खिचड़ी की खुशबू से महका नेरवा

By: Jan 15th, 2017 12:05 am

नेरवा/चौपाल – मकर संक्रांति के अवसर पर नेरवा शहर खिचड़ी की खुशबू से महक उठा। नेरवा के अधिकांश घरों में इस मौके पर खिचड़ी बनाई गई। लोगों ने अपने मित्रों, बंधू-बंधवों को आमंत्रित कर खिचड़ी की दावत दी। इस दिन साबुत उड़द की खिचड़ी खाना शुभ माना जाता है। कुछ लोग उड़द के साथ लोबिया, जिसे स्थानीय भाषा में रौंगी कहा जाता है भी खिचड़ी में डालते है। इस खिचड़ी को घी या दही के साथ परोसा जाता है। मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर लोहड़ी की भी खूब धूम रही। बच्चों ने बड़े ही हर्षोल्लास से लोहड़ी का गीत सुंदर-मुंदरिए गाकर घर-घर जाकर लोहड़ी मांगी। वहीं लोगों ने अपने घरों के बाहर लकड़ी के अलाव जलाकर विभिन्न गानों की धुनों पर अपने परिवार व मित्रों के साथ जमकर मस्ती की। अपर शिमला में मकर संक्रांति का महत्त्व तो पहले से ही माना जाता है, परंतु लोहड़ी के प्रति लोगों में विशेष आस्था नहीं है। अब समय के साथ-साथ इस त्योहार के प्रति भी लोगों का रुझान बढ़ रहा है। माना जाता है कि लोहड़ी का त्योहार मुगलों के समय से मनाया जाता है। किवंदती है कि मुगल साम्राज्य के दौरान पंजाब के भठी गांव में एक हिंदू परिवार रहता था। उसकी दो खूबसूरत बेटियां सुंदरी और मुंदरी थी। गांव के तहसीलदार नवाबखां की कुदृष्टि उन बच्चियों पर पड़ गई और उसने एलान कर दिया कि वह मकर संक्रांति के दिन इन बच्चियों को उठा लेगा। इस पर गांव वालों ने लड़कियों के बाप को गांव के दबंग सिख दुला से मदद मांगने की सलाह दी। गांव वालों की सलाह पर वह दुला के पास गया व मदद को गुहार लगाई। दुला ने उसे कहा कि संक्रांति से पहले अपनी लड़कियों के लिए योग्य वर ढूंढे, वह उनकी शादी करवा देगा। लड़कियों के लिए योग्य वर ढूंढे गए व मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर गांव के चौराहे पर लड़कियों का अलाव जला कर उन लड़कियों की शादी दुला सिख द्वारा संपन्न करवा दी गई। उसी दिन से लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है व इस दिन नन्हें-मुन्ने सुंदर-मुंदरीए हो, तेरा कौन सहारा हो, दुला भठी वाला हो, दुले धी ब्याही हो, सेर शक्कर पाई हो  गाकर घर-घर लोहड़ी मांगते है व सुंदरी-मुंदरी के साथ-साथ दुला सरदार को भी याद किया जाता है।


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