सफलता के सफर की आशा

By: Jan 22nd, 2017 12:08 am

UtsavUtsavपंजाब विश्वविद्यालय से पोलिटिकल साइंस में एमए के दौरान राजनीति में पैदा हुआ इंटरेस्ट चंडीगढ़ की मेयर बनने में मददगार साबित हुआ। पोलिटिकल साइंस पढ़ते-पढ़ते हिमाचल की बेटी चंडीगढ़ सिटी की सबसे अहम और मजबूत सीट पर जा बैठी। यह केवल विषय से जुड़ाव का ही नतीजा मात्र नहीं था, अपितु खून में सियासी हलचल का भी असर था कि हिमाचली बेटी आभा कुमारी जसवाल मेयर का चुनाव जीत गईं। आशा कुमारी  के मानस पटल पर वे यादें आज भी तैर रही हैं, जब वह अपने परिवार के छोटे-छोटे कामों में मदद करती थीं। दरअसल यह महज मदद नहीं थी, बल्कि एक आरएसएस कार्यकर्ता के शुरुआती दौर की ट्रेनिंग थी। आशा कुमारी का बचपन सैन्य पृष्ठभूमि के परिवार के बीच गुजरा। नाना सूबेदार टेकचंद और मामा केहर सिंह से प्रभावित और प्रेरणा लेने वाली आशा अपने मामा के सरपंच बनने के बाद राजनीति के दांव-पेंच भी सीखने लगी। बाद में आशा की शादी ऊना जिला के उपमंडल अंब के प्रंब गांव में हुई। आशा जसवाल के ससुर आरएसएस से जुड़ी हुई  अहम शख्सियत थे। घर में आरएसएस विचारधार से जुड़े व्यक्तित्व आते थे। बातों का दौर चलता और देश की सत्ता और सियासत को लेकर अहम टिप्पणियां होतीं। योजनाओं पर कटाक्ष होते। वाद-विवाद होता और यह भी एक फैक्टर रहा कि आशा जसवाल की रुचि राजनीति में हो गई। घर पर आरएसएस के पोस्टर और बैनर बनाने में आशा मदद करे लगी। घर पर आने वाले प्रबुद्ध लोगों  में आशा चर्चित होने लगीं। उनके सुझावों पर अमल होने लगा और सीख की भूख भी निरंतर बढ़ने लगी। इसी बीच 2011 में उन्होंने चंडीगढ़ में पहला चुनाव वार्ड नंबर चार से बतौर पार्षद लड़ा। चुनावी चालों से आशा ने प्रतिद्वद्वियों को धूल चटा दी और पहली बार राजनीति में सफलता की  पताका लहराई। इस बार चंडीगढ़ नगर निगम का चुनाव आशा कुमारी ने वार्ड नंबर 17 से लड़ा, जिसमें उन्हें कुल दस हजार मतों में से 4200 मत पड़े। बाद में सहयोगियों के कहने पर आशा ने मेयर का चुनाव लड़ा और उसमें भी भारी मतों से चुनाव जीतीं। आशा की विरोधी को महज चार ही मत मिले। इस से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हिमाचल की बेटी ने चंडीगढ़ सिटी की सियासत पर कैसे एकछत्र राज कर लिया है। वर्तमान दौर की बात करें तो इस समय आशा कुमारी भाजपा राष्ट्रीय महिला मोर्चा की राष्ट्रीय  उपाध्यक्ष और हिमाचल महिला मोर्चा की सहप्रभारी का दायित्व भी निभा रही हैं। आशा के भाजपा प्रत्यशी के रूप में चंडीगढ़ के वार्ड- 17 से चुनाव जीतने के साथ ही हिमाचली बेटी ने सफलता के शिखर पर पहुंचकर पहाड़ की बेटियों के लिए राजनीति में भी करियर के  द्वार खोल दिए हों। बकौल आशा कुमारी ‘मेरा संबंध कांगड़ा जिला के पालमपुर के नौण गांव से है। मेरा जन्म ग्वालियर में 22 अप्रैल, 1954 को हुआ। माता व्यासा देवी और  पिता राम दत्ता मेरे आदर्श रहे हैं। पिता केंद्र सरकार के आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट आफॅ इंडिया विभाग से सेवानिवृत्त हैं’ आशा कुमारी ने पंजाब विश्वविद्यालय  चंडीगढ़ से कला संकाय में ग्रेजुएशन की है।  उसके बाद राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर  की उपाधि ली है। इतना ही नहीं आशा की शिक्षा का सफर अभी नए सोपान ले रहा था कि उन्होंने जैन कालेज सहारनपुर से वकालत कर एक और मंजिल हासिल कर ली। आशा की शादी 1977 में एडवोकेट जसवाल से हुई। आशा के बेटा-बेटी भी वकालत कर रहे हैं। खुशहाल और समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखने वाली आशा ने जिरह और दलीलों के करियर के साथ -साथ पहाड़ की  बेटियों को राजनीति में करियर बनाने के लिए प्रेरित कर दिया है। पहाड़ की इस बेटी के जोश, जज्बे और   जीवट को सलाम, जिसने अपनी सोच, संघर्ष और साहस से सफलता हासिल की।  -विकास कौंडल, ऊना

