मंत्र और संगीत में अंतर

By: Mar 25th, 2017 12:05 am

संगीत ध्वनियों की एक सुखद व्यवस्था है। हम संगीत में शब्द जोड़ सकते हैं। इन शब्दों का अर्थ होता है, मगर अर्थ अस्तित्वपरक नहीं होते। अर्थों को हम बनाते हैं। उनका बस मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्त्व होता है। ध्वनि पैटर्न को ठीक से इस्तेमाल करने पर उसका जबरदस्त असर हो सकता है क्योंकि भौतिक अस्तित्व मुख्य रूप से स्पंदनों या ध्वनियों का एक जटिल मिश्रण है। उनकी अस्तित्व संबंधी कोई सच्चाई नहीं है, मगर ध्वनि अस्तित्व संबंधी हकीकत है। वह ऐसा स्पंदन है, जो मौजूद होता है। इन स्पंदनों की हर तरह की व्यवस्था का इंसानी प्रणाली और हमारे माहौल पर अलग-अलग तरह का प्रभाव पड़ता है। यह दिखाने के लिए कुछ प्रयोग किए गए कि किस तरह एक खास तरह का संगीत बजाने पर गऊएं ज्यादा दूध देती हैं। यह सिर्फ उसका एक बेवकूफाना प्रयोग है मगर वास्तव में यह एक सच्चाई है। ध्वनि पैटर्न को ठीक से इस्तेमाल करने पर उसका जबरदस्त असर हो सकता है क्योंकि भौतिक अस्तित्व मुख्य रूप से स्पंदनों या ध्वनियों का एक जटिल मिश्रण है। अगर आप ध्वनियों को एक खास पैटर्न में व्यवस्थित करें, तो उसका एक खास असर होता है। इस संस्कृति में हमने बहुत से अलग-अलग पैटर्न खोजे और मंत्रों को बनाया। मंत्र ध्वनियों की तकनीकी रूप से सटीक व्यवस्था है मगर जरूरी नहीं है कि वह सुरुचि की दृष्टि से सुखद हो। मंत्र में सौंदर्य के लिहाज से आनंद के बनिस्बत तकनीकी शुद्धता का महत्त्व अधिक होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत मंत्रों का एक संशोधन है, जहां सौंदर्यबोध और सुरुचि भी ध्वनियों की तकनीकी व्यवस्था जितने ही अहम होते हैं। भारतीय शास्त्रीय संगीत, संगीत का एकमात्र ऐसा रूप है, जो एक फार्मूले पर आधारित होता है, जिसका कई अलग-अलग क्रमों और मिश्रणों में प्रयोग किया जा सकता है। संगीत के बाकी सभी रूप सिर्फ सुनने में अच्छा लगने के लिए बजाए जाते हैं। संगीत एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें सीखना शुरू करने पर शुरुआत में वह संख्याओं की तरह महसूस होता है। कुछ समय बाद, वह ज्यामितीय पैटर्न की तरह लगता है। उनमें तकनीकी शुद्धता नहीं होती। भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ-खास तौर पर दक्षिणी भारत में बहुत गणित जुड़ा होता है। संगीतकार हमेशा गिनती करता रहता है, और आखिरकार गिनती किए बिना गिनना सीख जाता है क्योंकि संगीत का पूरा ढांचा एक गणितीय फार्मूले पर बना है। जब मैं गणितीय फार्मूला कहता हूं, तो हमें समझना चाहिए कि पूरे भौतिक ब्रह्मांड को गणितीय फार्मूले में समेटा जा सकता है। आधुनिक विज्ञान यही करने की कोशिश कर रहा है। संगीत एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें सीखना शुरू करने पर शुरुआत में वह संख्याओं की तरह महसूस होता है। कुछ समय बाद, वह ज्यामितिय पैटर्न की तरह लगता है।  उसके बाद वह किसी नदी की तरह बहता है, जो इस पर निर्भर करता है कि आपका उस पर कितना अधिकार है। जीवन के संगीत को आप अपने अंदर से कैसे पा सकते हैं? जिसने भी सबसे पहले इस पूरी संगीतमय प्रक्रिया को शुरू किया, उसके पास कोई टेप रिकार्डर या सिखाने वाला नहीं था। किसी ने उसे अपने भीतर घटित होने दिया। घटित होने दिया का मतलब है कि अगर आप मौन हो जाएं, मौन से मेरा मतलब सिर्फ आपका मुंह बंद करने से नहीं है। अगर आपके दिमाग में कोई हलचल नहीं होगी, तो आप जीवन का संगीत सुन सकते हैं। इसकी वजह यह है कि इनसानी तंत्र की एक खास बनावट और पैटर्न है। उसमें एक खास ज्यामिति होती है और उससे एक वाइब्रेशन जुड़ा होता है। इसी तरह अगर आप किसी पेड़ को देखें, तो उससे एक खास वाइब्रेशन जुड़ा होता है। अगर आप उस स्पंदन को महसूस कर सकें, तो हम इसे ‘ऋतंभरा प्रज्ञा’ कहते हैं। ऋतंभरा प्रज्ञा का मतलब है कि आप आकार और ध्वनि के संबंध के प्रति जागरूक हो जाते हैं। अगर आप पेंट करना चाहते हैं, तो आपको एक खाली कैनवास की जरूरत होती है। इसी तरह, मौन होने पर ही ध्वनि की संभावना होती है। अगर आप किसी आकार से ध्वनि का बोध कर सकते हैं, तो इस आकार का वर्णन करने के लिए अलग-अलग तरीकों से इस ध्वनि का प्रयोग करना सीख जाते हैं और सिर्फ एक ध्वनि का उच्चारण करते हुए इस आकार को छू-महसूस कर सकते हैं। इस ध्वनि की तकनीकी अभिव्यक्ति को मंत्र कहा जाता है। जब यही सौंदर्य के साथ अभिव्यक्त होता है तो उसे संगीत कहा जाता है। मगर सबसे महत्त्वपूर्ण चीज यह है कि अगर आप अंदर से सीखना चाहते हैं, तो आपको मौन होना होगा। अगर आप संगीत को जानना चाहते हैं, तो संगीत की ओर मत देखिए। आपको मौन को जानना चाहिए। अगर मौन नहीं होगा, तो ध्वनि बस निरर्थक चीजों का एक घालमेल है।                      -सद्गुरु जग्गी वासुदेव


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