दामन में लगे कीचड़ को साफ करे सेना

By: Jan 20th, 2017 12:08 am

newsप्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए कि सैनिकों में इस तरह की असहमतियों को लेकर सोशल मीडिया पर विडीयो पोस्ट करने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसे खत्म करने के लिए सेनाध्यक्ष को सख्ती के साथ आगे आना पड़ा है। इस प्रचलन पर रोक लग सके, इसके लिए सबसे पहले अर्द्धसैनिकों के लिए सोशल मीडिया को प्रतिबंधित किया गया है। निश्चय ही सोशल मीडिया पर विडीयो डालने की यह स्थित बेहद नुकसानदायक है और मामले की गहन जांच के बाद यथोचित कार्रवाई होनी चाहिए…

पेशेवर कार्य पद्धति और बुलंद हौसलों के कारण भारतीय सेना की छवि साफ-सुथरी ही रही है, लेकिन हाल ही के दिनों में यह अपने ही सैनिकों की वजह से आलोचनाओं से घिरी रही। सेना में जिन आपत्तिजनक गतिविधियों की गाहे-बगाहे चर्चा सुनने को मिलती थी, वे एकदम से खुलकर सतह पर आ गईं। 14 राजपूत रेजिमेंट के लांस नायक युग प्रताप सिंह ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो डालकर सैन्य अधिकारियों द्वारा सैनिकों या अर्द्धसैनिकों से घरेलू कार्य करवाने और राशन की आपूर्ति में होने वाली गड़बडि़यों को लेकर अपनी भड़ास निकाली। युग प्रताप सिंह के अलावा दो अन्य सैनिकों ने भी अधिकारियों पर इसी तरह के आरोप मढ़े हैं। मैंने भी उस वीडियो को देखा और पाया कि जवान को सरकार से किसी भी तरह का शिकवा-गिला नहीं है। उन्होंने साफ-साफ कहा है, ‘सरकार सब कुछ दे रही है, लेकिन अधिकारी उस सामान को गोलमाल कर जाते हैं।’

हालांकि यह इस किस्म की कोई पहली घटना नहीं है, बल्कि शुरुआती दौर से ही यह सेना के कार्य प्रणाली का एक हिस्सा रहा है। वक्त के साथ इसमें फर्क सिर्फ इतना सा आया है कि स्मार्टफोन की सहूलियत के साथ अब इस तरह के कदाचार को यू-ट्यूब पर वीडियो पोस्ट करके या ट्विटर पर ट्वीट करके उजागर करने की एक नई परंपरा पनपनी शुरू हो गई है। सेना एक अनुशासित बल है और इसके सख्त व स्पष्ट नियमों की वजह से सेना में इस तरह की आपत्तिजनक चीजांे को सार्वजनिक करने का दुस्साहस बहुत कम देखने को मिलता है। सोशल मीडिया के मार्फत किसी भी संदेश को एक बड़े जनसमूह तक संप्रेषित किया जा सकता है

और इसने सैनिकों में सशक्तिकरण की भावना को बल प्रदान किया है। व्यापक स्तर पर पहुंच के साथ-साथ सोशल मीडिया की यह भी एक खूबी है कि आप अपने संदेश को बिना किसी संेसरशिप के सार्वजनिक कर सकते हैं। इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए कि सैनिकों में इस तरह की असहमतियों को लेकर सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करने का जो सिलसिला शुरू हुआ था, उसे खत्म करने के लिए सेनाध्यक्ष को सख्ती के साथ आगे आना पड़ा है। इस प्रचलन पर रोक लग सके, इसके लिए सबसे पहले अर्द्धसैनिकों के लिए सोशल मीडिया को प्रतिबंधित किया गया है। हालांकि सैनिकों में तमाम तरह की शिकायतों के निपटारे के लिए पहले से ही व्यवस्था की हुई है और आने वाले समय में इसे और प्रभावी बनाने के लिए सेनाध्यक्ष ने आश्वासन दिया है कि वह स्वयं शिकायत पेटी को खोलकर इन शिकायतों को निपटाएंगे। निश्चय ही सोशल मीडिया पर वीडियो डालने की यह स्थिति बेहद नुकसानदायक है और मामले की गहन जांच के बाद यथोचित कार्रवाई होनी चाहिए। सहायकों अथवा सेवादारों का गलत तरीके से उपयोग करने के भी ढेरों किस्से लंबे अरसे से सामने आते रहे हैं और अतीत में कभी किसी ने इसकी तहकीकात करने की जहमत नहीं उठाई। अधिकारियों की वर्दी, शस्त्र इत्यादि को तैयार करने अथवा संभाल के लिए ऐसे सहायक कर्मियों का सेना में प्रावधान किया गया है, लेकिन आम तौर पर इनसे निर्धारित कार्यों के साथ-साथ घरेलू कार्यों या अन्य रोजमर्रा के कार्य करवाए जाते हैं। युद्ध क्षेत्र में तो अधिकारियों व कर्मचारियों के बीच ऐसे कार्यों के निर्धारण में कुछ कठिनाई आ सकती है, लेकिन पीस स्टेशंज यानी उपद्रव रहित क्षेत्रों में तो इस तरह के कार्यों के लिए अलग से सिविल बंदोबस्त हो सकते हैं। चिंता का एक विषय जवानों की खुराक से जुड़ा है, जिसके अपर्याप्त और गुणवत्ता के लिहाज से घटिया होने की शिकायतें भी सामने आई हैं। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी जांच करवानी चाहिए। इन तमाम अव्यवस्थाओं से बढ़कर गंभीर आरोप सैन्य अधिकारियों द्वारा जवानों के लिए आने वाले राशन को पैसे हेतु सिविल बाजार में बेच देने से जुड़े हैं। इस हद दर्जे के भ्रष्टाचार से सख्ती से निपटने के लिए सेना में पारदर्शी तंत्र को क्रियान्वित करने की महत्ती जरूरत है। यह भी देखने को मिलता है कि आर्मी कोटा के तहत सबसिडी पर जो शराब सैनिकों को मिलती है, वे उसे बाजार में कुछ लाभ के साथ बेच देते हैं। इस पूरी धांधली में जो लोग इन अधिकारियों से राशन या शराब खरीदते हैं, वे भी उतने ही कसूरवार हैं, जितने कि बेचने वाले अधिकारी। कुछ पत्रकारों ने साहस दिखाते हुए इसकी रिपोर्टिंग भी की है कि किस तरह से बड़ी मात्रा में खाने-पीने की वस्तुओं को बाजार में बेचा जाता रहा है। परिणामस्वरूप सैनिक कई मर्तबा इस राशन से पूरी तरह से वंचित रह जाते हैं या फिर यह खाद्य सामग्री उन्हें जरूरत के मुताबिक नहीं मिल पाती।