मुलाकात

पहाड़ों से लगाव हिमाचल खींच लाता है…

राजनीति की पहली सीढ़ी कब चढ़ीं और अब तक बतौर मेयर खुद की सफलता को किस तरह देखती हैं?

पहला चुनाव वर्ष 2011 में चंडीगढ़ के वार्ड नंबर चार से पार्षद के रूप में लड़ा। ससुर मलूक सिंह आरएसएस से जुड़े थे, उनसे भी प्रेरणा मिली।

कोई सियासी गुरु या आदर्श?

नाना सूबेदार टेकचंद, मामा सूबेदार केहर सिंह व ससुर मलूक सिंह।

राजनीति में विचारधारा के बजाय व्यक्तिवाद हावी हो रहा है। आप खुद को कहां अलग देखती हैं?

मैं व्यक्तिवाद में विश्वास नही करती,विचारधारा व संगठन सबसे ऊपर हैं।

जीवन में राजनीति का महत्त्व किस सीमा तक सही है और क्या आपको लगता है कि समाज की सियासी भूख बढ़ रही है?

राजनीति अपने स्थान पर है और समाज अपने स्थान पर। राजनीति समाज के दायरों में रहकर ही होनी चाहिए।

चंडीगढ़ जैसे शहर का मेयर होना कितना चुनौतीपूर्ण है और आपके अनुसार शहर को असल में क्या चाहिए?

चंडीगढ़ की पूरे विश्व में विशेष पहचान है। शहर को सुंदर व स्वच्छ रखने के लिए जो भी बदलाव होंगे, वे किए जाएंगे। मेयर का दायित्व निश्चित तौर पर एक चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है, जिसका सबके सहयोग से निर्वहन करूंगी।

चंडीगढ़ की किस अदा पर फिदा हैं और एक बीमारी जो सबसे अधिक चिंता का विषय है?

चंडीगढ़ शहर की गिनती ब्यूटीफुल सिटी में होती है। देश के एक व्यवस्थित शहर के रूप में चंडीगढ़ जाना जाता है। अतिक्रमण से शहर की सुंदरता को लगने वाला ग्रहण चिंतनीय विषय है।

चंडीगढ़ में आपको कितना और कहां-कहां हिमाचल दिखाई देता है?

पहाड़ों का लगाव बार-बार हिमाचल खींच लाता है। जब भी अवसर मिलता है तो अपने गांव में लोगों के साथ समय बिताना चाहती हूं।

हिमाचल के शहरीकरण को चंडीगढ़ से क्या सीखना होगा?

हिमाचल प्रदेश के शहर भी तेजी से विकसित होते जा रहे हैं। धर्मशाला व शिमला पूरे विश्व से सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। स्मार्ट सिटी के तमगों से इन शहरों की आबोेहवा बदलने जा रही है। इसके साथ ही पालमपुर, हमीरपुर, मंडी, सोलन, सुंदरनगर इत्यादि शहर भी तेजी से विकसित हो रहे हैं। हमें अतिक्रमण, यातायात व्यवस्था, कचरा प्रबंधन व ब्यूटीफिकेशन की दिशा में काम करना होगा।

हिमाचल पंचकूला, मोहाली के समीप अपना बीबीएन क्षेत्र क्यों नहीं बसा पाया। क्या कुछ किया जा सकता है?

बीबीएन तेजी से औद्योगिक क्षेत्र के रूप में उभरा तथा पूरे देश में फार्मा हब की पहचान बनी है, लेकिन बेहतर प्लानिंग व रिसोर्स का अभाव इसको विकसित करने में आड़े आया है।

चंडीगढ़ के साथ हिमाचल की सहभागिता किन क्षेत्रों में संभव है?

हिमाचल व चंडीगढ़ के विकास के लिए जिन-जिन क्षेत्रों में सहयोग की जरूरत महसूस होगी, उन सभी क्षेत्रों में कार्य किया जाएगा। शीघ्र ही इसके लिए प्रारूप भी तैयार करेंगे।


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