जैविक खेती को मिले बजट की खाद

By: Feb 18th, 2017 12:02 am

( कर्म सिंह ठाकुर लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं )

जैविक खेती आधुनिक खेती की तुलना में महंगी है, जिसके कारण किसानों को सरकार से वित्तीय सहायता की आवश्यकता की जरूरत है। सरकार को जैविक खेती को हिमाचल की जमीन पर उतारने के लिए जहां एक विस्तृत नीति तैयार करनी होगी, वहीं बजट में इसके लिए पर्याप्त धन की भी व्यवस्था करनी होगी…

बजट आगामी वर्ष में सरकार की आर्थिक नीतियों एवं कार्यक्रमों का दर्पण होता है। केंद्र सरकार के बाद अब प्रदेश सरकार भी बजट के मार्फत अपनी प्राथमिकताओं को जाहिर करने जा रही है। ऐसे में प्रदेश के विभिन्न वर्गों में आशाएं-उम्मीदें फिर से जीवंत हो रही हैं। बजट के लिहाज से यह स्वाभाविक ही है। इसके विपरीत सरकार अपने बजट में साधना तो हर वर्ग को चाहेगी, लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इसके पास संसाधन सीमित मात्रा में ही हैं। ऐसे में सरकार पर भी दबाव बढ़ जाता है कि अपने सीमित संसाधनों का वह किस तरह से उपयोग करे कि लगभग हर वर्ग की अपेक्षाओं को इसमें साध सके। इस आलेख के मार्फत हम सरकार का ध्यान एक ऐसे क्षेत्र की ओर आकर्षित करना चाहेंगे, जो मौजूदा संदर्भों में बेहद मायने रखता है और वह है जैविक खेती। उम्मीद है कि सरकार जैविक खेती की संभावनाओं और जरूरतों को समझते हुए अपने इस बजट में विशेष स्थान देगी। जैविक कृषि पर्यावरण की दृष्टि से सहयोगी है, वहीं स्वास्थ्यवर्द्धक भी है। रसायनों के जटिल मकड़जाल से निकलना मुश्किल तो है, लेकिन असंभव नहीं। सिक्किम इस बात को साबित भी कर चुका है, जिसने लगभग 75 हजार हेक्टेयर भूमि को जैविक खेती में परिवर्तित करके देश के सामने बड़ी मिसाल पेश की है। इस कार्य को संपन्न करने में इसे लगभग 12 वर्षों की अनवरत कठिन मेहनत करनी पड़ी। आज भारत के मानचित्र पर सिक्किम देश का प्रथम पूर्ण जैविक राज्य बनकर उभरा है, तो यह पहाड़ी राज्य हिमाचल के लिए प्रेरणा स्रोत भी है। भारतीय कृषि स्वतंत्रता प्राप्ति तक परंपरागत विधियों पर ही आधारित थी।

हरित क्रांति के उद्भव से भारत की कृषि प्रणाली को एक नई रूपरेखा मिली। भारत खाद्यान्नों के लिए न केवल आत्मनिर्भर बना, बल्कि  आज कई उत्पादों का विदेशों को निर्यात भी कर रहा है। देश के लिए यह जरूरी भी था, लेकिन इस खाद्यान्न क्रांति के साथ रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध उपयोग से भूमि उर्वरता व जल स्तर पर गिरावट ने पुनः देश के कृषि वैज्ञानिकों को सोचने पर मजबूर कर दिया। भूमि की उत्पादकता में गिरावट से बंजर भूमि बढ़नी शुरू हो रही है, वहीं पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। कृषि पर बढ़ती लागत, संसाधनों के अभाव एवं उर्वरकों व कीटनाशकों से पर्यावरण पर बढ़ते दुष्प्रभाव को रोकने के लिए निःसंदेह जैविक कृषि एक वरदान साबित हो सकती है। जैविक खेती से स्वच्छ पर्यावरण व संतुलित प्रकृति के स्तर को बनाए रखा जा सकता है। वहीं भूमि, वायु, जल को प्रदूषित किए बिना दीर्घकालीन एवं गुणवत्तापूर्ण उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। जैविक खेती में जीवांश खाद, गोबर की खाद, हरी खाद, जीवाणु कल्चर तथा बायोपेस्टीसाइड के उपयोग जमीन की उर्वरा शक्ति को लंबे समय तक बरकरार रख सकते हैं। इसके अलावा ये पर्यावरण को भी स्वच्छ बनाए रखने में सहायक सिद्ध होंगे। जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए भी जैविक कृषि की जरूरत बहुत बढ़ गई है, लेकिन 131 करोड़ वाले भारत की कृषि प्रणाली में बदलाव एक सुविचारित प्रक्रिया द्वारा ही होना चाहिए, जिसके लिए काफी सोच-विचार, सावधानी व सतर्कता से काम करने की आवश्यकता है।

वर्तमान में जैविक खेती के मार्ग में तकनीकी ज्ञान की कमी, जैविक पदार्थों का अभाव जैविक कृषि की लागत का अधिक होना तथा मार्केट में जागरूकता का अभाव ऐसी समस्याएं हैं, जो कि इस अच्छी पहल के मार्ग में अवरोधक बनी हुई हैं। भारत में कंपोस्ट खाद की कमी, जैविक सामग्री में पोषक तत्त्वों में अंतर, जैव कचरे के संग्रहण की उचित व्यवस्था नहीं है। जैविक खेती आधुनिक खेती की तुलना में महंगी है, जिसके कारण किसानों को सरकार से वित्तीय सहायता की आवश्यकता की जरूरत है। सरकार को जैविक खेती को हिमाचल की जमीन पर उतारने के लिए जहां एक विस्तृत नीति तैयार करनी होगी, वहीं बजट में इसके लिए पर्याप्त धन की भी व्यवस्था करनी होगी। प्रारंभ में इस व्यवस्था को अपनाने में कठिनाइयां तो कई तरह की आएंगी, लेकिन इसके फायदे इतने होंगे कि देश की सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरणीय समस्या, भूमि की उर्वरता में गिरावट, स्वास्थ्य के प्रति खिलवाड़ के प्रति बहुत राहत मिलेगी। तभी पर्यावरणविदों से लेकर सेहत विशेषज्ञ जैविक खेती को अपनाने का आग्रह किसानों से कर रहे हैं। किसान रसायनों को छोड़कर जैविक खेती को अपनाएं, इसके लिए जरूरी है कि किसानों के लिए जागरूकता शिविर चलाकर प्रशिक्षित किया जाए। इसके लिए बजट में धन का बंदोबस्त भी किया जाना चाहिए। इस दिशा में सरकार की नीतियों की पहुंच आम किसान तक पहुंचने में सफल हो गईं, तो निश्चित ही हिमाचल प्रदेश जैविक कृषि के मार्ग में भी नई इबारत लिखने में सक्षम होगा।


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