मनमानी का राज
Jan 7th, 2017 12:01 am
( किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर )
लोकतंत्र में मनाना-रूठना चलता रहता है,
हर बात में हर शक्स यूं ही मचलता है।
मांगें पूरी करो वरना पल में होते टोपलैस
बात-बात में मनचले, चढ़ते पानी की टंकी पर।
मन माफिक दो नौकरी, काम चलता धमकी पर,
उठाते सिर पर आसमान, सुने न कोई बात।
आईआरडीपी में डालो, बीपीएल में करो शुमार।
कच्चा मेट पक्का करो, ट्रांसफर रद्द करो हर हाल,
छोटी-बड़ी हमारी मांगें, मानकर पूर्ण करो आस।
जो चाहूं सो वर मिले, करने दो मनमानी आज।
बात-बात में रूठे सारे, ऐसा है मनमाना समाज।
अखिलेश रूठे, मुलायम कड़के,
शिवपाल-रामपाल हुए उदास,
सिद्धू किसके मौर्य, किस-किस का करें उपहास।
बच्चों मानिंद रूठें सारे, मनमानी का यहां राज,
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