़ी थी और फिल्म निर्माता व निर्देशक अमिर खान ने भी स्वीकार किया कि उनका कार्य सराहनीय था। महबूबा मुफ्ती से जब वसिम मिलीं, तो महबूबा ने घाटी की युवतियों के लिए उन्हें रोल मॉडल करार दे दिया था। इसके बाद चरमपंथियों की तरफ से जायरा पर इतना अधिक दबाव बनाया गया कि उन्हें एक टीवी साक्षात्कार में कहना पड़ा कि उन्होंने जो कुछ भी किया है, वह उसके लिए शर्मिंदा हैं। उन्हें सोशल मीडिया पर माफीनामा पोस्ट करके कहना पड़ा कि वह किसी की रोल मॉडल नहीं हैं। उनका संदेश मर्मस्पर्शी था कि लड़कियों को उनके उदाहरण का अनुकरण नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह उन्हें उन अग्निपरीक्षाओं के बारे में बता रही थीं, जिनसे उन्हें गुजरना पड़ा। इसका अर्थ हुआ कि जो लोग घाटी में अलग इस्लामिक राष्ट्र बनाने पर अड़े हैं, वे जायरा की भूमिका से संतुष्ट नहीं थे।

वे जानते हैं कि उनकी विरोधी भारतीय सेना है। लेकिन वे कश्मीरी मुस्लिमों की आजादी की मांग दर्ज करवाने के लिए लगातार लड़ रहे हैं। जब मैं कश्मीर गया था, तो तब भी वे लगातार इसके लिए प्रयासरत थे। नई दिल्ली को अलगाववादियों से बात करनी चाहिए और उन्हें समझाए कि वे भारत में रहकर ही अपनी स्वायत्तता पर विचार करें। अलगाववादी अपना पक्ष रखते हुए कह सकते हैं कि नई दिल्ली रक्षा, संचार और विदेश मामले को छोड़कर अन्य मामलों में हस्तक्षेप न करे।

 ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com 


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