आर्थिक तंगी से टूटने लगा एवरेस्ट का सपना

By: Mar 24th, 2017 12:02 am

कैथल— बेटे की खुशी के चलते पिता ने अपनी रोजी रोटी की जमीन ही औने- पौने दामों में बेच दी, परंतु मात्र एक दो जगह को छोड़कर कहीं से भी भारत का नाम रोशन करने वाले युवक को कोई सहारा नहीं मिला। पाई के विक्रांत पांचाल ने बताया कि उसके पिता विनोद कुमार के पास मात्र एक एकड़ जमीन थी, जिसमें वे खेती आदि का कार्य करके अपना व अपने परिवार का लालन पोषण कर रहे थे। उनको अब आखिरी बार सबसे ऊंची चोटी माऊंट एवरेस्ट पर देश की आन-बान-शान का प्रतीक तिरंगा फहराने का अवसर मिला है। उसको पहले भी अवसर मिले, परंतु आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण वह पहले अपना यह सपना साकार नहीं कर पाया। अब उसको दोबारा से यह अवसर मिला है और यह अंतिम अवसर है। उन्होंने बताया कि लगभग तीन माह पहले से ही वह जनता, सामाजिक संस्थाओं, जिला प्रशासन तथा सरकार से सहयोग की अपील कर चुका है। इस पर उसको पाई के पूर्व सरपंच कर्णसिंह से एक लाख, केवीएम स्कूल पाई, सरस्वती सीनियर सेकेंडरी स्कूल पाई की ओर से 21 हजार तथा ग्रीन वैली स्कूल पाई की ओर से 11 हजार रुपए की राशि मिल पाई है, जो एक लाख 53 हजार रुपए बनती है। उन्होंने बताया कि इस अभियान पर लगभग 22 लाख से ज्यादा का खर्च आएगा। यह राशि पूरी न होते देख उसके पिता ने अपनी एक एकड़ जमीन पांच लाख में बेच दी। उसने अपने पिता को मना भी किया कि उसके लिए वह जमीन न बेचे, क्योंकि शायद इतनी राशि एकत्र न हो। इस पर उसके पिता ने कहा कि उसको भरोसा है कि उसका यह सपना अवश्य ही पूरा होगा। उसको अब भी लगभग 16 लाख की जरूरत है। विक्रांत ने बताया कि उनका यह दल तीन अप्रैल 2017 से चढ़ाई करेगा। जिसको लेकर उसको एक अप्रैल से पहले इस आर्थिक सहायता की जरूरत है। विक्रांत ने बताया कि इससे पहले भी वह कई रिकार्ड बना चुका है। उसने कन्या कुमारी से लेह लदाख तक साइकिलिंग, 900 फुट गहराई में राष्ट्रीय ध्वज लहराने आदि के रिकार्ड उसके नाम हैं। उसने बताया कि अभी हाल में ही उसकी टीम ने दिल्ली से काठमांडू तक की दूरी मात्र दस दिन में पूरी करके नेशनल रिकार्ड बनाया है। उनकी टीम एक मार्च 2017 को दिल्ली इंडिया गेट से चली थी, जो दस मार्र्च को नेपाल के काठमांडू में पूर्ण हुई।


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