जायरा का सवाल और बित्ते भर का छेद

By: Jan 28th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्रीडा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

( डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं )

सभी जानते हैं कि जायरा का माफीनामा घाटी की वर्तमान यथार्थ हालात में से निकला है। इस हालात में यह माफीनामा ही निकल सकता है और कुछ नहीं, लेकिन इस माफीनामा को जायरा की कायरता न समझ कर, उसकी बुद्धिमत्ता मानना होगा। यही कारण है कि जहां कठमुल्लों से जायरा को धमकियां मिल रही हैं, वहीं घाटी की युवा पीढ़ी से जायरा को समर्थन मिला है। दरअसल युवा पीढ़ी का समर्थन ही आश्चर्यजनक कहा जा सकता है। यह आश्चर्यजनक तो है, लेकिन यह घाटी के वर्तमान पर उगा ऐसा अंकुर है, जिसका भविष्य घाटी के आतिशी चिनारों में फूट सकता है…

आमिर खान ने एक नई फिल्म बनाई है, दंगल। दंगल हरियाणा की खिलाड़ी गीता फोगट को लेकर बनाई गई है, जिसने पिछली कॉमनवैल्थ खेलों में स्वर्ण पदक जीता था। लड़के कोई भी पदक नहीं ले सके और लड़कियों ने हिंदोस्तान की लाज रख ली। शायद इसी से प्रोत्साहित होकर आमिर खान ने दंगल फिल्म बनाई। दंगल ने धूम मचाई। लड़कियां भी गौरवान्वित हुईं। बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ आंदोलन को भी बल मिला ही होगा। आमिर खान ने फोगट के बचपन की भूमिका में कश्मीर घाटी की सोलह साल की जायरा वसीम का चयन किया। जायरा ने अपनी इस भूमिका का बखूबी निर्वाह किया और सभी की प्रशंसा अर्जित की। सभी ने कहा कि जायरा में जीवंत अभिनय की क्षमता है। अभिनय और रंगमंच ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें अपनी पहचान बनाने के लिए वर्षों मशक्कत करनी पड़ती है, लेकिन कम उम्र में जायरा की यह क्षमता खुदा की नियामत ही कही जा सकती है। जायरा ने अभिनय का यह क्षेत्र अपने माता-पिता की मर्जी से ही चुना होगा, क्योंकि फिल्म कोई एक दिन का काम तो नहीं था। शूटिंग और रिहर्सल के लिए वक्त दरकार था। सोलह साल की एक लड़की को यह सब करने के लिए केवल माता-पिता की अनुमति ही नहीं, बल्कि सक्रिय सहयोग की भी आवश्यकता है। यकीनन उसे वह सब कुछ अपने माता-पिता और अपने परिवार से मिला होगा। तभी वह दंगल में अभिनय की ऊंचाइयों को छू पाई। श्रीनगर की रहने वाली जायरा के आसपास के लोग, वहां के समाज के लोग भी जायरा के फिल्म में काम करने की बात को जानते ही होंगे।

अनुमान लगाया जा सकता है कि श्रीनगर का आम कश्मीरी इस से उत्साहित ही हो रहा होगा कि उन्हीं में से एक साधारण लड़की कितने ऊंचे मुकाम को छू रही है।  दंगल फिल्म रिलीज हो गई तो कश्मीर घाटी का युवा वर्ग जायरा को लेकर उत्साह में ही था। जायरा ने श्रीनगर का नाम चमका दिया है। यहां तक सब ठीक ठाक चलता रहा। फिर एक दिन कहीं से काले चेहरे नमूदार हुए। ये चेहरे खूंखार थे। उन्होंने एक-दूसरे की ओर देखा। फिर वे सक्रिय हो गए। वे रात के अंधेरे में चिल्लाए, एक मुसलमान लड़की यह सब कैसे कर सकती है? इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। तीस साल पहले भी वे आधी रात को लाउड स्पीकरों पर कश्मीर घाटी की गली-गली में चिल्लाए थे। वे पंडितों को कश्मीर छोड़ जाने के लिए कह रहे थे, लेकिन वटनियों यानी अपनी महिलाओं को कश्मीर में ही छोड़ देने का आदेश भी दे रहे थे। सारी रात कश्मीर घाटी खौफ और चीत्कारों से गूंजती रही थी। इस मंजर के कुछ दिनों के भीतर ही तीन लाख से भी ज्यादा हिंदू व सिख कश्मीर छोड़ कर चले गए थे। अब एक बार फिर वही खौफ पैदा किया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना ही है कि इस बार आदेश और फतवे लाउड स्पीकरों पर नहीं, बल्कि सोशल मीडिया पर दिए जा रहे हैं। इस बार निशाना जायरा है। सोलह साल की जायरा। इन खूंखार चेहरों के अपने समाज की जायरा। वह जायरा जिसने अपना सिक्का अपनी काबिलीयत से मनवाया है, लेकिन खूंखार चेहरों को डर है कि यदि घाटी का युवा वर्ग अपने निर्णय खुद लेने लगेगा, तो उनका निजाम समाप्त हो जाएगा।

