आईपीएच स्कीमों पर एफसीए का पेंच
2014 से नहीं मिली मंजूरी, पेयजल संग सिंचाई-सीवरेज की 99 योजनाएं फंसी
शिमला – आईपीएच की 99 योजनाएं फोरेस्ट कंजरवेशन एक्ट के कारण फंसी हुई हैं। वर्ष 2014 से एफसीए क्लीयरेंस के लिए भेजी कई योजनाओं को अब तक मंजूरी नहीं मिल पाई है। इसमें से 40 योजनाएं ऐसी हैं, जिनके लिए एनपीवी की राशि जमा नहीं हुई, जिस पर आईपीएच विभाग ने 31 मार्च तक ये पैसा जमा करवाने की बात कही है। सूत्रों के अनुसार इस संबंध में आला अधिकारियों की एक कमेटी ने रिव्यू किया है, जिसमें सामने आया है कि 99 योजनाओं को फोरेस्ट कंजरवेशन एक्ट के तहत मंजूरी नहीं मिल पा रही है। बार-बार वन विभाग से इस मामले को उठाने के बाद भी अभी तक मंजूरी नहीं मिल पाई है। वह भी तब, जब प्रदेश सरकार ने वन विभाग को जनहित की इन योजनाओं को जल्द से जल्द मंजूरी देने को कह रखा है। ये मामले वन मंत्रालय की एजेंसी को जाते हैं और वहां से इनमें लगातार पेंच फंसाए जा रहे हैं। ऐसे में यहां ग्रामीण क्षेत्रों की पेयजल के साथ-साथ सिंचाई और सीवरेज की योजनाएं सिरे नहीं चढ़ पा रही हैं। 40 स्कीमों जिनमें एनपीवी की राशि जमा होनी है, उसके लिए बजट का प्रावधान हो गया है। हाल ही में सरकार ने अनुपूरक बजट में आईपीएच को यह राशि दी है, जिसे वन विभाग के पास जमा करवाया जाएगा। इसके लिए 31 मार्च तक का टारगेट रखा गया है, लेकिन फिर भी यह स्कीमें अभी मंजूर हो जाएंगी ऐसा नहीं हैं। जानकारी के अनुसार आईपीएच की सबसे अधिक स्कीमें मंडी जिला की हैं, जिन पर फोरेस्ट कंजरवेशन एक्ट में मंजूरी नहीं मिल पा रही है। इनकी संख्या 37 के करीब हैं। इसके अलावा शिमला जिला में ऐसी 18 स्कीमें विचाराधीन हैं, जिनमें अधिकांश का पैसा भी जमा करवा दिया गया है, वहीं कांगड़ा जिला में 13 स्कीमों पर वन मंत्रालय की मंजूरी अपेक्षित है। इसके अलावा प्रदेश में सोलन जिला की तीन, बिलासपुर जिला की तीन, चंबा की पांच, ऊना की दो, हमीपुर की चार, कुल्लू की 13, और लाहुल-स्पीति की एक योजना को वन मंत्रालय से मंजूरी हासिल नहीं हो सकी हैं। वर्ष 2014 से लेकर अब तक लगातार इन मामलों को भेजा जाता रहा है।
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