श्री विश्वकर्मा पुराण

By: Mar 11th, 2017 12:05 am

यह देखकर भोले अपनी समाधि में से चलायमान हुए तथा दैत्यों के ऊपर स्वयं प्रसन्न होकर उनको वरदान देने को तत्पर हुए शंकर जी के चरणों में गिर पड़े तथा अनेक प्रकार से भगवान की स्तुति करने लगे…

कच के ऊपर आई यह आपत्ति देखकर बृहस्पति गुरु भी घबराकर बोले हे देव! इसके बाद मैंने शुक्राचार्य का मन में स्मरण किया और इस मुसीबत में से आपने हमको उबारा तथा मेरे पुत्र को आपने फिर से रूप गुण संपन्न बनाया। इसके बाद हम असुरों को युद्ध में जीतने लगे। असुर घबराकर अंदर ही अंदर सोच कर दैत्यों में श्रेष्ठ अंधक आपके पास आकर आपकी सेवा में रहा और बाकी के कुरंग बगैरह दैत्य शंकर को प्रसन्न करने के लिए कैलाश पर्वत पर गए। हे देव! कैलाश पर्वत के ऊपर जाकर इन अत्यंत दुराचारी दैत्यों ने शंकर का उग्र तप किया, उनकी तपस्या के ताप से सारा विश्व जलने लगा। यह देखकर भोले अपनी समाधि में से चलायमान हुए तथा दैत्यों के ऊपर स्वयं प्रसन्न होकर उनको वरदान देने को तत्पर हुए शंकर जी के चरणों में गिर पड़े तथा अनेक प्रकार से भगवान की स्तुति करने लगे। यह देखकर शंकर जी अत्यंत प्रसन्न हुए, इसके बाद दैत्यों ने भगवान शंकर से अपनी सारी बीती हुई कथा कही। इसके बाद अपना हमेशा का साथी और महान योद्धा अंधक अपने पक्ष में से जाकर दुश्मनों के साथ मिल गया है। इस तरह सभी बातें बताईं फिर उन्होंने शंकर जी से अपनी मदद के लिए अनेक प्रकार से विनती की। प्रसन्न हुए शंकर ने दानवों की विनती स्वीकार करके देवताओं के सामने युद्ध में दानवों की मदद करने के लिए वचन दिया और जब देव और दानवों के बीच संग्राम की शुरुआत हुई तब तीन नेत्र वाले ऐसे देवाधिदेव दानवों के पक्ष में रहकर बहुत क्रोध के साथ वह देवताओं को रण में रौंदने लगे जिनका क्रोध सारे संसार को भस्मीभूत करने की शक्ति रखने वाले शंकरजी इस समय युद्ध के मैदान में भयंकरता के रूप मे हैं तथा कोई भी देवता उनके सामने खड़े रहने की हिम्मत नहीं करता और अब वे बृहस्पति सहित सभी देवता दुखी होकर श्री विश्वकर्माजी से बोले, हे देवधिदेव! देवताओं के माथे पर आए हुए इस संकट को उबारने के लिए आपके सिवा दूसरा कोई समर्थ नहीं। इसलिए आप अपने इन पुत्रों के ऊपर कृपा करो तथा उनका यह दुख शीघ्र दूर करो, क्योंकि अब दैत्यों का त्रास सहन करने की देवताओं में जरा भी शक्ति नहीं रही है और इसी से हम आपकी शरण में आए हैं। हे भगवान! हे सबके सर्जन तथा पालक अधर्म तथा दुष्टों का संहार करने के लिए आप अनेक लीलाओं को करने वाले हैं। इसलिए हे प्रभो सत्य के आश्रय में हुए देवता इस समय अनाथ जैसे हो गए हैं तो उनको आश्रय देकर आप सनाथ बनाओ। बृहस्पति के ऐसे दयाजनक वचन सुनकर दया के सागर ऐसे परम कृपालु परमात्मा कि जो देवाताओं का रक्षण करने के लिए निरंतर तत्पर रहते हैं प्रभु बोले, हे देवताओ! में तुमको सब तरह से सुखी देखना चाहता हूं फिर भी तुम्हारे सामने मुसीबतें आती हैं उनका तुम हिम्मत से सामना करना हमेशा सत्य की ही विजय होती है।


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