छोटे उद्योगों को टैक्स से छूट दीजिए

By: Jan 24th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं )

छोटे उद्योगों की मुख्य समस्या टैक्स दरों की है। इसे सुलझाने के बाद ही अन्य कदमों की सार्थकता है। सरकार को समझना चाहिए कि छोटे उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में अहम सार्थक भूमिका निभाते हैं। पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से भी लघु उद्योग, बड़े उद्योगों की अपेक्षा बेहतर माने जाते हैं। इनका पर्यावरण पर नकारात्मक बेहद कम है। इन्हें जीवित रखने के लिए टैक्स की दरों में छूट को बढ़ाना अनिवार्य होगा। वित्त मंत्री से अपेक्षा है कि वे छोटे उद्योगों को टैक्स में रियायत देंगे…

देश में रोजगार की स्थिति यूपीए के कार्यकाल से ही बिगड़ती आ रही है। लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2011 में नौ लाख रोजगार उत्पन्न हुए थे। 2013 में ये घटकर चार लाख रह गए। 2015 में मात्र 1,35,000 रोजगार उत्पन्न हुए। वर्तमान में रोजगार सृजन की बिगड़ती स्थिति का संकेत छोटे उद्योगों के हालात से मिल जाता है। देश में अधिकतम रोजगार छोटे उद्योगों में ही उत्पन्न होते हैं। जनवरी, 2016 में इन्हें दिए जाने वाले ऋण में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। जून, 2016 में इस रकम में 3.8 प्रतिशत की गिरावट आई है। इससे स्पष्ट है कि रोजगार की बिगड़ती स्थिति वर्तमान में भी जारी है। छोटे उद्योगों द्वारा अधिकतर कार्यों को श्रमिकों से कराया जाता है। जैसे गुड़ बनाने के छोटे कारखाने में गन्ने को मशीन में डालना, खोई को फैलाना एवं भट्ठी में झोंकना इत्यादि कार्य श्रमिकों के द्वारा कराया जाता है। चीनी मिल में ये सब कार्य मशीनों से किया जाता है। रोजगार सृजन छोटे उद्योगों का प्रथम सकारात्मक पक्ष है। इनका दूसरा गुण यह है कि ये नए उद्यमियों को टे्रनिंग देने की लैबोरेटरी होते हैं। धीरूभाई अंबानी किसी समय छोटे उद्यमी थे। यदि ये छोटे उद्यमी न बन पाते, तो ये बड़े उद्यमी भी न बन पाते।

उद्यमिता के विकास के लिए छोटे उद्योगों का जीवित रहना जरूरी है। इनका तीसरा गुण है कि ये हल्के एवं चपल होते हैं। जैसे गत्ते के डिब्बे बनाने के कारखाने को ले लें। छोटे कारखानों के लिए संभव होता है कि अलग-अलग साइज के 100-100 डिब्बे बनाकर सप्लाई कर सकें। बड़े उद्योगों में एक साइज के एक लाख डिब्बे बनते हैं। उनके लिए छोटे आर्डर सप्लाई करना कठिन होता है, परंतु छोटे उद्योग ऐसे आर्डर को मूर्त रूप देकर विकास को गति देते हैं। हां, इतना जरूर है कि छोटे उद्योगों की उत्पादन लागत ज्यादा आती है। इनके द्वारा छोटी मशीनों का उपयोग किया जाता है, जिनकी गुणवत्ता कमजोर होती है। जैसे गुड़ के कारखाने में गन्ने से लगभग सात प्रतिशत गुड़ बनाया जाता है, जबकि चीनी के कारखाने में 10 प्रतिशत चीनी बनाई जाती है।

छोटे उद्योगों को कच्चा माल कम मात्रा में खरीदना होता है। थोक खरीद की तुलना में यह महंगा पड़ता है। जैसे डिब्बे बनाने के छोटे कारखाने द्वारा कागज फुटकर बाजार से खरीदा जाता है, जबकि बड़े उद्योग कागज बनाने वाले कारखाने से बल्क में सीधे खरीद लेते हैं। छोटे उद्योग पुरानी तकनीकों का उपयोग करते हैं, इनमें कार्यरत श्रमिकों की कार्य कुशलता कम होती है, गुणवत्ता नियंत्रण के उपकरणों का अभाव रहता है। इन अनेक कारणों से छोटे उद्योगों की लागत ज्यादा आती है। छोटे उद्योगों को बाजार में बड़े उद्योगों की प्रतिस्पर्धा में सीधा छोड़ दिया जाए, तो ये बंदप्रायः हो जाएंगे। ऐसे में एक बात तो स्पष्ट है कि इनके द्वारा हो रहे रोजगार सृजन तथा उद्यमिता विकास से देश वंचित रह जाएगा।

