व्यवस्था पर विधायक का हल्ला

By: Jan 7th, 2017 12:02 am

व्यवस्था का असली हकदार कौन, यह प्रश्न बिलासपुर के विधायक से पूछने के कारण लगातार बढ़ रहे हैं। घटनाक्रम की आफत कौन मोल ले रहा है, इससे पहले ही यह तय हो चुका है कि विधायक बंबर ठाकुर अपने अधिकार की रूपरेखा में राजनीतिक शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं। पहले वन अधिकारी से उलझे जनप्रतिनिधि ने इस बार एक विशेषज्ञ चिकित्सक पर सवाल टांग कर, फट्टे में अपनी ही टांग फंसा ली है। यह इसलिए क्योंकि ऐसे विवादों की जिरह या जुबान के बजाय, प्रमाणों की असलियत परखी जाती है और जहां परिस्थितियां अधिकारियों का साथ दे रही हैं। बिलासपुर में विधायक की जिम्मेदारी व जवाबदेही बेशक आम मतदाता के पक्ष में उनके सत्ता में होने को प्रमाणित करती है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि वह निरंकुश फैसलों की तामील में व्यवस्था के हर किरदार पर हल्ला बोले। इन दोनों मामलों में यह कानून को प्रसन्न करने के बजाय, अपने वोट बैंक की हिफाजत में कहीं अधिक दिखाई देते हैं। अंततः राजनीतिक योग्यता से कहीं अधिक योग्यता के प्रमाण किसी भी सरकारी नियुक्ति की अनिवार्यता है। कोई भी हड्डी रोग विशेषज्ञ यूं ही चलते हुए तो नहीं मिलता और न ही यह दक्षता केवल पांच साल के लिए हासिल होती है। एक योग्य डाक्टर की आवश्यकता किसी सिफारिशी प्रमाण पत्र से हमेशा बड़ी और मरीजों की उम्दा देखभाल से ही प्रमाणित होती है, लिहाजा आरोपों के मैदान में विधायक केवल सत्ता का दंड या घमंड दिखा सकते हैं, चिकित्सा सेवाओं का प्रबंधन शायद नहीं कर सकते। विडंबना यह है कि हिमाचल की अल्प सियासी पहचान भी सरकारी कामकाज की बॉस बनने को उतारू है और इसी ढर्रे से नियुक्तियों से ट्रांसफर तक होने लगी हैं। इससे जनता को लाचार तो बनाया जा सकता है, लेकिन आम नागरिक का विश्वास हासिल नहीं किया जा सकता है। ऐसा बार-बार बिलासपुर के ही अधिकारियों को लेकर क्यों हो रहा है और क्यों एक विधायक को यह हक मिला हुआ है कि वह व्यवस्था की पगड़ी उछालता रहे। एक ईमानदार अधिकारी की पहचान कितनी कमजोर हो रही है, इसका एहसास हम कम से कम बिलासपुर में कर सकते हैं। अगर वन अधिकारी या डाक्टर, अपनी-अपनी परिपाटी व सरकारी दिशा निर्देश त्याग कर विधायक को खुश करते तो ऐसे बखेड़े ही खड़े न होते। यह केवल एक विधायक या किसी एक पार्टी की सत्ता का दोष नहीं, बल्कि व्यवस्था के हर स्तर तक राजनीतिक दखल का परिणाम है। ऐसे में साधारण व्यक्ति की सुनवाई कैसे होगी। व्यवस्था को बेदखल करने की कवायद में किसी नेता की सफलता के पैमाने अगर यूं ही तय होते जाएंगे, तो सरकारी कामकाज का मूल्यांकन भी राजनीतिक आधार पर ही होगा। यहां अगर एक डाक्टर सही काम नहीं कर रहा था, तो उसके खिलाफ सबूत का एक ही उदाहरण क्यों पेश हुआ और क्या व्यवस्था के हस्ताक्षर इतने कमजोर हो चुके हैं कि इन पर कभी भी राजनीतिक चाबुक चल सकता है। ऐसे में समझना यह होगा कि क्यों कोई भी सरकार स्थानांतरण नीति या नियमों का खुलासा नहीं करती। क्यों सरकारी मुलाजिम को स्थानांतरण की सूली पर टांगा जाता है। आम जनता की बेहतरी के हिसाब से स्थानांतरण न करके, राजनीतिक वफादारी से ही अगर चयन होगा तो काबिल विधायकों का प्रश्रय कितने ही लोगों की अयोग्यता को चमका देगा और न जाने गुस्से के कारण कितने अन्य काला पानी की सजा भुगत लेंगे।


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