कुल्लू में गढ़ीं पर्यटन की परिभाषाएं

By: Feb 24th, 2017 12:01 am

राष्ट्रीय संगोष्ठी में एचपीयू परीक्षा नियंत्रक जेसी नेगी संग अन्य ने रखे विचार

कुल्लू —  पर्यटन के भीतर ही सारे विषय समाहित होते हैं। ‘पर्यटन’ शब्द का फलक काफी विस्तृत है, जब कोई पर्यटक कहीं आता है तो वहां की छवि उसके दिमाग पर रहती है। वह वहां की आबोहवा से प्रभावित होता है इससे भाईचारे की भावना में भी इजाफा होता है। बतौर मुख्यातिथि शिरकत करते हुए यह बात हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के परीक्षा नियंत्रक जीसी नेगी ने कुल्लू के देवसदन में राष्ट्रीय पर्यटन संगोष्ठी के अवसर पर कही। इससे पूर्व संगोष्ठी निदेशक डा. दयानंद गौतम की सरस्वती वंदना के  बोल ‘आओ दीप जलाएं व अंधेरा, अज्ञानता का हो बसेरा’ सरस्वती वंदना को अदीति व श्वेता ने अपनी सुरीली आवाज दी। संगोष्ठी के अवसर पर मुख्यातिथि ने डा. इंद्र सिंह ठाकुर और डा. दयानंद गौतम की पुस्तक ‘काव्य पथ के यायावर अटल बिहारी बाजपेयी’ का भी विमोचन किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी में अभी तक पांच दर्जन से अधिक विद्वानों ने दस्तक दी है। दो दिवसीय संगोष्ठी का स्वागत भाषण सैंज कालेज की प्राचार्या प्रो. सोम प्राकर ने दिया। प्रथम तकनीकी सत्राध्यक्ष प्रो. वाईपी महंत रहे। आमंत्रित वक्ता के रूप में राजेंद्र राजन डीडीआर के संयुक्त निदेशक हमीरपुर ने की। इसमें अन्य प्रतिभागी शिक्षक तथा शोधार्थियों द्वारा शोध पत्र पढ़े गए। संगोष्ठी के माध्यम से ‘दि हिमालयन फोटो सागा’ के  नाम से हरिपुर कालेज में समाजशास्त्र के प्राध्यापक प्रो. सुरेश कुमार के फोटो की प्रदर्शनी भी लगी है। आयोजन सचिव का दायित्य अंग्रेजी के प्राध्यापक प्रो. अशोक शर्मा को सौंपा गया है। दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता डा. कामना महिंदु्र ने की। आमंत्रित वक्ता के रूप में कुरुक्षेत्र विवि के डा. जसवीर सिंह रहे। सायं के सत्र की अध्यक्षता क्षेत्रीय चिकित्सालय कुल्लू के सीएमओ डा. सुशील चंद्र ने की। विप्र इंडिया परिवार राजस्थान के अध्यक्ष डा. उमा शंकर जोशी ने आमंत्रित वक्ता के रूप में शिकरत की। संगोष्ठी निदेशक डा. दयानंद गौतम ने कहा कि संगोष्ठी में पर्यटन को लेकर कई नए विचारों का मिलन हुआ है। इन्हें बाद में पुस्तक का रूप दिया जाएगा।

हमारी पहचान ही हमारा वजूद

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में पर्यटन विभाग की प्रोफेसर डा. सोनिया खान ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि अंधे मुनाफे के कारण हम बाहरी लोगों को अपने क्षेत्र में कारोबार करने की इजाजत दे रहे हैं। इससे हमारी पहचान खत्म हो रही है। दूसरी संस्कृति हम पर हावी हो रही है।


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