प्रभावशाली करियर की प्रशासनिक सेवा

By: Feb 1st, 2017 12:08 am

cereerनियोजित विकास की प्रक्रिया एवं कल्याणकारी कार्यों से राज्यों के कार्यों में वृद्धि होने के साथ ही लोक सेवकों की जिम्मेदारियों एवं कर्त्तव्यों में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। वर्तमान में अपने चार्मिंग करियर के कारण आज यह सेवा सभी युवाओं को आकर्षित करती है। चाहे डाक्टर हो, इंजीनियर हो या फिर सफल वकील ही क्यों न हो, हर किसी की अभिलाषा रहती है कि सिविल सेवा परीक्षा पास कर आईएएस या आईपीएस बने…

मूल रूप से अंग्रेजी शब्द ‘ब्यूरोक्रेसी’ से नौकरशाही शब्द बना, लेकिन स्वतंत्रता के बाद लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के साथ ही ब्यूरोक्रेसी को सकारात्मक रूप से लोक सेवक कहा जाने लगा। ब्रिटिश शासन के दौरान विकसित प्रशासनिक ढांचे में स्वतंत्रता के पश्चात बहुत से परिवर्तन हुए। नियोजित विकास की प्रक्रिया एवं कल्याणकारी कार्यों से राज्यों के कार्यों में वृद्धि होने के साथ ही लोक सेवकों की जिम्मेदारियों एवं कर्त्तव्यों में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। वर्तमान में अपने चार्मिंग करियर के कारण आज यह सेवा सभी युवाओं को आकर्षित करती है। चाहे डाक्टर हो, इंजीनियर हो या फिर सफल वकील ही क्यों न हो, हर किसी की अभिलाषा रहती है कि सिविल सेवा परीक्षा पास कर आईएएस या आईपीएस बने। इसी का परिणाम है कि इस परीक्षा में सम्मिलित होने के लिए आवेदकों की संख्या में कई गुना वृद्धि हो चुकी है। प्रशासनिक शक्ति, प्रभाव एवं नियंत्रण के कारण सिविल सेवकों का समाज में भी पर्याप्त सम्मान है। सामाजिक सम्मान एवं मान्यता के साथ-साथ अच्छे वेतन, अन्य सुविधाओं के साथ ही करियर की सुरक्षा लोक सेवक बनने की अभिलाषाओं को और हवा दे देती है। भारतीय युवाओं एवं युवतियों पर टीएन शेषन और किरण बेदी का प्रभाव अब भी है।

राष्ट्रीय एकता की प्रतीक है सिविल सेवा

इस सेवा के अधिकारियों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है, साथ ही इन्हें हटाने या बर्खास्त करने का अधिकार भी राष्ट्रपति को ही है। इसलिए इस सेवा में स्थायित्व भी अधिक है। सही मायनों में सिविल सेवा राष्ट्रीय एकता की प्रतीक है। इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस और इंडियन पुलिस सर्विस अखिल भारतीय सेवा के अंग हैं। दूसरी ओर इंडियन फॉरेन सर्विस एवं इंडियन रेवेन्यू सर्विस केंद्रीय सेवा में आती हैं, परन्तु इन सभी के लिए चयन परीक्षा संयुक्त रूप से संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित की जाती है। अखिल भारतीय सेवा, केंद्र और राज्य, दोनों से समान रूप से संबद्ध है।

लोक सेवा परीक्षा की पद्धति

एकल परीक्षाः 1988 में गठित सतीश चंद्र समिति की अनुशंसा के अनुसार वर्ष 1993 से लोक सेवा परीक्षा एकल एवं संयुक्त परीक्षा के रूप में ली जाती है, जिसके तहत आईएएस, आईएफएस, आईपीएस, ग्रुप ‘ए’ एवं ग्रुप ‘बी’ के अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए परीक्षा होती है।