इन खूंखार और काले चेहरों का निजाम लोकतंत्र और तर्क से नहीं चलता, वह तो बंदूक के भय से संचालित है। घाटी में हो रहे विस्फोटों के भय से संचालित। एके-47 से नियंत्रित। पहले चेतावनी, फिर एक्शन। सोशल मीडिया चेतावनी का पहला चरण है। ये काले और छिपे हुए चेहरे घाटी के युवा को बताएंगे कि उन्हें क्या पहनना है, क्या खाना है, क्या करना है, क्या नहीं करना है, कहां जाना है, कहां नहीं जाना है। उनका कहना है कि इस्लाम में यह सब पहले से ही तय है। उससे एक इंच दाएं नहीं, उससे एक इंच बाएं नहीं। लेकिन वे जायरा को घाटी छोड़ कर जाने के लिए नहीं कह रहे। वे उसे जाने भी नहीं देंगे। जायरा को घाटी में रह कर ही इनके निजाम के अनुसार चलना होगा, लेकिन जायरा सूबे की मुख्यमंत्री से मिली हैं। सूबे की मुख्यमंत्री लोकतंत्र के निजाम की प्रतिनिधि हैं। इन काले चेहरे वालों की नजर में लोकतंत्र का निजाम ही इनके मुल्ला निजाम का सबसे बड़ा दुश्मन है। वे जानते हैं, जायरा को अभी रोकना पड़ेगा। जायरा तो एक प्रतीक है। घाटी की युवा पीढ़ी को अभी से रोकना पड़ेगा। देरी हो गई, तो उनका बंदूक का निजाम ज्यादा देर टिक नहीं पाएगा। घाटी चाहे बर्फ से ढकी हुई है, लेकिन ये काले खूंखार चेहरे जानते हैं कि अंदर ही अंदर कसमसाहट अंगड़ाई ले रही है। यह कसमसाहट कभी भी दंगल में बदल सकती है, इसीलिए जायरा पर निशाना साधा जा रहा है। जायरा ने सोशल मीडिया में अपना माफीनामा लिख कर पेश कर दिया है। उसने कहा जो मैंने किया है, मैं उसकी भर्त्सना करती हूं। जो मैंने किया है, वह और किसी को नहीं करना चाहिए। मैं रोलमॉडल नहीं हूं। बहुत से लोग जायरा के इस माफीनामा पर आश्चर्यचकित हैं, लेकिन मुझे इसमें आश्चर्य वाली कोई बात दिखाई नहीं दे रही। जायरा बहादुर लड़की है, यह तभी पता चल गया था, जब उसने दंगल में अभिनय के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। वह जानती है कि आमिर खान द्वारा व्यक्त किए गए समर्थन से उसे कोई लाभ होने वाला नहीं है। सभी जानते हैं कि जायरा का माफीनामा घाटी की वर्तमान यथार्थ हालात में से निकला है।

इस हालात में यह माफीनामा ही निकल सकता है और कुछ नहीं, लेकिन इस माफीनामा को जायरा की कायरता न समझ कर, उसकी बुद्धिमत्ता मानना होगा। यही कारण है कि जहां कठमुल्लों से जायरा को धमकियां मिल रही हैं, वही घाटी की युवा पीढ़ी से जायरा को समर्थन मिला है। दरअसल युवा पीढ़ी का यह समर्थन ही आश्चर्यजनक कहा जा सकता है। यह आश्चर्यजनक तो है, लेकिन यह घाटी के वर्तमान पर उगा ऐसा अंकुर है, जिसका भविष्य घाटी के आतिशी चिनारों में फूट सकता है।  जायरा को युवा पीढ़ी का यह समर्थन जायरा की बहादुरी का प्रतीक है। इसके आगे उसका माफीनामा अपने आप गौण हो जाता है। बर्फ के नीचे दबे इस परिवर्तन को काले खूंखार चेहरे भी जानते हैं। यही कारण है कि वे और भी जोर से जायरा को निशाने पर ले रहे हैं। इतना तो मानना पड़ेगा कि जायरा के अभिनय और घाटी की युवा पीढ़ी से उसे मिल रहे समर्थन ने काले चेहरों के निजाम में बित्ते भर का एक छेद तो कर ही दिया है। बहुत साल पहले मैं ईरान में था। करज से तेहरान की ओर जा रहा था। रास्ते में मीलों लंबा जाम लगा हुआ था। मैं भी बस से बाहर आ गया। दो-तीन लड़के मेरे पास आए। पूछने लगे कहां के रहने वाले हो? मैंने बताया, हिंदोस्तान से हूं। मेरी दाढ़ी उन दिनों काफी लंबी थी। दाढ़ी देख कर बोले, शुमा आखुंदा ए? क्या तुम मुल्ला हो? मेरे नहीं कहने पर बोले, आखुंदा खैली बद ए। मुल्ला बहुत खराब हैं, सारा ईरान तबाह कर दिया। जायरा प्रकरण के बाद मेरा विश्वास बढ़ा है कि कश्मीर घाटी तबाह नहीं होगी, क्योंकि अब दंगल शुरू हो गया है और जायरा के साथ अनेक युवा जुड़ गए हैं।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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