हमारी शरीर यात्रा

By: Mar 25th, 2017 12:05 am

श्रीराम शर्मा

हमारी शरीर यात्रा जिस रथ पर सवार होकर चल रही है, उसके कलपुर्जे कितनी विशिष्टताएं अपने अंदर धारण किए हुए हैं। हम कितने समर्थ और कितने सक्रिय हैं। इस पर हमने कभी विचार ही नहीं किया। बाहर की छोटी-छोटी चीजों को देखकर चकित हो जाते हैं और उनका बढ़ा-चढ़ा मूल्यांकन करते हैं, पर अपनी ओर अपने छोटे-छोटे कलपुर्जों की महत्ता की ओर कभी ध्यान तक नहीं देते। यदि उस ओर भी कभी दृष्टिपात किया होता, तो पता चलता कि अपने छोटे से छोटे अंग, अवयव कितनी जादू जैसी विशेषता और क्रियाशीलता अपने में धारण किए हुए हैं। उन्हीं के सहयोग से हम अपना सुरदुर्लभ मनुष्य जीवन जी रहे हैं। विशिष्टता मानवी काया के रोम-रोम में संव्याप्त है। आत्मिक गरिमा पर विचार करना पीछे के लिए छोड़कर मात्र कार्य संरचना और उसकी क्षमता पर विचार करें, तो इस क्षेत्र में भी कुछ अद्भुत दिखता है।  शरीर रचना से लेकर मनःसंस्थान और अंतःकरण की भाव संवेदनाओं तक सर्वत्र असाधारण अद्भुत दृष्टिगोचर होता है। अन्यथा एक ही घटक पर कलाकार का इतना श्रम और कौशल नियोजित होने की क्या आवश्यकता थी। यह मात्र संयोग नहीं है और न इसे रचनाकार का कौतूहल कहा जाना चाहिए। मनुष्य को विशेष प्रयोजन के लिए बनाया गया। इस विशेष को संपन्न करने के लिए उसका प्रत्येक उपकरण इस योग्य बनाया गया है कि उसके कण-कण में विशेषता देखी जा सके। शरीर पर दृष्टि डालने से सबसे पहले चमड़ी नजर आती है। मोटे तौर से वह ऐसी लगती है, मानो शरीर पर कोई मोमी कागज चिपका हो। बारीकी से देखने पर प्रतीत होता है कि उसमें भी पूरा कारखाना काम कर रहा है। एक वर्ग इंच त्वचा में प्रायः 72 फुट लंबी तंत्रिकाओं का जाल बिछा होता है। इतनी ही जगह में रक्त नलिकाओं की लंबाई नापी जाए, तो वे भी 12 फुट से कम न बैठेंगी। यह रक्त वाहनियां सर्दी में सिकुड़ती और गर्मी में फैलती रहती हैं ताकि तापमान का संतुलन ठीक बना रहे। चमड़ी की सतह पर प्रायः 2 लाख स्वेद ग्रंथियां होती हैं, जिनमें से पसीने के रूप में हानिकारक पदार्थ बाहर निकलते रहते हैं। पसीना दिखता तो तब है, जब वह बूंदों के रूप में बाहर आता है, वैसे वह धीरे-धीरे रिसता सदा ही रहता है। त्वचा देखने में एक प्रतीत होती है, पर उसके तीन विभाग किए जा सकते हैं। ऊपरी चमड़ी, भीतरी चमड़ी और सब क्यूटेनियस टिश्यू। नीचे वाली तीसरी परत में रक्त वाहिनियां, तंत्रिकाएं और वसा के कण होते हैं। इन्हीं के द्वारा चमड़ी हड्डियों से चिपकी रहती है। आयु बढ़ने के साथ जब ये वसा कण सूखने लगते हैं, तो त्वचा पर झुर्रियां लटकने लगती हैं। भीतरी चमड़ी में तंत्रिकाएं रक्त वाहिनियां रोम कूप, स्वेद ग्रंथियां तथा तेल ग्रंथियां होती हैं। इन तंत्रिकाओं को एक प्रकार से संवेदनावाहक टेलीफोन के तार कह सकते हैं। ये त्वचा स्पर्श की अनुभूतियों को मस्तिष्क तक पहुंचाते हैं और वहां के निर्देश संदेशों को अवयवों तक पहुंचाते हैं। त्वचा के भीतर घुसें तो मांसपेशियों का ढांचा खड़ा है। उन्हीं के आधार पर शरीर का हिलना-डुलना, मुड़ना, चलना, फिरना संभव हो रहा है। शरीर की सुंदरता और सुडौलता बहुत करके मांसपेशियों की संतुलित स्थिति पर ही निर्भर रहती है।


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