विष्णु पुराण

By: Jan 28th, 2017 12:05 am

ऊं पाराशरं मुनिवर कृतपोवांह्निकक्रियम।

मैत्रैयः परिपप्रच्छ प्रणिपत्याभिवाद्य च।

त्वत्तो हि मेदाध्ययनमधीतमखिलं गुरो।

धर्मशास्त्राणि सर्वाणि तथाङ्गानि यथाक्रमम्।

त्वत्प्रसादान्मुनिश्रेष्ठ मामन्ये नाकृतश्रमम।

वक्ष्यान्ति सर्वशास्त्रेषु प्रायशो येह्यपि विद्विषः। सोह्यहमिच्छामि धर्मज्ञ श्रोतुं त्वत्तोयथा जगत।

बभुव भूयश्च यथा महाभाग भविष्यति।

तन्मयं जगद्ब्रह्मन्यतश्चैतच्चराचरम्।

लीनमासीद्यथा यत्र लयमेष्यति यत्र च।

श्री सूतजी ने कहा, जब मुनि श्रेष्ठ पाराशरजी पूर्वाह्न क्रियाओं को करके अपने आसन पर विराजमान हुए तो मैत्रेय ऋषि ने उनको प्रणाम अभिवादन करके पूछा, हे गुरुदेव! आपके समीप रहकर मैनें समस्त वेद वेदांग एवं धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया। आपके अनुग्रह से पंडित जन भी यह नहीं कह सकते कि मैंने शास्त्राध्ययन में श्रम नहीं किया है। मेरे विरोधी भी ऐसा नहीं कह सकते।  हे धर्मज्ञ! अब मैं आपके मुख से यह सुनना चाहता हूं कि यह जगत जिससे उत्पन्न हुआ है, यह समस्त चराचर जिससे लीन था, जिससे प्रकट हुआ है, जिससे लय होगा, उसका मूल स्वरूप क्या है?

यत्प्रमाणानि भूतानां देवादीनां च सम्भवम्।

समुद्रपर्वतानां च संस्थान च यथा भुवःद्ध

सूर्यादीनां च संस्थाना प्रमाण मुनिसत्तम्।

देवादीनां तथा वंशांमनून्मन्वन्तराणि च।

कल्पान् कल्पविभांश्च चातुर्यु गविकल्पितान्।

कल्पान्तस्य स्वरूपञ्च युग धर्माश्च कृत्स्नशः। देवर्षिपार्थिवानां च चरितं यन्महामुने।

वेदशाखाप्रणयनं यथा बद्वयासकर्तुकम्। धर्माश्च ब्राह्मणादीनां तथा चाश्रमवासिनाम्।

श्रोतुमिच्छाम्यहं सर्व त्यत्तो वासिष्ठनन्दन। ब्रह्मंप्रसादप्रवण कुरुष्व मयि मानसम्।

येताहहेतज्जानीयां त्वत्प्रसान्महामुने।।

साधु मैत्रेय धर्मज्ञ स्वारितोह्यस्मि पुरातनम्।

पितु पिता मे भगवान् वशिष्ठो यदुवाच ह।

विश्वामित्र प्रयुक्तेन रक्षासा भक्षितः पुरा।

श्रुतस्तातस्तः क्रोधो मैत्रेयाभून्ममातुलः। ततोह्यहं रक्षसा सत्रं विनाशाय समारभम्।

भस्मीभूताश्च शतशस्तस्मिंसत्र निशाचराः।

 

आकाश आदि पंच महाभूतों की स्थिति, देवताओं की उत्पत्ति समुद्र, पर्वत और पृथ्वी की दशा, सूर्या आदि ग्रहों का संस्थान और परिमाण, देवताओं आदि का वंश, मनु और मंवन्तरों का वर्णन, कल्पों और युगों का स्वरूप, कलपांतर, संपूर्ण युगों के धर्म, देवर्षि और राजाओं के चरित्र, व्यासजी द्वारा वेदों को विभिन्न शाखाओं का प्रणयन आदि का वर्णन भी मैं सुनना चाहता हूं। हे शक्तितवय! ब्राह्मण आदि चारों वर्णों और ब्रह्मचर्य आदि चारों आश्रमों के धर्म से आपसे जाना चाहता हूं। हे ब्रह्मण! आप मुझ पर ऐसी कृपा करे, जिससे मैं इन समस्त विषयों का ज्ञान का सकूं। पारशरजी बोले, हे धर्मज्ञ मैत्रेय! जब मैंने यह सुना था कि विश्वामित्र द्वारा प्रेरित राक्षस ने पिताजी को भक्षण कर लिया तो मुझे अत्यंत क्रोध हुआ था, और मैंने राक्षसों के विनाशार्थ यज्ञ आरंभ कर दिया, जिसमें सैकड़ों हजारों राक्षस प्रतिदिन भस्म होने लगे।

 


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