राष्ट्रीयताः आईएएस एवं आईपीएस के लिए छात्रों को भारत का नागरिक होना आवश्यक है। अन्य सेवाओं के लिए अभ्यर्थी भारतीयों के अतिरिक्त नेपाल एवं भूटान और तिब्बती शरणार्थियों के भी शामिल होने की व्यवस्था है, परंतु वे 1962 से पहले भारत आए हों। आयु सीमा- इस परीक्षा में भाग लेने वाले सामान्य वर्ग के लिए आयु सीमा 21 से 30 वर्ष है। ओबीसी वर्ग के आवेदकों के लिए इसमें 3 वर्ष की एससी एवं एसटी वर्ग के लिए 5 वर्ष की अधिकतम सीमा में छूट है।

शैक्षिक योग्यता – इस परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थी को स्नातक या समकक्ष होना आवश्यक है। डिग्री प्रदान करने वाला विश्वविद्यालय संसद के अधिनियम द्वारा अथवा यूजीसी के तहत मान्यता प्राप्त होना चाहिए। फाइनल ईयर के छात्र भी आवेदक हो सकते हैं।

प्रयासों की संख्या – सामान्य वर्ग के प्रत्येक अभ्यर्थी को चार चांस दिए जाते हैं। ओबीसी वर्ग के लिए परीक्षा में सफल होने के लिए सात चांस दिए जाते हैं, जबकि एससी एवं एसटी वर्गों के लिए चांस की सीमा असीमित है, बशर्ते वे आयु सीमा को पार न करें।

परीक्षा योजना – यह परीक्षा दो चरणों में ली जाती है। प्रथम चरण में प्रारंभिक परीक्षा और द्वितीय चरण में मुख्य परीक्षा।

साक्षात्कार

इस परीक्षा का उद्देश्य लोक सेवा की दृष्टि से व्यक्तिगत,अभिव्यक्ति क्षमता, समाज से, देश से अभ्यर्थी के लगाव संबंधित विचारों को जानने का प्रयास किया जाता है। इसमें विषय से भी संबंधित प्रश्न, समसामयिक तथा नेतृत्व क्षमता को भी आयोग के सदस्य द्वारा परखा जाता है। कुल मिलाकर मुख्य परीक्षा एवं साक्षात्कार के अंकों के योग के आधार पर उम्मीदवारों का रिक्तियों के अनुसार चयन किया जाता है। इसी आधार पर रैंक भी तय किया जाता है।

वेतनमान

इस सेवा के अधिकारियों को सरकारी मानकों के तहत वेतन दिया जाता है। इसके साथ ही अन्य वीआईपी सुविधाएं अतिरिक्त हैं।

महत्त्वपूर्ण भूमिका

सिविल सेवक, केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, नीति निर्माण से लेकर उसके क्रियान्वयन तक में महत्त्वपूर्ण रोल अदा करते हैं। राज्यों मे राष्ट्रपति शासन की अवधि में इनकी प्रभावशीलता और भी बढ़ जाती है।

नौकरी के अवसर

एक आईएएस का करियर एसडीएम से प्रारंभ होता है। आईएफएस का करियर तृतीय सचिव से शुरू होता है, आईपीएस को शुरुआत में एडिशनल एसपी पद दिया जाता है, परन्तु प्रमोशन के साथ ही ये चीफ  सक्रेटरी एवं कैबिनेट सेक्रेटरी तक पहुंच जाते हैं। अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी कैबिनेट सेक्रेटरी तक पहुंच सकते हैं। यहां तक कि आईआरएस अपना करियर तो असिस्टेंट कमिश्नर से प्रारंभ करते हैं, पर बाद में ये विभागीय चेयरमैन भी बन जाते हैं।

आईएएस

इन्हें कुल 21 माह के ट्रेनिंग पीरियड से गुजरना पड़ता है। 4 माह की बेसिक ट्रेनिंग और 2 माह की व्यावसायिक। फिर इन्हें राज्य में 12 महीने का जिला प्रशिक्षण दिया जाता है। पुनः मसूरी में 3 महीने का व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाता है। कुल मिला कर प्रोबेशन के अंतर्गत 21 महीने का प्रशिक्षण चक्र चलता है। चयन के 6 – 8 वर्ष बाद ही ये पूर्ण रूप से जिला कलेक्टर बन पाते हैं।

