पीएम मोदी पर नोटबंदी फतवा

By: Jan 11th, 2017 12:05 am

क्या किसी मस्जिद का इमाम देश के प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ फतवा जारी कर सकता है? क्या कोई इमाम इस हद तक बोल सकता है-हिंदोस्तान मोदी के बाप का है क्या? क्या सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री के लिए ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिन्हें लिखना भी हम नैतिक और शालीन नहीं मानते? क्या कोई फतवा एक प्रधानमंत्री को हटाकर किसी मुख्यमंत्री को उस पद पर बिठा सकता है? चूंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नाम और नारे वाले पोस्टर के साथ कोलकाता में एक आयोजन किया गया, जिसमें इमाम ने 25 लाख रुपए वाला यह फतवा दिया है, तो क्या इमाम और मुख्यमंत्री दोनों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? दरअसल कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के इमाम नूरूर रहमान बरकती का यह सियासी बयान या फतवा बुनियादी तौर पर गैर कानूनी, गैर लोकतांत्रिक, गैर संघीय, गैर राष्ट्रीय और गैर इस्लामिक है। प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसी जुबां, ऐसी सियासत और भाषा न केवल निंदनीय है, बल्कि उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। देश ऐसी हरकत को खारिज करता है। इमाम ने भड़ुए जैसा शब्द बोला है और मीडिया को भी बिका हुआ और मोदी का चमचा करार दिया है। यह कुंठित गुस्सा किस लिए है आखिर? प्रधानमंत्री मोदी समूचे देश का चेहरा हैं, रहनुमा हैं, प्रथम जनप्रतिनिधि हैं। प्रधानमंत्री सभी के हैं। उनका राजनीतिक, नीतिगत मुद्दों पर विरोध किया जा सकता है। यह देखा गया है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नोटबंदी की निजी स्तर पर मुखालफत की है। चूंकि उनकी सियासत, मोर्चेबंदी, रैलियां, विपक्षी लामबंदी आदि तमाम कोशिशें नाकाम रही हैं, लिहाजा अब वह और उनके समर्थक कुंठा, हताशा की इस हद तक गिरे हैं कि नोटबंदी को आधार बनाकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ फतवा ही जारी कराया है। दरअसल यह कोशिश भी अनधिकार चेष्टा है। इमाम को फतवा जारी करने का कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट तो फतवे को कानूनी मान्यता ही नहीं देता। फतवा मजहबी मामलों में ही दिया जा सकता है। जो कुरान, शरियत का पालन करने वाला हो या उनमें आस्था रखता हो, उसके खिलाफ ही फतवा दिया जा सकता है, लेकिन इमाम को वह भी हक नहीं है। फतवा जारी करने वाली एक खास कमेटी होती है। लिहाजा इमाम बरकती का बयान सियासी है, लेकिन तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और समर्थकों ने उसे फतवा बना दिया। दरअसल यह आयोजन ही सियासी था। जहां इमाम, तृणमूल कांग्रेस के तीन सांसद और कुछ समर्थक बैठे थे। उनके पीछे पोस्टर पर लिखा था मोदी हटाओ, ममता लाओ। यह कैसे संभव है? ममता ने बीते दिनों मांग उछाली थी कि मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाया जाए और देश में नेशनल सरकार बनाई जाए। यह भी कैसे संभव है? कौन ऐसा करेगा? मोदी निर्वाचित प्रधानमंत्री हैं और लोकसभा में उनका प्रचंड बहुमत है। ऐसी कवायद से लगता है कि यह आयोजन तृणमूल कांग्रेस द्वारा ही प्रायोजित था, क्योंकि जिस समय इमाम प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ जहर उगल रहे थे, उसी समय तृणमूल सांसद इदरीस अली और अन्य समर्थक तालियां बजा रहे थे। इमाम को शाबाशी दी जा रही थी। दरअसल यह हिंदोस्तान, उसके झंडे और उसके लोकतंत्र का अपमान किया गया है। देश की मर्यादा का कत्लेआम किया गया है। बेशक भाजपा नेता की शिकायत पर बंगाल पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है, लेकिन मुख्यमंत्री के समर्थकों और पार्टीजनों के खिलाफ कौन सी पुलिस कार्रवाई कर सकती है? लिहाजा केंद्रीय गृह मंत्रालय को दखल देना चाहिए और ममता सरकार से पूछना चाहिए कि ऐसी असंवैधानिक हरकतें क्यों हो रही हैं? दरअसल जब सीबीआई ने रोजवैली चिटफंड घोटाले में लोकसभा में तृणमूल संसदीय दल के नेता सुदीप बंदोपाध्याय को गिरफ्तार किया था, तो मुख्यमंत्री बौखला उठी थीं। उनकी पार्टी के कार्यकर्ता और समर्थक सड़कों पर उतर आए थे और भाजपा दफ्तरों को निशाना बनाया गया था। दरअसल वह कानून-व्यवस्था बिगड़ने का मामला था, जिसे बाद में आधार बनाकर राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। चिटफंड घोटालों में तृणमूल के चार सांसद गिरफ्तार किए जा चुके हैं। ममता सरकार का एक मंत्री भी जेल जा चुका है। ममता इन कार्रवाइयों से तिड़की हुई हैं और इन्हें नोटबंदी का विरोध करने की कार्रवाई मानती हैं। नतीजतन उनकी पार्टी ने ही इमाम का इस्तेमाल किया है। यह वही इमाम है, जिसे हज भेजने की सिफारिश ममता ने वाजपेयी सरकार में रहते हुए प्रधानमंत्री से की थी और इमाम को हज भेजा भी गया था। आज वह मोदी और भाजपा-संघ के खिलाफ जहर उगल रहा है। यह कौन सा लोकतंत्र है? इसी इमाम ने अल कायदा और दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी लादेन की मौत के बाद एक खास नमाज का आयोजन किया था। बुनियादी तौर पर वह राष्ट्र विरोधी हरकतें करता रहा है। क्यों न उसे जेल में ठूंस दिया जाए और उस पर मुकदमा चले?


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