जुड़ाव से पैदा होगा प्रभाव

By: Mar 7th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवालाडा. भरत झुनझुनवाला

( लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं )

अपने पुराने ऐश्वर्य के महिमामंडन, अपनी आंतरिक जनता का दमन और बाहरी जनता को जोड़ने में असफलता के कारण हम गुलाम हुए थे। हमारे सामने चुनौती रोम जैसे हश्र से बचने की है। मात्र मध्यम वर्ग के प्रसन्न होने से हमारी सभ्यता सफल नहीं होगी, जैसा कि रोम के नागरिकों के प्रसन्न होने वह सभ्यता सफल नहीं हुई थी। दलित, मुसलमान, गरीब और पाकिस्तान के नागरिकों को जोड़ेंगे, तो हम अपने वैश्विक गौरव को अवश्य हासिल कर पाएंगे…

आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व हमारे सामने महान चुनौती आ खड़ी हुई। मंगोलों ने बारूद का आविष्कार किया। बारूद से लैस असलाह को लेकर उन्होंने पश्चिम दिशा से हम पर आक्रमण किए। हमारे पूर्वज इनका सामना नहीं कर सके और देश पर मुगलों का राज्य स्थापित हो गया। इसके कुछ सदियों बाद अंग्रेजों की तोपों से लैस सेना ने आक्रमण किया। पुनः हम आक्रमणकारियों का सामना नहीं कर पाए और देश पर अंग्रेजों का राज्य स्थापित हो गया। इतिहासकार आर्नोल्ड टायनबी ने अध्ययन किया है कि सभ्यताएं ऐसी चुनौतियों का सामना करने में किन परिस्थितियों में सफल अथवा असफल होती हैं। उन्होंने पाया कि जब शासक वर्ग जनता को अपने साथ जोड़ लेता है, तो वह ऐसी चुनौतियों का सामना कर लेता है। जब शासक वर्ग जनता को अपने साथ नहीं जोड़ पाता, तो वह फिसल जाता है। जनता अपने निष्ठुर शासक का साथ नहीं देती, बल्कि अपने शासक की क्रूरता से छुटकारा पाने के लिए आक्रमणकारियों का साथ देती है और देश के शासक की पराजय होती है। हम संभवतः इसीलिए फेल हुए। हमारी जनता ने स्वदेशी राजाओं का साथ नहीं दिया था। राजस्थान के डूंगरपुर के आदिवासी क्षेत्र के लोगों ने एक दृष्टांत बताया। एक आदिवासी घी का मटका लेकर अपनी बेटी के घर जा रहा था। रास्ते में पानी बरसा तो उसने जंगल से एक पत्ता तोड़कर मटके के मुंह पर रख दिया। जंगल के गार्ड ने मामले को राजा के समक्ष रखा। राजा ने आदेश दिया कि पत्ते की चोरी के लिए आदिवासी के हाथ काट दिए जाएं। आदिवासी को भनक लगी, तो वह अजमेर के ब्रिटिश नियंत्रण वाले क्षेत्र को भाग गया और अपने प्राणों की रक्षा की। ऐसे अत्याचार से ब्रिटिश हुकूमत ने भारत के आम आदमी को पनाह दी थी, इसलिए देश की जनता ने ब्रिटिश हुकूमत का साथ दिया था। फलस्वरूप भारत गुलाम हो गया। टायनबी कहते हैं कि अपने राज्य को बनाए रखने के लिए आंतरिक जनता के साथ-साथ बाहरी जनता का भी समर्थन हासिल करना जरूरी होता है।

