सामंजस्य गढ़ने का धर्म

By: Mar 25th, 2017 12:05 am

हम मन में मैल लिए फिरते हैं और हम मानसिक विष को प्रकट करने के लिए अवसरों की प्रतीक्षा में रहते हैं। झगड़ालू व्यक्ति जरा-जरा सी बातों में झगड़ों के लिए अवसर ढूंढा करते हैं। परिवार में कोई न कोई ऐसा झगड़ालू व्यक्ति, जिद्दी बच्चा होना साधारण सी बात है।    इन सबको भी विस्तृत और सहानुभूतिपरक दृष्टिकोण से ही निरखना चाहिए। तुम्हें एक दूसरे के भावों, दिलचस्पी, रुचि, दृष्टिकोण, स्वभाव आयु का ध्यान रखना अपेक्षित है। किसी को वृथा सताना या अधिक कार्य लेना बुरा है…

दूसरों के लिए कार्य करना, अपने स्वार्थों को तिलांजलि देकर दूसरों को आराम पहुंचाना सृष्टि का यही नियम है। कृषक हमारे निमित्त अनाज उत्पन्न करता है, जुलाहा वस्त्र बुनता है, दर्जी कपड़े सीता है, राजा हमारी रक्षा करता है। हम सब अकेले काम नहीं कर सकते। मानव जाति में पुरातन काल से पारस्परिक लेन-देन चला आ रहा है। परिवार के प्रत्येक सदस्य को इस त्याग, प्रेम, सहानुभूति की नितांत आवश्यकता है। जितने सदस्य हैं सबको आप प्रेम सूत्र में आबद्ध कर लीजिए। प्रत्येक का सहयोग प्राप्त कीजिए, प्यार से उनका संगठन कीजिए।इस दृष्टिकोण को अपनाने से छोटे-बड़े सभी झगड़े नष्ट होते हैं। अकसर छोटे बच्चों की लड़ाई बढ़ते-बढ़ते बड़ों को दो हिस्सों में बांट देती है। पड़ोसियों में बच्चों की लड़ाइयों के कारण युद्ध ठन जाता है। स्कूल में बच्चों की लड़ाई घरों में घुसती है। कलह बढ़कर मार-पीट तक पहुंचती है और मुकदमेबाजी की नौबत आती है। उन सबके मूल में संकुचित वृत्ति, स्वार्थ की कालिमा, व्यर्थ वितंडावाद, दुरभिसंधि इत्यादि दुर्गुण सम्मिलित हैं। हम मन में मैल लिए फिरते हैं और हम मानसिक विष को प्रकट करने के लिए अवसरों की प्रतीक्षा में रहते हैं। झगड़ालू व्यक्ति जरा-जरा सी बातों में झगड़ों के लिए अवसर ढूंढा करते हैं। परिवार में कोई न कोई ऐसा झगड़ालू व्यक्ति, जिद्दी बच्चा होना साधारण सी बात है। इन सबको भी विस्तृत और सहानुभूतिपरक दृष्टिकोण से ही निरखना चाहिए। तुम्हें एक दूसरे के भावों, दिलचस्पी, रुचि, दृष्टिकोण, स्वभाव आयु का ध्यान रखना अपेक्षित है। किसी को वृथा सताना या अधिक कार्य लेना बुरा है। उद्धत स्वभाव का परित्याग कर प्रेम और सहानुभूति का व्यवहार करना चाहिए। कुटिल व्यवहारों के दोषों से जैसे अपना आदमी पराया हो जाता है, अविश्वासी और कठोर बन जाता है, वैसे ही मृदुल व्यवहार से कट्टर शत्रु भी मित्र हो जाता है। विश्व में साम्यवाद की अवतारणा के लिए परिवार से ही श्रीगणेश करना उचित है। न्याय से मुखिया को समान व्यवहार करना चाहिए।

परिवार के युवक तथा उनकी समस्याएं

प्रायः युवक स्वच्छंद प्रकृति के होते हैं और परिवार के नियंत्रण में नहीं रहना चाहते। वे उच्छृंखल प्रकृति, पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित, हलके रोमांस से वशीभूत पारिवारिक संगठन से दूर भागना चाहते हैं। यह बड़े परिताप का विषय है। युवकों के झगड़ों के कारण ये हैं  कमाई का अभाव,   प्रेम संबंधी अड़चनें, घर के सदस्यों का पुरानापन और युवकों की उन्मुक्त प्रकृति,  कुसंग,  पत्नी का स्वच्छन्द प्रिय होना तथा पृथक घर में रहने की आकांक्षा,  विचार संबंधी पृथकता-पिता का पुरानी धारा के अनुकूल चलना पुत्र का अपने अधिकारों पर जमे रहना,  जायदाद संबंध बंटवारे के झगड़े। इन पर पृथक-पृथक विचार करना चाहिए। यदि युवक समझदार और कर्त्तव्यशील हैं, तो झगडे़ का प्रसंग ही उपस्थित न होगा। अशिक्षित, अपरिपक्व युवक ही आवेश में आकर बह जाते हैं और झगड़े कर बैठते हैं। एक पूर्ण शिक्षित युवक कभी पारिवारिक विद्वेष या कलह में भाग न लेगा। उसका विकसित मस्तिष्क इन सबसे ऊंचा उठ जाता है। वह जहां अपना अपमान देखता है, वहां स्वयं ही हाथ नहीं डालता।  कमाई का अभाव झगड़ों का एक बड़ा कारण है। निखट्टू पुत्र परिवार में सबकी आलोचना का शिकार होता है। परिवार के सभी सदस्य उससे यह आशा करते हैं कि परिवार की आर्थिक व्यवस्था में हाथ  बंटाएगा। जो युवक किसी पेशे-व्यवसाय के लिए प्रारंभिक तैयारी नहीं करते, वे समाज में फिट नहीं हो पाते।  हमें चाहिए कि प्रारंभ से ही घर के युवकों के लिए काम तलाश कर लें, जिससे बाद में जीवन में प्रवेश करते समय कोई कठिनाई पैदा न हो।  संसार कर्मक्षेत्र है। यहां हम में से प्रत्येक को अपना कार्य समझना तथा उसे पूर्ण करना है। हममें जो प्रतिभा, बुद्धि, अज्ञात शक्तियां हैं, उन्हें विकसित कर समाज के लिए उपयोगी बनाना चाहिए।


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App