स्नान-दान का महापर्व माघ पूर्णिमा

By: Feb 4th, 2017 12:07 am

स्नान-दान का महापर्व माघ पूर्णिमामाघ मास को महात्मा मास भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि आध्यात्मिक उन्नति की दृष्टि से यह महत्त्वपूर्ण है। इस मास में स्नान-दान की विशेष महिमा बताई गई है। भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास और दसवां सौरमास माघ कहलाता है। मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम  माघ नाम पड़ा। ऐसी मान्यता है कि इस मास में शीतल जल में डुबकी लगाने वाले पापमुक्त होकर स्वर्ग लोक जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वयं भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है, अतः इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। यह त्यौहार बहुत ही पवित्र त्यौहार माना जाता हैं। इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्त्व होता है। स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, गरीबों को भोजन, वस्त्र, गुड़, कपास, घी, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है। ऐसी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के पावन अवसर पर महाकुंभ में स्नान करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन चंद्रमा भी अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होते हैं। इस दिन चंद्रमा की किरणें अमृत वर्षा करती हैं, उसका अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पतियों पर पड़ती हैं। अतः इनमें आरोग्यदायक गुण उत्पन्न होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान-दान करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है। मकर राशि में सूर्य का प्रवेश और कर्क राशि में चंद्रमा का प्रवेश होने से माघी पूर्णिमा को पुण्य योग बनता है तथा सभी तीर्थों के राजा (देवता) पूरे माह प्रयाग तथा अन्य तीर्थों में विद्यमान रहने से अंतिम दिन को जप-तप व संयम द्वारा सात्विकता को प्राप्त किया जा सकता है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है, जो पाप का शमन करता है। हर पूर्णिमा का अपना अलग-अलग माहात्म्य होता है, लेकिन माघ पूर्णिमा की बात सबसे अलग है। इस दिन संगम (प्रयाग) की रेत पर स्नान-ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण तो होती ही हैं, साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। माघ माह में देवता पितरगण सदृश होते हैं। पितृगणों की श्रेष्ठता की अवधारणा और श्रेष्ठता सर्वविदित है।

धार्मिक मान्यता

माघ माह के बारे में कहते हैं कि इन दिनों देवता पृथ्वी पर आते हैं। प्रयाग में स्नान-दान आदि करते हैं। माघ पूर्णिमा के दिन सभी देवी-देवता अंतिम बार स्नान करके अपने लोकों को प्रस्थान करते हैं। इसी कारण इस दिन से संगम तट पर गंगा, यमुना एवं सरस्वती की जलराशियों का स्तर कम होने लगता है। मान्यता है कि इस दिन अनेकों तीर्थ, नदी-समुद्र आदि में प्रातः स्नान, सूर्य अर्घ्य, जप-तप, दान आदि से सभी दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति मिल जाती है। शास्त्र कहते हैं कि यदि माघ पूर्णिमा के दिन पुष्य नक्षत्र हो, तो इस दिन का पुण्य अक्षुण हो जाता है। शास्त्रों में एक प्रसंग है कि भरत ने कौशल्या से कहा कि यदि राम को वन भेजे जाने में उनकी किंचितमात्र भी सम्मति रही हो तो वैशाख, कार्तिक और माघ पूर्णिमा के स्नान सुख से वो वंचित रहें। उन्हें निम्न गति प्राप्त हो। यह सुनते ही कौशल्या ने भरत को गले से लगा लिया। इस तथ्य से ही इन अक्षुण्ण पुण्यदायक पर्व का लाभ उठाने का महत्त्व पता चलता है।

कल्पवास

माघ पूर्णिमा कल्पवास की पूर्णता का पर्व है। एक माह की तपस्या इस तिथि को समाप्त हो जाती है। कल्पवासी अपने घरों को लौट जाते हैं। संकल्प की संपूर्ति का संतोष एवं परिजनों से मिलने की उत्सुकता उनके हृदय के उत्साह का संचार है। इसलिए यह स्नान पर्व आनंद और उत्साह का पर्व बन जाता है।

माघ स्नान की महिमा

संगम में माघ पूर्णिमा का स्नान एक प्रमुख स्नान है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है, जो पाप का शमन करता है। निर्णयसिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें, लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ में माघ पूर्णिमा का स्नान इसलिए भी अति महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होता है। साधु संतों का कहना है कि पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पड़ने से शांति की अनुभूति होती है और इसीलिए पूर्णिमा का स्नान महत्त्वपूर्ण है। माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्त्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही शिशिर की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े, इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है।  इस अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी की कथा की जाती है। भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है। सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी का पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है। इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है। सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है। इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती की जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है।


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