राज्य खेल प्राधिकरण की जरूरत से न हो खेल

By: Feb 3rd, 2017 12:02 am

भूपिंदर सिंह

( लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं )

करोड़ों की अंतरराष्ट्रीय खेल सुविधा के रखरखाव के लिए आज कोई भी कर्मचारी दिखाई नहीं देता है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सत्ता में आते ही घोषणा की थी कि राज्य में खेल प्राधिकरण बनाया जाएगा, मगर अब इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इस पर कोई हलचल दिखाई नहीं देती है...

हिमाचल प्रदेश में खेलों के स्तर को सुधारने के लिए जहां प्रदेश में खेल के लिए जागरूकता लाने की जरूरत है, वहीं पर खेल ढांचे को सुचारू रूप से चलाने के लिए अब राज्य खेल प्राधिकरण की बहुत जरूरत महसूस होने लगी है। राज्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर का खेल ढांचा खड़ा करने का श्रेय भाजपा सरकार में रहे मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को जाता है। धूमल सरकार के समय में राज्य के विभिन्न जिलों में विभिन्न खेलों के लिए अति आधुनिक खेल ढांचे का निर्माण करवाया गया। इंडोर स्टेडियमों में वुडन फ्लोरिंग करवाकर वहां पर भी कबड्डी, वालीबाल व बैडमिंटन आदि खेलों के लिए प्ले फील्ड उपलब्ध करवाई गई है। मगर इस करोड़ों की अंतरराष्ट्रीय खेल सुविधा के रखरखाव के लिए आज कोई भी कर्मचारी दिखाई नहीं देता है। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सत्ता में आते ही घोषणा की थी कि राज्य में खेल प्राधिकरण बनाया जाएगा, मगर अब इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी इस पर कोई हलचल दिखाई नहीं देती है।

हिमाचल प्रदेश में राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग है, जिसका उद्देश्य प्रदेश में युवा गतिविधियों के साथ-साथ खेलों की बढ़ोतरी के लिए कार्य करना भी  है। प्रदेश में विभाग के पास लगभग पचास से अधिक विभिन्न खेलों के प्रशिक्षक कार्यरत हैं, मगर दो-चार को छोड़कर सभी प्रशिक्षक खेल मैदान से कोसों दूर हैं। खेल विभाग के प्रशिक्षकों का कार्य जहां प्रदेश में खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम को आगे तक ले जाना है, वहीं पर वे केवल विभागीय खेल मेलों तक ही सीमित हैं। लगातार प्रशिक्षण कार्यक्रम एक-दो जगह को छोड़कर शायद ही राज्य के किसी हिस्से में चल रहा हो। राज्य में चल रहे दो खेल छात्रावास बिलासपुर तथा ऊना का भी बुरा हाल है। लड़कों के लिए चल रहे ऊना खेल छात्रावास से तो कोई छात्र शायद ही राष्ट्रीय विजेता बना हो। बिलासपुर खेल छात्रावास से कबड्डी में कुछ लड़कियां जरूर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक का सफर पूरा कर पाई हैं, मगर अन्य खेलों का तो वहां भगवान ही रखवाला है। खेल छात्रावासों में प्रदेश के प्रतिभावान किशोर खिलाडि़यों को विभिन्न टेस्टों को पास करने के बाद ही भर्ती किया जाता है, मगर वे आगे चलकर अंतरराष्ट्रीय स्तर तो दूर की बात, राज्य स्तर की खेलों में भी बुरी तरह से पिछड़ते देखे गए हैं। इस सबके लिए वहां कार्यरत प्रशिक्षक भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।

जब पंजाब में खेलों का बुरा हाल होने लग गया था, उसी समय पंजाब ने पंजाब खेल संस्थान की स्थापना की और आज पंजाब एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी चमक बिखेर रहा है। पंजाब खेल संस्थान के अंतर्गत पंजाब सरकार ने अंतरराष्ट्रीय स्तर का अनुभव रखने वाले बेहतरीन प्रशिक्षकों को आकर्षक अनुबंध पर अनुबंधित कर अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम को धार दी। गुजरात, तमिलनाडु आदि राज्यों ने भी अपने-अपने यहां पर उत्कृष्ट खेल परिणाम दिलाने वाले प्रशिक्षकों को अनुबंधित कर अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम को अन्य खेल परिणामों की ओर ले जाने के प्रयास कर रहे हैं। हिमाचल सरकार को भी चाहिए कि वह अपने यहां राज्य खेल संस्थान या राज्य खेल प्राधिकरण बनाकर अब खेल प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करे, उसके लिए अपने यहां अनुभवी प्रशिक्षकों को पंजाब व गुजरात की तर्ज पर अनुबंधित करे तथा विभिन्न जिलों में बने करोड़ों रुपए के अति आधुनिक खेल ढांचे का सदुपयोग करे। अभी भी समय है राज्य में विभिन्न खेलों को एक अच्छा आधार देकर प्रदेश के युवाओं को प्रदेश में प्रशिक्षण प्राप्त कर राष्ट्र व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गौरव दिलाने का मौका जरूर देना चाहिए।

खिलाड़ी की प्रतिभा को निखारने के लिए पहल सरकार को करनी होगी। खिलाड़ी को सुविधाएं मिलेंगी, तो वह अपना सौ फीसदी परिणाम देने की कोशिश करेगा। अगर वह अपनी खेल जरूरतों को अपनी जेब से ही पूरा करेगा, तो एक दिन खेल के प्रति उसका मोह भंग हो जाएगा और उसकी प्रतिभा निखरने से पहले ही लुप्त हो जाएगी। इस तरह सरकारी अनदेखी प्रतिभा को प्रदेश से पलायन के लिए प्रेरित करती है। कमियां बहुत हैं प्रदेश के खेल ढांचे में, कहीं मैदान हैं, तो प्रशिक्षक नहीं हैं। और जहां मैदान हैं, वहां देखभाल करने वाला कोई नहीं है। बिना मैदान और बिना प्रशिक्षक कैसे खिलाडि़यों से मेडल की आस की जा सकती है। कहते हैं न कि जितना गुड़ डालोगे, उतना ही मीठा होगा। जितना हम खिलाडि़यों की खैर-खबर लेंगे, उतनी ही वे अपने खेल के प्रति रुचि दिखाएंगे। सरकार केवल खेलों के लिए बजट तक सीमित न रहे, बल्कि खेल ढांचे से लेकर प्रशिक्षकों तक पूरा ध्यान रखना चाहिए ताकि हम खिलाडियों को मेडल लाने के काबिल बना सकें।

ई-मेल : penaltycorner007@rediffmail.com


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