वस्तु एवं सेवा कर पर बंदरबांट

By: Jan 10th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवालाडा. भरत झुनझुनवाला

( लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं )

राज्य सरकारें घूस वसूलने के अधिकार को लेकर अड़ी हुई हैं और केंद्र सरकार के वीटो के अन्याय को स्वीकार कर रही हैं। राज्य सरकारों को चाहिए कि घूस वसूल करने का अधिकार केंद्र को दे दे। अपने कर अधिकारियों को केंद्र के अधिकारियों द्वारा वसूल की गई घूस की धरपकड़ पर करने पर लगाएं। दो बंदरों की लड़ाई में चतुर बिल्ली ने रोटी हड़प ली थी। इसी प्रकार केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच की लड़ाई से जनता को कुछ राहत मिल सकती है। राज्यों को केंद्र के वीटो का विरोध करना चाहिए, जो कि उन्हें पूरी तरह मूकदर्शी बना देती है…

वस्तु एवं सेवा कर को लागू करने में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों में ठनी हुई है। विवाद है कि जीएसटी की वसूली केंद्र सरकार के अधिकारियों द्वारा की जाएगी अथवा राज्य सरकार के अधिकारियों द्वारा। जैसे दो परिवारों में सहमति बन चुकी है कि नल से पांच-पांच बाल्टी पानी दोनों परिवारों को मिलेगा, लेकिन जंग इस बात को लेकर छिड़ी हुई है कि नल इस पानी को घर तक कौन पहुंचाएगा। दोनों परिवार कह रहे हैं कि मैं नल से दस बाल्टी पानी लेकर दोनों घरों को पांच-पांच बाल्टी पहुंचाउंगा। यदि दोनों लोग सच्चे हैं, तो चाहेंगे कि नल से पानी लेकर घर से पहुंचाने का काम दूसरे को दे दें। इस काम को अनायास ही अपने ऊपर क्यों लिया जाए, परंतु दोनों में इस काम को करने को लेकर ठनी हुई है, चूंकि पानी पहुंचाने के काम में घपलेबाजी करने का अवसर मिल जाता है। इसी प्रकार केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवाद बना हुआ है कि जीएसटी की वसूली कौन करेगा, चूंकि दोनों को घूस वसूलने के अवसर चाहिए। कर वसूल करने का कार्य पूरी तरह केंद्र सरकार को दे दिया जाए तो राज्य सरकारों को बचत होगी। बिक्री कर अधिकारियों को दूसरे कार्यों में लगाया जा सकेगा, परंतु राज्य सरकार के अधिकारियों और मंत्रियों को घूस वसूल करने के अवसर समाप्त हो जाएंगे। यही बात केंद्र सरकार पर भी लागू होती है। दोनों घूस को नहीं छोड़ना चाहते हैं, संभतया इसी लिए जीएसटी पर अवरोध बना हुआ है। इस मुद्दे पर अड़कर राज्य सरकारें अपने मूल हितों की अनदेखी कर रही हैं। प्रस्तावित जीएसटी व्यवस्था पूरी तरह केंद्र सरकार के आधीन है। राज्य सरकारों को मूक दर्शक बना दिया गया है।

व्यवस्था है कि जीएसटी काउंसिल में किसी प्रस्ताव को पारित करने के लिए 75 प्रतिशत मत जरूरी होंगे। साथ-साथ कहा गया कि 33 प्रतिशत मत केंद्र सरकार के पास होंगे। सब राज्य एकजुट हों, तब भी किसी प्रस्ताव को पारित नहीं करा सकते हैं, चूंकि उनके पास कुल 67 प्रतिशत वोट होंगे, जो कि जरूरी 75 प्रतिशत से कम होंगे। वर्तमान प्रस्ताव में राज्य सरकार को एक वोट दिया गया है। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को एक-एक वोट दिया गया है, जबकि उत्तर प्रदेश की जनसंख्या लगभग 20 गुना है। इससे केंद्र सरकार के लिए मनचाहे नियमों को राज्यों की इच्छा के विपरीत लागू करना आसान हो जाएगा। मान लीजिए केंद्र सरकार चाहती है कि साइकिल तथा मर्सीडीज कार पर बराबर 18 प्रतिशत से जीएसटी वसूल की जाए। इसके विपरीत राज्य सरकारें चाहती हैं कि साइकिल पर पांच प्रतिशत तथा मर्सीडीज कार पर 40 प्रतिशत से जीएसटी वसूल की जाए। केंद्र को अपना प्रस्ताव पारित करने के लिए 25 प्रतिशत वोट देना चाहिए। 33 प्रतिशत केंद्र के पास अपने स्वयं के वोट हैं। यदि 42 प्रतिशत और वोट के पक्ष में आ जाएं तो प्रस्ताव पारित हो जाएगा। 30 राज्यों में यदि 19 छोटे राज्य केंद्र के पक्ष में खड़े हो जाएं, तो इनके पास 42 प्रतिशत वोट होंगे और वह प्रस्ताव पारित हो जाएगा, लेकिन देश के 19 छोटे राज्यों के पास देश की केवल 23 प्रतिशत आबादी है, जबकि 11 बड़े राज्यों के पास 77 प्रतिशत। अतः 23 प्रतिशत आबादी वाले 19 छोटे राज्य केंद्र के साथ खड़े हो जाएं तो 11 बड़े राज्यों की 77 प्रतिशत आबादी के विपरीत प्रस्ताव पारित किया जाएगा। इस बात को तमिलनाडु ने कई बार उठाया है, परंतु केंद्र सरकार एक राज्य एक वोट के अन्यायपूर्ण फार्मूले को लागू करने पर अड़ी हुई है।