इन तमाम बातों को ध्यान में रखकर सेना के पूरे राशन तंत्र की गहन जांच-पड़ताल करके इसे दुरुस्त करने की जरूरत है। यह बात समझ से परे है कि जो अधिकारी शराब का सेवन नहीं करते या अधिकारियों की विधवा औरतों को बड़ी मात्रा में शराब की सुविधा क्यों दी जा रही है। यह भी सर्वविदित है कि शांतिपूर्ण इलाकों में भी शराब के दुरुपयोग के अतिरिक्त बड़े पैमाने पर इसकी बिक्री की जाती है। बेशक तैनाती वाले क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में इसकी आपूर्ति सुनिश्चित करना जरूरी हो सकता है, लेकिन अन्य जगहों पर ऐसी आपूर्ति के बजाय कुछ भत्ते दिए जा सकते हैं। उपद्रव रहित क्षेत्रों में कैंटीन सुविधा को खत्म किया जा सकता है। ऐसे असैन्य क्षेत्र जहां राशन खरीदने के लिए दुकानों की सुविधा है, वहां सेना को राशन वितरण के झंझट नहीं फंसना चाहिए। यह भी कि सेवानिवृत्त अधिकारियों या अन्य रैंक के सैनिकों के लिए बेहतर चिकित्सा सुविधा के प्रबंधन हेतु विशेष ध्यान देना होगा और यह सुविधा जरूरत के मुताबिक हर स्थान पर उपलब्ध होनी चाहिए।

इसके साथ यदि सेना या सरकार को दी जाने वाली इन तमाम सुविधाओं का किसी स्तर पर दुरुपयोग होता है, तो ऐसे मामलों की गहराई से जांच होनी चाहिए। सेना में एक और क्षेत्र में सुधार की गुंजाइश है, जिसके तहत सीनियर अधिकारियों की पत्नियां जूनियर अधिकारियों की पत्नियों पर कई किस्म का अनुचित दबाव बनाती हैं या कई बार ये अपने पति की आधिकारिक स्थिति के कारण गलत दखल देती रहती हैं। ऐसी भी शिकायतें आती रही हैं कि जब तक किसी जूनियर का पत्नी व्यवहार सीनियर की अपेक्षा के मुताबिक नहीं होता, तो उसके पति का करियर बिगड़ने का डर बना रहता है। चूंकि किसी भी अधिकारी के करियर में उसके सीनियर द्वारा किया जाने वाला मूल्यांकन बेहद मायने रखता है, इसलिए यदि दोनों की बीवियों के दरमियान संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं हैं, तो इसका असर भी जूनियर के करियर पर पड़ने का खतरा रहता है। इससे न केवल सेना के दो अधिकारियों में, बल्कि उनकी बीवियों में भी दासतापूर्ण विनीतता की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। इस तरह की गतिविधियों को नियंत्रित करके समूचे तंत्र की स्वच्छता हेतु उच्च अधिकारियों को यथोचित हस्तक्षेप करना चाहिए। सेना देश के प्रचीनतम प्रतिष्ठानों में से एक है और भारतीय सेना की विश्व भर में ऊंची प्रतिष्ठा है। ऐसे में आज इस बात की बेहद जरूरत हो गई है कि सेना के दामन में लगे ऐसे धब्बों को मिटाने के लिए सेनाध्यक्ष उचित हस्तक्षेप करें।

बस स्टैंड

पहला यात्री- विमुद्रीकरण के बाद हालात सामान्य हो रहे हैं, तो भी कुछ लोग इसके खिलाफ इतना अधिक हो हल्ला क्यों मचा रहे हैं?

दूसरा यात्री- जिन नेताओं का जितना अधिक काला धन मिट्टी हुआ है, वे उतना ही अधिक शोर मचा रहे हैं।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com


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