ये पत्थरबाज !
Mar 31st, 2017 12:01 am
( डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )
नमक खाते हिंदोस्तानी, लेग-पेग पाकिस्तानी,
कोड़े मारें, खाल उधेड़ें, याद कराएं उनको नानी।
मां को निर्वस्त्र करते, हैं आका मलिक-गिलानी,
उन्हें सड़ाएं काल कोठरी या भेजें काला-पानी।
युवा बने कठपुतली, खलनायक करते मनमानी,
जीजा के घर पड़ोस में, चल समेट दाना-पानी।
मां का मोल लगाते नित, भारत होता पानी-पानी,
जल्दी मुंह तोड़ो, रोज-रोज क्यों मुंह की खानी?
सैनिक होते रोज घायल, करने देते क्यों मनमानी?
जन्नत को दोजख कर डाला, डाकू मीर, गिलानी।
यूपी-बिहार बसाएं, घाटी अब खाली करवानी,
घाटी वाले जाएं पाक, अब तक खूब की मनमानी।
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