इस प्रकार केंद्र और राज्य सरकार के बीच गतिरोध के दो आयाम सामने आते हैं। एक आयाम घूस वसूलने का है। दूसरा आयाम जीएसटी काउंसिल में केंद्र के वीटो का है। दुर्भाग्य है कि राज्य सरकारें घूस वसूलने के अधिकार को लेकर अड़ी हुई हैं और केंद्र सरकार के वीटो के अन्याय को चुपचाप स्वीकार कर रही हैं। राज्य सरकारों को चाहिए कि घूस वसूल करने का अधिकार केंद्र को दे दे। अपने कर अधिकारियों को केंद्र के अधिकारियों द्वारा वसूल की गई घूस की धरपकड़ पर करने पर लगाएं। दो बंदरों की लड़ाई में चतुर बिल्ली ने रोटी हड़प ली थी। इसी प्रकार केंद्र तथा राज्य सरकार के बीच की लड़ाई से जनता को कुछ राहत मिल सकती है। राज्यों को केंद्र के वीटो का विरोध करना चाहिए, जो कि उन्हें पूरी तरह मूकदर्शी बना देती है। बहरहाल जीएसटी लागू करने को केंद्र तथा राज्यों के बीच सहमति बन चुकी है। परंतु कभी-कभी किसी छोटी बात को लेकर बड़े कदमों से पीछे हटना पड़ जाता है, जैसे खटिया में खटमल हो, तो बारात वापस चली जाती है। जीएसटी में राज्यों को हुई राजस्व की हानि की भरपाई केंद्र सरकार द्वारा पांच साल तक की जाएगी। मान लीजिए किसी राज्य की जीएसटी से आय आधी रह जाती है। पांच साल तक केंद्र इस कमी की पूर्ति कर देगा, लेकिन पांच साल के बाद क्या होगा? उस राज्य की जीएसटी की दरों को बढ़ाया नहीं जा सकेगा, चूंकि इनका निर्धारण जीएसटी काउंसिल द्वारा किया जा रहा होगा।

इन हालात में ऐसे राज्य के पास एकमात्र विकल्प अपने खर्चों में कटौती करना होगा। जीएसटी व्यवस्था की दूसरी कमी राज्यों द्वारा प्रयोग पर ब्रेक लगाने की है। मान लीजिए जीएसटी काउंसिल ने निर्णय लिया कि साइकिल तथा मर्सिडीज कार पर 18 प्रतिशत की एक दर से ही कर वसूल किया जाएगा, लेकिन किसी राज्य के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि साइकिल पर 5 प्रतिशत तथा मर्सीडीज पर 40 प्रतिशत से जीएसटी वसूल की जाए। वे ऐसा नहीं कर सकेंगे। जीएसटी का लाभ है कि पूरे देश में व्यापार सरल हो जाएगा। सब राज्यों द्वारा सभी माल का एक सामान्य श्रेणी में वर्गीकरण किया जाएगा और एक ही दर से जीएसटी वसूल की जाएगी। इन दो लाभ में सामान्य वर्गीकरण का लाभ ज्यादा है। हर राज्य द्वारा अलग-अलग वर्गीकरण करने से बार्डर पर तमाम विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। विकल्प है कि जीएसटी के अंतर्गत पूरे देश में सामान्य वर्गीकरण मात्र को लागू किया जाए, जबकि हर राज्य को अलग दर से जीएसटी आरोपित करने का अधिकार दिया जाए। ऐसा करने से राज्यों की स्वायत्तता बनी रहेगी और मुख्यतः अंतरराज्यीय व्यापार भी सरल हो जाएगा। ध्यान दें कि डब्ल्यूटीओ के ट्रेड फेसीलिटेशन के समझौते में ऐसी ही व्यवस्था है। पूरे विश्व में माल का वर्गीकरण एक प्रकार से होगा, यद्यपि हर देश अपने विवेकानुसार आयात कर वसूल कर सकेगा। उस प्रक्रिया को अपनाएं तो अंतरराज्यीय व्यापार की सरलता तथा राज्यों की स्वायत्तता दोनों हासिल हो जाएगी।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App