जैसे 1971 में बांग्लादेश की जनता ने हम ‘बाहरी’ भारतीयों का समर्थन किया और अपने घरेलू क्रूर पाकिस्तानी शासकों से छुटकारा पाया। टायनबी की मानें, तो केवल अंदरूनी जनता का समर्थन हासिल करने से बात नहीं बनती है। इसका सुस्पष्ट उदाहरण रोम का है। उस राज्य ने अपने अंदरूनी नागरिकों का समर्थन बखूबी हासिल किया, परंतु सरहद के पार बर्बरों का सहयोग वे हासिल न कर सके। र्बबरों ने रोम पर आक्रमण किया और उस सभ्यता का अंत हो गया। भारत इस समय विश्व शक्ति बनने की ओर बढ़ रहा है। वर्तमान सरकार ने भ्रष्टाचार और काले धन पर नियंत्रण किया है। सरकार द्वारा राफेल फाइटर प्लेन, बुलेट ट्रेन एवं फ्रेट कारीडोर जैसे तमाम भविष्योन्मुखी कदम उठाए जा रहे हैं। देश में उत्साह का वातावरण है, लेकिन हमारे सामने आंतरिक व बाहरी दोनों तरह की चुनौतियां सामने खड़ी हैं। दलित एवं मुसलमान की बेरुखी, आतंकवाद व जम्मू-कश्मीर आंतरिक चुनौतियां हैं। जबकि चीन से सस्ते माल का आयात एवं साइबर अटैक बाहरी चुनौतियां मौजूद हैं। इन चुनौतियों का सामना हम तभी कर पाएंगे, जब हमारे नेतृत्व को आंतरिक और बाहरी जनता का समर्थन हासिल होगा। इस दृष्टि से देखें, तो हमारी परिस्थिति कठिन है। देश में 16 प्रतिशत आबादी दलितों की है। हाल में गुजरात में कुछ दलितों ने बौद्ध धर्म को अपनाया है, जो कि दर्शाता है कि इस समुदाय का समर्थन हमारे नेतृत्व को प्राप्त नहीं है। देश में 18 प्रतिशत मुसलमान हैं। हाल में ट्रेन में मुंबई के एक हाजी साहब से भेंट हो गई। आपने वाजपेयी के कार्यकाल में भाजपा की टिकट पर एमएलए का चुनाव लड़ा था। आज वह भाजपा को छड़ी से भी छूने को तैयार नहीं हैं। तात्पर्य यह कि मुसलमान समुदाय का हमारे नेतृत्व को समर्थन उपलब्ध नहीं है। कश्मीर की जनता हमारे साथ मन से नहीं जुड़ी हुई है। देश के आम आदमी के रोजगार पर मेक इन इंडिया का प्रहार हो रहा है। मध्यम वर्ग के अतिरिक्त शेष सभी जनता नेतृत्व के विमुख दिखती है। नोटबंदी को सरकार गरीबोन्मुख कदम के रूप में दर्शाने में सफल हुई है, परंतु इस कदम के मूल गरीब विरोधी चरित्र को ज्यादा समय तक छिपा कर नहीं रखा जा सकेगा। बाहरी जनता भी विमुख है।

पाकिस्तान के युवा भारत में घुसपैठ करके अपने प्राण न्यौछावर करने को तैयार हैं। पाकिस्तानी युवा हमारे लिए ‘बाहरी’ हुए। हमारा साथ देना तो बहुत दूर की बात है, वे हमारे विरुद्ध खड़े हुए हैं। इनके सामने हमारे युवा पाकिस्तान में घुसकर अपने प्राण न्यौछावर करने को तैयार नहीं हैं। हिंदुओं की अपेक्षा है कि सेना के वेतनभोगी कर्मी यह कार्य करें। नेपाल के गैर-मधेसी हमारे विरुद्ध हैं। बांग्लादेश की जनता इस्लाम धर्म के नाम पर हमारे विरुद्ध है। चीन, श्रीलंका तथा म्यांमार की जनता का भारत के प्रति विशेष स्नेह हो, ऐसा नहीं प्रतीत होता। बलूचों का हमें समर्थन मिल सकता है, परंतु यह कितना गहरा है, यह परखने की जरूरत है। इस समय भारत को आगे बढ़ाने की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि हम अपनी आंतरिक और बाहरी जनता का समर्थन हासिल कर पाते हैं या नहीं। टायनबी की मानें तो किसी नेतृत्व को यह समर्थन तब नहीं मिलता है, जब तक वह भविष्य की ओर देखने के स्थान पर अपने बीते ऐश्वर्य पर फोकस करता है। कुछ वर्ष पूर्व ऋषिकेश में साधुओं की संगोष्ठी में सम्मिलित होने का अवसर मिला था। सभा के अंत में मैंने मंचासीन महामंडलेश्वरजी से पूछा कि क्या कारण है कि पिछले 1000 वर्षों में हिंदू धर्म सिकुड़ता जा रहा है। जवाब में उन्होंने मुझसे पूछा जनेऊ धारण करते हो? चोटी रखते हो? दोनों प्रश्नों पर मेरे नकारात्मक जवाब देने पर उन्होंने कहा ‘मैं आपसे चर्चा नहीं करना चाहता हूं।’ महामंडलेश्वरजी जनेऊ और चोटी के बीते ऐश्वर्य पर टिके हुए थे। हिंदू धर्म के सिकुड़ते आकार, गरीबी, सस्ते चीनी माल का आयात तथा साइबर अटैक जैसे मुद्दे उनके लिए गौण थे। यही पिछले 1000 वर्षों में भारत के हृस का कारण है। अपने पुराने ऐश्वर्य के महिमामंडन, अपनी आंतरिक जनता का दमन और बाहरी जनता को जोड़ने में असफलता के कारण हम गुलाम हुए थे। हमारे सामने चुनौती रोम जेसे हश्र से बचने की है। मात्र मध्यम वर्ग के प्रसन्न होने से हमारी सभ्यता सफल नहीं होगी, जैसा कि रोम के नागरिकों के प्रसन्न होने वह सभ्यता सफल नहीं हुई थी। दलित, मुसलमान, गरीब और पाकिस्तान के नागरिकों को जोड़ेंगे, तो हम अपने वैश्विक गौरव को अवश्य हासिल कर पाएंगे।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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