दल से ज्यादा नेतृत्व मायने रखता है

By: Jan 6th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

( प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं )

आज भी कई ऐसे आलोचक हैं, जो मोदी और ट्रंप की तुलना हिटलर या तानाशाहों से करते रहते हैं, लेकिन उनकी यह आलोचना यथार्थ की कहीं दूर है। ये दोनों ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने गए हैं और संविधान के दायरे में रहते हुए ही अपने दायित्वों का निर्वहन भी करेंगे। आज जिस तरह से वक्त बदल रहा है, इन नेताओं की क्षमता ही निर्धारित करेगी कि इस वैश्विक बदलाव के साथ कदमताल करते हुए ये रुढि़वादी राजनीतिक सोच में कितना बदलाव ला पाते हैं…

वैश्विक स्तर पर एक प्रवृत्ति उभर रही है, जिसमें पार्टी की विचारधारा अथवा एजेंडे को बढ़ाने वाले नेताओं के बजाय विभिन्न देश राष्ट्रवादी सोच वाले शक्तिशाली नेताओं को नेतृत्व सौंप रहे हैं। यही वजह है कि हमें नरेंद्र मोदी, रूस को पुतिन और अब अमरीका को ट्रंप के रूप में ताकतवर नेता मिला है। हालांकि इससे पहले भी यह प्रवृत्ति क्षेत्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर छोटे रूप में देखने को मिलती रही है। परिणामस्वरूप देश के विभिन्न हिस्सों को ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और नीतीश कुमार सरीखे कद्दावर नेता मिले। हाल ही में उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ दल में शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर बाप-बेटे की कलह सार्वजनिक तौर पर सामने आ चुकी है, लेकिन आश्चर्य यह कि देश का सबसे बड़ा राज्य भी इस परंपरा से अछूता नहीं रहा है। उत्तर भारत में मुलायम सिंह यादव समाजवादी चेहरे के रूप में लंबे समय से पार्टी नेतृत्व को संभालते आ रहे हैं और एक मर्तबा तो इनका नाम प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए भी चर्चित रहा। आज जब उनके पुत्र अखिलेश यादव पार्टी के अधिकतर मामलों की कमान अपने हाथों में लेकर पार्टी की कार्य शैली को बदलने के लिए तत्पर नजर आते हैं, तो जो पार्टी अब तक धन और बाहुबल के दम पर ही सत्ता में बने रहने के लिए निर्भर थी, वह सकारात्मक बदलाव की साक्षी बनने लगी थी। अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह के ठीक विपरीत जाकर साफ-सुथरी राजनीति और विकास का एजेंडा आगे बढ़ाया। इससे पहले जो पार्टी खुद को राम मनोहर लोहिया का अनुयायी मानते हुए समाजवादी सिद्धांतों पर चलने का दम भरती रही है, उसकी सोच में उन मूल्यों की रत्ती भर झलक नहीं मिलती। लोहिया ने अपना सारा जीवन बेहद सादगी से जिया था। जब उनका निधन हुआ, तो उनके बैंक खाते में कोई बैलेंस शेष नहीं था। हां, अखिलेश ने मुलायम सिंह द्वारा खींची लीक से परे हटकर ज्यादा पारदर्शी व विकास समर्थक नीतियों को लागू किया, जिसके लिए जनता ने उनको काफी हद तक सराहा भी है। बनारस में आयोजित एक चर्चा में मैंने पाया कि आज भी अखिलेश ही उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर विश्वसनीय चेहरा हैं।

भारतीय राजनीति की त्रासदी भी यही है कि एक बार सत्ता में आ जाने के बाद कोई भी नेता इससे इस कद्र चिपक जाता है कि जब तक उसे हटाया न जाए, तब तक वह हटने का नाम ही नहीं लेता। इसी क्रम में वे युवा चेहरों को भी कभी नेतृत्व नहीं संभालने देते। साफ तौर पर मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश में पार्टी के भविष्य को ही ग्रहण लगा दिया है। इस कुनबे में कलह छिड़ने से पहले तक पार्टी राज्य में अच्छी स्थिति में दिख रही थी और अब से कुछ ही समय बाद होने वाले चुनावों में भी इसका पलड़ा बाकी दलों की अपेक्षा भारी दिख रहा था। परिवार की इस लड़ाई से पार्टी की जीत की संभावनाओं को गहरा धक्का लगा है, वहीं यह संग्राम अभी भी जारी है। यह बड़ी हस्तियों पर आधारित युद्ध है और इसमें अल्पसंख्यकों के वोट बैंक के तुष्टीकरण के अलावा दूसरा कोई एजेंडा नजर नहीं आता। अल्पमत में आ चुका मुलायम सिंह गुट चाहे जो भी करता रहे, अब अखिलेश ही पार्टी का एजेंडा निर्धारित करने में मुख्य भूमिका निभाएंगे। इसमें दो राय नहीं कि परिवार में शुरू हुआ यह झगड़ा आगामी चुनावों में पार्टी की जीत की संभावनाओं को प्रभावित करेगा, क्योंकि इससे पार्टी कार्यकताओं और मतदाताओं में अच्छा संकेत नहीं गया है। इस झगड़े में अब भाजपा को लाभ होने की भी संभावनाएं बढ़ गई हैं। अमरीका में ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने से भी यही बात स्पष्ट हुई है कि वैश्विक स्तर पर भी ताकतवर हस्तियों को सत्ता सौंपने का प्रचलन जोर पकड़ने लगा है। हालांकि एक समय तो रिपब्लिकन को भी इस नेता के सख्त बयान और व्यवहार पसंद नहीं आ रहे थे, लेकिन जब अंतिम परिणाम घोषित हुआ, तो जीत उन्हीं की हुई। टं्रप यदि अब अपने वचनों या विश्वास को अपनी शासन व्यवस्था में उतारते हैं, तो निश्चित तौर पर आतंकवाद या राष्ट्रवाद को लेकर उनकी व्यक्तिगत सोच सरकार की कार्य शैली को भी प्रभावित करेगी। दूसरी ओर ओबामा कई बार बनावटी आचरण के रास्ते पर चलते रहे।

