विकारों से रहें सतर्क

By: Feb 18th, 2017 12:01 am

( सीताराम गुप्ता, दिल्ली (ई-पेपर के मार्फत) )

हम कितने ही चरित्रवान क्यों न हों, यदि हमारे चरित्र रूपी तटबंध में छोटे से सुराख जितना भी दोष आ जाता है, तो वह हमारे संपूर्ण चरित्र को नष्ट करके ही दम लेगा। हम सबका यही प्रयास रहता है कि हम सभी सद्गुणों से संपन्न रहें व हमारा व्यक्तित्व प्रभावशाली हो। इसके लिए हम सत्य का आचरण करते हैं, ईमानदारी से कार्य करते हैं और लोगों से प्रेमपूर्वक व्यवहार करते हैं। जितनी भी अच्छी बातें हो सकती हैं, उन्हें अपने व्यवहार में लाते हैं। इन्हीं सब अच्छी आदतों अथवा सद्गुणों से ही हमारे प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण होता है। लोग भी इन्हीं अच्छी आदतों व सद्गुणों के कारण ही सम्मान देते हैं। लेकिन यह तभी संभव है, जब तक हम अपनी अच्छी आदतों व सद्गुणों को बनाए रखते हैं अथवा हमारे अंदर कोई भी दुर्गुण या विकार उत्पन्न नहीं होता। यदि हमारे अंदर सिर्फ एक विकार आ जाता है या हम जान-बूझकर या असावधानी से किसी गलत आदत के शिकार हो जाते हैं तो नदी के तटबंध में बने छोटे से सुराख से उत्पन्न तबाही की तरह ही जीवन में अर्जित व संचित संपूर्ण तपस्या का नष्ट होना अवश्यंभावी है। जब हमारी चारित्रिक स्थिति अपेक्षाकृत सुदृढ़ होती है और लोग हमें यथेष्ट सम्मान देते हैं, तो हम सोचते हैं कि छोटी-मोटी बातों से हमारे चरित्र या व्यक्तित्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा। दोष हो अथवा गुण दोनों एक संक्रामक बीमारी की तरह होते हैं। यदि व्यक्ति एक अच्छाई पर भी दृढ़ हो जाए तो धीरे-धीरे बाकी की सभी अच्छाइयां भी उसमें आ जाती हैं। इसी प्रकार से एक बुराई भी असंख्य बुराइयों को आकर्षित करने में सक्षम होती है। लोग भी अच्छे लोगों में कोई बुराई नहीं देखना चाहते। यदि हमने अपने चरित्र अथवा प्रभावशाली व्यक्तित्व के निर्माण के लिए परिश्रम किया है तो उसे अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए भी अत्यंत सतर्क व सचेत रहने की उतनी ही अधिक आवश्यकता है।

 


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