आईएफएस

भारतीय विदेश सेवा के प्रोबेशन सदस्यों को 36 महीने तक ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी मसूरी में 4 महीने की बेसिक ट्रेनिंग, विदेश सेवा संस्थान नई दिल्ली में 12 महीने की ट्रेनिंग, जिसमें भारत दर्शन यात्रा भी शामिल होती है, 6 महीने तक विदेश मंत्रालय में आवश्यक ट्रेनिंग और 14 महीने का विदेश स्थित किसी भारतीय मिशन में भाषा प्रशिक्षण दिया जाता है।

आईपीएस

इन्हें भी 4 महीने की बेसिक ट्रेनिंग राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी मसूरी में दी जाती है। इस संयुक्त बेसिक ट्रेनिंग के बाद इन्हें सरदार बल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय अकादमी हैदराबाद भेजा जाता है, जहां इन्हें 12 महीने का व्यावसायिक प्रशिक्षण (प्रथम चरण) दिया जाता है। 8 महीने के लिए इन्हें राज्य में जिला स्तर का प्रशिक्षण दिया जाता है और इस अवधि में इन्हें बेसिक तकनीक जानने के लिए ग्रामीण थानों में प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता है। व्यावसायिक प्रशिक्षण के दूसरे चरण में इन्हें 3 महीने गुजारने होते हैं। इस बीच इन्हें सेंट्रल स्कूल फॉर वैपंस एंड टेक्टिक्स में हथियारों का प्रशिक्षण दिया जाता है।

आईआरएस

इन्हें नेशनल एकेडमी ऑफ  कस्टम, एक्साइज एंड नारकोटिक्स फरीदाबाद में ट्रेनिंग दी जाती है, जो 18 महीने चलती है। आईआरएस में ही डायरेक्ट टैक्स वाले उम्मीदवारों को नेशनल एकेडमी ऑफ  डायरेक्ट टैक्स नागपुर में ट्रेनिंग दी जाती है, परंतु बेसिक ट्रेनिंग मसूरी में ही होती है।

प्रमुख संस्थान

लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी, उत्तराखंड

संस्थान का इतिहास

आईसीएस को प्रशासनिक प्रशिक्षण देने के लिए भारत में सर्वप्रथम 1941 में देहरादून में प्रशिक्षण स्कूल प्रारंभ किया गया। इसके बाद दिल्ली में ही मैटकॉफ  हाउस में 1944 में आईएएस प्रशिक्षण स्कूल खोला गया, फिर इसे शिमला में 1955 में खोला गया। अगस्त 1959 में दिल्ली एवं शिमला के स्टाफ  कालेज को एक कर के लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर मसूरी में राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी स्थापित की गई। यहां सिविल सेवकों, जिनमें अखिल भारतीय सेवा एवं केंद्रीय सेवा (ए) और (बी) के अधिकारियों को 4 महीने की सामूहिक बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है।

अन्य प्रमुख संस्थान

* सरदार बल्लभ भाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी, हैदराबाद

*  विदेश सेवा संस्थान, नई दिल्ली

* नेशनल एकेडमी ऑफ  कस्टम, एक्साइज एंड नारकोटिक्स फरीदाबाद (उत्तर प्रदेश)

* नेशनल एकेडमी ऑफ  डायरेक्ट टैक्स,नागपुर (महाराष्ट्र),नई दिल्ली

* राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्थान(हैदराबाद)

* पोस्टल स्टाफ  कालेज, गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

कोचिंग संस्थान

* चाणक्य आईएएस एकेडमी, दिल्ली

* आलोक रंजन आईएएस, दिल्ली

* एंबिशन लॉ, दिल्ली

* संकल्प कोचिंग, दिल्ली

* एट योर डोर, दिल्ली


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