छोटे उद्योगों के इस योगदान को देखते हुए आज तक की सरकारें इन्हें नरम दृष्टि से देखती रही हैं। वर्तमान नियमों के अनुसार 1.5 करोड़ रुपए तक का कारोबार करने वाली छोटी इकाइयों को एक्साइज ड्यूटी अदा नहीं करनी होती है। बिक्री कर में भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग स्तर की छूट इन्हें उपलब्ध है। इनके द्वारा बड़ी मात्रा में लेन-देन नकद में किया जाता है। इस पर टैक्स अदा नहीं किया जाता है। नकद में कारोबार करने तथा टैक्स में छूट के कारण छोटे उद्योग महंगा माल बनाकर भी जीवित हैं। टैक्स की इस बचत के कारण बड़े उद्योगों के सामने ये टिक पाते हैं। मसलन बड़े उद्योग द्वारा एक गत्ते के डिब्बे को 20 रुपए में बनाया जाता है, उस पर 5 रुपए का टैक्स अदा करके 25 रुपए में बेचा जाता है। छोटे उद्योग द्वारा वही डिब्बा 25 रुपए में बनाया जाता है, परंतु नकद में कारोबार करने के कारण टैक्स अदा नहीं किया जाता और 25 रुपए में ही बेच दिया जाता है। छोटे उद्योगों के जीवित रहने में नकद कारोबार की अहम भूमिका है।

नोटबंदी के बाद छोटे उद्योगों के लिए नकद में कारोबार करना कठिन होता जा रहा है। सरकार का उद्देश्य है कि देश में सभी लेन-देन बैंक के माध्यम से हों, जिससे टैक्स की चोरी बंद हो। सरकार का यह उद्देश्य स्वागत योग्य है, परंतु इसका परिणाम होगा कि छोटे उद्योगों को केवल टैक्स की दर में छूट का लाभ मिलेगा। नकद कारोबार के कारण हो रही टैक्स की बचत से ये वंचित हो जाएंगे। पूर्व में जो कारोबार नकद में लेन-देन कर रहे थे, वे आगे टैक्स के दायरे में आ जाएंगे। वे बड़े उद्योगों के सामने खड़े नहीं हो पाएंगे। इस प्रकार नोटबंदी ने छोटे उद्योगों के अस्तित्व को कठिन बना दिया है। छोटे उद्योगों को जीवित रखने लिए सरकार को जीएसटी में इन्हें भारी छूट देनी होगी। वर्तमान 1.5 करोड़ रुपए की सीमा को बढ़ाकर कम से कम पांच करोड़ रुपए करना चाहिए। तब छोटे उद्योगों पर नकद कारोबार बंद करने से टैक्स का बोझ नहीं बढ़ेगा और ये जीवित रहेंगे तथा रोजगार सृजन की सार्थक भूमिका निभाते रहेंगे। इस पृष्ठभूमि में सरकार द्वारा इनके पक्ष में उठाए जाने वाले कदमों का मूल्यांकन किया जा सकता है। छोटे उद्योगों के मंत्री कलराज मिश्र ने इस दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए चार कदम गिनाए हैं। पहला सार्वजनिक इकाइयों के लिए अनिवार्य बनाया गया है कि खरीद के एक हिस्से को छोटी इकाइयों से ही खरीदें। यह कदम सही दिशा में है, परंतु जानकार बताते हैं कि सार्वजनिक इकाइयों द्वारा इस नियम का पालन कम ही किया जाता है। अतः इस व्यवस्था को कानूनी रूप देना जरूरी है।

दूसरा कदम छोटे उद्योगों के क्लस्टर बनाने का है। एक ही प्रकार के छोटे उद्योगों के लिए किसी स्थान पर सामूहिक व्यवस्थाएं सरकार द्वारा बनाई जा रही हैं जैसे गुणवत्ता नियंत्रण की लैबोरेटरी अथवा गंदे पानी को साफ करने के संयंत्र। यह कदम भी सही दिशा में है। इससे छोटे उद्योगों की उत्पादन लागत में कुछ कमी आ जाएगी, परंतु यह ऊंट के मुंह में जीरा सरीखे हैं। टैक्स के बोझ की तुलना में क्लस्टर सुविधाओं का लाभ न्यून है। तीसरा कदम सरकार का रोजगार सृजन कार्यक्रम है। इसके अंतर्गत उद्योगों द्वारा नए श्रमिकों को देय प्राविडेंट फंड में कुछ सबसिडी दी जाती है। यह कदम भी सही दिशा में है, परंतु इस कदम की सार्थकता तब ही है, जब नए रोजगार बनाए जाएं। वर्तमान में इनके लिए पुराने स्तर पर जीवित रहना ही कठिन हो रहा है। चौथा कदम कौशल विकास का है। देश में पहले ही तमाम शिक्षित बेरोजगार हैं। आईटीआई से उत्तीर्ण युवक भी नौकरी को तरस रहे हैं। ऐसे में चार-छह सप्ताह के कौशल विकास के कोर्स की सार्थकता पर क्या विश्वास किया जाए। सरकार द्वारा उठाए गए कदम सही, परंतु अपर्याप्त हैं। छोटे उद्योगों की मुख्य समस्या टैक्स दरों की है। इसे सुलझाने के बाद ही अन्य कदमों की सार्थकता है।

सरकार को समझना चाहिए कि छोटे उद्योग देश की अर्थव्यवस्था में अहम सार्थक भूमिका निभाते हैं। पर्यावरण सुरक्षा के लिहाज से भी लघु उद्योग, बड़े उद्योगों की अपेक्षा बेहतर माने जाते हैं। इनका पर्यावरण पर नकारात्मक बेहद कम है। ऐेसे में देश, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में लघु उद्योगों को प्रोत्साहन देना सही कदम माना जाएगा। इन्हें जीवित रखने के लिए टैक्स की दरों में छूट को बढ़ाना अनिवार्य होगा। वित्त मंत्री से अपेक्षा है कि वे छोटे उद्योगों को टैक्स में रियायत देंगे।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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