आत्मा की स्मृति

By: Feb 4th, 2017 12:05 am

अवधेशानंद गिरि

अब यह प्रश्न उठता है कि आखिर कौन सी चीज ऐसी है, जिससे हमें स्थायी समाधान मिल सकता है। यह चीज है, विवेक। समाधि का आशय यहां समाधान से है। बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो हर पल अपने समाधान में रहता है। जब आप समाधान में रहेंगे तो स्वाभाविक रूप से आपके होंठों पर एक मुस्कान आ जाएगी और आपके आसपास एक प्रसन्नता छा जाएगी…

स्मृति का शब्दार्थ है याद बनी रहे। आपके चिंतन, धारणाओं तथा अभीप्साओं में मात्र जगत है और कुछ नहीं। अतः आपमें किस चीज की याद या स्मृति बनी रहे। कभी-कभी हम भगवान से प्रार्थना में यह बात कहें, हे देव ! आपकी कृपा से हम वंचित नहीं हैं। बस, हमें यह ध्यान बना रहे कि आपका अनुग्रह हम पर है।  भगवान की कृपा हम पर है ही, यह बात हमारे संज्ञान में बनी रहनी चाहिए। जब यह स्मृति आपको बनी रहेगी तो निर्भार, निश्चिंत हो जाएंगे। आपको लगेगा कि वह शक्तिशाली हैं। उन जैसा सामर्थ्य किसी के पास नहीं है। ऐसे में आपमें भय नहीं रहेगा, अवसाद नहीं रहेगा। स्मृति का अर्थ यह भी है, आत्मा की स्मृति बनी रहे, देह की नहीं। स्मृति का एक अन्य अर्थ है, आत्मा स्मृति यानी आप अपने स्वभाव में लौटकर आएं और इसमें एक दूरी बनी रहे। एक बार एक भक्त ने मुझसे कहा, स्वामी जी ! मुझे डर लगने लगा है। मैं पहले नहीं डरता था, यह डर मुझमें क्यों बैठ गया है। मैंने कहा, तुममें और परमात्मा में कुछ दूरी आ गई है इसलिए डर लगता है। इसका कारण यह है कि तुम्हारे और संतों के बीच तुम्हारे और गुरु के बीच, तुम्हारे और भगवान के बीच में कुछ दूरी आ गई है। मेरी बात उसकी समझ में आ गई। वह चिंता तथा भय से मुक्त हो गया। हम अपनी स्मृति में जगत को देखते हैं। हमारी स्मृति में पदार्थ हैं, हमारी स्मृति में यही है कि इन्हें कैसे प्राप्त कर लें। ये हमारे बन जाएं, बड़ा मकान बन जाए, बहुत अच्छा वाहन हो, संतान हो, फिर वह बड़ी हो जाए, उनका अच्छा अध्ययन हो जाए, फिर बहू आए, उनके बच्चे हो जाएं, यही लक्ष्य है हमारा, हमारी स्मृति में यही रहता है। स्मृति मात्र यह है कि देह सुख किसमें छिपे हुए हैं । देह की पूर्ति कभी नहीं हो सकती। यह एक रस नहीं है। यह दुख का एक कारण है। इसका निरंतर स्मरण रखना ही भयकारक है। इसी में भय छिपा हुआ है। हमारे पास जो भय, दुख और क्लेश आता है, वह अपने को देह मानने से ही आता है। चौथी चीज है समाधि। जो लोग कभी अपना समाधान नहीं कर पाते और निरंतर समस्याओं से घिरे रहते हैं, वे अपने आपमें स्वयं एक समस्या हैं। ऐसे लोग अपनी दुविधाओं का अंत नहीं कर पाते, अपने संशयों का भंजन नहीं कर पाते, अपने संदेह को नहीं समझ पाते और अपने अज्ञान को नहीं माप पाते। क्या ग्राफ  है हमारे अज्ञान का। जो व्यक्ति अपने अज्ञान का ग्राफ  नहीं समझ पा रहा है कि वह कितना ऊंचा या नीचे जा रहा है। जो अपनी अस्मिता, राग-द्वेष या अभिनिवेश को नहीं जानता तथा अपने भीतर के अज्ञान और अविद्या को नहीं पहचानता। वह अपना समाधान कभी भी कदापि नहीं कर पाता। ऐसी स्थिति में बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने चित्त का स्थायी समाधान करे। वह समाधान की दिशा में पुरुषार्थ करे, अच्छे ग्रंथों को पढ़े, संतों के पास जाए। विद्वानों के पास बैठे और अपने विवेक का लाभ उठाए। जो लोग अपने विवेक का कभी लाभ नहीं लेते, उन लोगों को स्थायी समाधान कभी नहीं मिलता, मानो समाधि। अब यह प्रश्न उठता है कि आखिर कौन सी चीज ऐसी है, जिससे हमें स्थायी समाधान मिल सकता है। यह चीज है, विवेक। समाधि का आशय यहां समाधान से है। बुद्धिमान व्यक्ति वह है जो हर पल अपने समाधान में रहता है। जब आप समाधान में रहेंगे तो स्वाभाविक रूप से आपके होंठों पर एक मुस्कान आ जाएगी और आपके आसपास एक प्रसन्नता छा जाएगी।


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