सीरिया का ही उदाहरण ले लीजिए, जहां पुतिन मोर्चा मार गए। ओबामा रूस को कोसने की परंपरागत प्रथा को ही आगे बढ़ाते रहे, लेकिन वर्तमान में समूचा वैश्विक परिदृश्य बदल चुका है।  आज अमरीका को रूस से ज्यादा खतरा चीन और आईएसआईएस से है। अगर विश्व को बर्बर इस्लामिक संगठन के खिलाफ लड़ना है, तो हर किसी को अपने देश की सत्ता के पक्ष में खड़ा होना होगा, लेकिन ओबामा प्रशासन ने सीरिया में विद्रोहियों का पक्ष लेकर एक बड़ी गलती कर दी। हालांकि बाद में इस गलती को सुधार भी लिया गया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी और रूसी रणनीतिकार परिस्थितियों पर हावी हो चुके थे। ओबामा प्रशासन की इस भारी चूक समेत कई अन्य बड़ी गलतियों का लाभ ट्रंप को मिला। अब विश्व भर की नीतियों पर ट्रंप का असर दिखेगा। यह एक और मिसाल मानी जाएगी, जिसमें एक मजबूत नेता अपने अभियान का अनुसरण कर रहा था। डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक राजनीति में आए इस बदलाव को अच्छी तरह से भांप गए थे, इसलिए उनके बयान चीन के इर्द-गिर्द घूमते रहे या अपने समूचे चुनावी प्रचार अभियान में वह विश्व में घातक रूप धारण कर चुके आतंकी संगठनों के खात्मे के संकेत देते रहे। आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ी उथल-पुथल की संभावना बनती दिख रही है, जिसमें नेताओं का व्यक्तित्व काफी मायने रखेगा। एक बार फिर घरेलू परिदृश्य में लौटते हैं। नरेंद्र मोदी ने पार्टी एजेंडे में राम मंदिर के मुख्य एजेंडे से हटकर विकास के एजेंडे पर चलते हुए हिंदू राष्ट्र हीरो बनने के बजाय राष्ट्रीय हीरो बनने का विकल्प चुना। इसमें संदेह नहीं कि छत्रपति शिवाजी महाराज की ही तरह वह आज भी एक निष्ठावान हिंदू हैं। वह अपने धर्म में दृढ़ विश्वास रखने के साथ-साथ हर पंथ की आस्थाओं का सम्मान करते हुए संविधान के समक्ष सभी के साथ समान व्यवहार की राह पर चल रहे हैं। आने वाले समय में भी ‘सबका साथ, सबका विकास’ का सिद्धांत ही उनका मार्गदर्शन करता रहेगा और यहीं से राष्ट्रीय समृद्धि और शांति की राह भी निकलती है। इसके बावजूद आज भी उनके कई ऐसे आलोचक हैं, जो मोदी और ट्रंप की तुलना हिटलर या तानाशाहों से करते रहते हैं, लेकिन उनकी यह आलोचना यथार्थ से कहीं दूर है। ये दोनों ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया से चुने गए हैं और संविधान के दायरे में रहते हुए ही ये अपने दायित्वों का निर्वहन भी करेंगे। आज जिस तरह से वक्त बदल रहा है, इन नेताओं की क्षमता ही निर्धारित करेगी कि इस वैश्विक बदलाव के साथ कदमताल करते हुए ये रुढि़वादी राजनीतिक सोच में कितना बदलाव ला पाते हैं।

बस स्टैंड

पहला यात्री-हमारे सांसद को बीसीसीआई से क्यों हटाया गया है?

दूसरा यात्री-ऐसा लग रहा है कि अब जज क्रिकेट खेलेंगे और क्रिकेटर फैसले सुनाएंगे।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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