स्वास्थ्य प्रणाली को पोषण की दरकार

By: Mar 21st, 2017 12:07 am

newsकर्म सिंह ठाकुर

(लेखक, सुंदरनगर, मंडी से हैं)

निजी क्षेत्र का कर्मचारी आज सरकारी कर्मचारी अपेक्षा बेहतर सेवाएं दे रहा है। क्यों न प्रदेश सरकार ऐसी व्यवस्था करे, जिससे सरकारी कर्मचारी, निजी कर्मचारी की कार्य संस्कृति व पद्धति अपनाने पर मजबूर हो। जब इस कार्य संस्कृति का आगाज होगा, तभी सरकार की सेवाओं की धरातलीय पहुंच भी सुनिश्चित होगी…

हमारा खान-पान, दिनचर्या, व्यवसाय, पहनावा, रहन-सहन, वार्तालाप सब कुछ पाश्चात्य सभ्यता के रंग में रंग चुका है। यही कारण है कि आज हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त है। जब कोई व्यक्ति किसी बीमारी से ग्रस्त होता है, तभी उसे स्वास्थ्य के मूल्य का पता चलता है। बढ़ती महंगाई में जहां परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल होता जा रहा है, वहीं बीमारियों से जूझता आम आदमी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाता है। निजी अस्पतालों में चिकित्सा सेवाएं बहुत महंगी हैं तथा सरकारी अस्पतालों में लंबी-लंबी कतारें, अव्यवस्था तथा भाई-भतीजावाद प्रदेश के हर अस्पताल में देखने को मिलता है। कभी हड़ताल से अस्पताल व्यवस्था थम जाती है, तो कभी डाक्टर साहब की वीआईपी ड्यूटी, प्रशिक्षण में तैनाती इस कद्र प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में हावी है कि आम आदमी को किसी छोटी सी बीमारी के उपचार के लिए कई बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। स्वास्थ्य के साथ ऐसा खिलवाड़ आखिर कहां तक उचित है और इसका जिम्मेदार कौन है?

प्रदेश की 89.96 प्रतिशत जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। कृषि व बागबानी पर निर्भरता लगभग 62 प्रतिशत है। कृषि में व्यस्त किसान अपनी सेहत पर बहुत ही कम ध्यान देता है। जब कभी बीमार पड़ भी जाता है, तब वह पास के स्वास्थ्य केंद्र में जाकर उपचार करवाता है। गंभीर बीमारी पर तहसील या जिला स्तर के अस्पतालों में जाता है। यही कारण है कि ग्रामीण निवासी, शहरी लोगों की अपेक्षा अधिक बीमार रहते हैं। इन लोगों का उपचार का एकमात्र केंद्र सरकारी अस्पताल ही होता है। यहां भी सरकारी अस्पतालों ने डाक्टरों की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं में बरती जाने वाली कोताही व लापरवाही का वास्तविक खामियाजा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को भुगतना पड़ता है। स्वास्थ्य सेवाओं का संचालन स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा किया जाता है। हर वर्ष करोड़ों रुपए का बजट स्वास्थ्य पर खर्च होता है। प्रदेश सरकार ‘मुफ्त दवा नीति’ के तहत 56 प्रकार की दवाएं मुफ्त में उपलब्ध करवा रही है। नाहन, चंबा, हमीरपुर में नए मेडिकल कालेज खोले गए हैं। लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कालेज नेरचौक का सरकार द्वारा अधिग्रहण कर लिया गया है। इसके अतिरिक्त आईजीएमसी शिमला व टांडा मेडिकल कालेज पहले से ही स्थापित हैं। प्रदेश के लिए एक अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान स्वीकृत किया गया है, जिसे बिलासपुर में स्थापित किया जा रहा है। प्रदेश में स्वास्थ्य संस्थानों व कालेजों का नेटवर्क बढ़ता ही जा रहा है, जो कि उन्नति का प्रतीक है। लेकिन इन संस्थानों की वास्तविकता का अंदाजा व सुविधाओं का आकलन हाल ही में मेडिकल काउंसिल के निरीक्षण से जगजाहिर हुआ है। इसमें कालेजों में आधारभूत आवश्यकताओं की कमी तथा विशेषज्ञ डाक्टरों व प्रोफेसरों की तैनाती का न होना स्वास्थ्य सेवाओं में विफलता का एहसास करवाता है। नए संस्थान क्षेत्रवाद, वोट बैंक को बढ़ावा देने के लिए नहीं खोले जाने चाहिए। शिक्षा व स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में तो सरकार को खास सजगता बरतनी चाहिए। प्रदेश सरकार करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन धरातलीय वास्तविकता कुछ और ही है।

प्रदेश में विशेषज्ञ डाक्टरों की तो कमी है ही साथ में ग्रामीण क्षेत्रों में तो कोई भी विशेषज्ञ डाक्टर अपनी सेवाएं नहीं देना चाहता। प्राथमिक उपचार केंद्रों के साथ-साथ तहसील व जिला अस्पतालों में भी डाक्टरों की कमी व प्रशासन का लचीला रवैया ही देखने को मिलता है। सरकारी लैबों में टेस्टों की सुविधाओं के नाम पर महज औपचारिकताएं ही होती हैं। कहीं न कहीं सरकारी क्षेत्र का कर्मचारी व अधिकारी नौकरी पाने तक ही संघर्षरत दिखता है, उसके बाद व अपनी जिम्मेदारी व दायित्व को भूल जाता है। यही कारण है कि निजी क्षेत्र का कर्मचारी आज सरकारी कर्मचारी के बगल में बैठकर बेहतर सेवाएं दे रहा है। क्यों न प्रदेश सरकार ऐसी व्यवस्था करे, जिससे सरकारी कर्मचारी, निजी कर्मचारी की कार्य संस्कृति व पद्धति को अपनाने पर मजबूर हो। जिस दिन इस कार्य संस्कृति का आगाज होगा, उसी दिन से सरकार की सेवाओं की धरातलीय पहुंच भी सुनिश्चित होगी। इस व्यवस्था को अपनाने के लिए सरकार को कोई विशेष सामग्री व उपकरणों को भी खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और न ही किसी तरह का वित्तीय बोझ पड़ेगा। इसके साथ में सरकारी व निजी अस्पतालों के डाक्टरों की मिलीभगत व लापरवाही पर शिकंजा कसना भी जरूरी हो गया है।

हाल ही में पश्चिम बंगाल की सरकार ने विधानसभा में मेडिकल सेवाओं में लापरवाही व कोताही बरतने वाले डाक्टरों के खिलाफ एक बिल पास किया, जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि यदि डाक्टर की लापरवाही से मरीज में इंजरी के केस में तीन लाख से पांच लाख का जुर्माना तथा मृत्यु पर दस लाख का हर्जाना देना होगा। इस बिल से डाक्टर साहब की लापरवाही व कोताही पर जवाब सुनिश्चित होगा, आम आदमी को बहुत बड़ा लाभ होगा। इस तरह से जन लाभदायी बिल अन्य राज्यों में भी अमल में लाने की आवश्यकता होगी। प्रदेश सरकार जहां स्वास्थ्य में भारी-भरकम राशि खर्च कर रही है, तो सरकार का दायित्व बनता है कि किसी डाक्टर की लापरवाही से किसी भी नागरिक की जान न जाए तथा उसे हरसंभव सुविधा सरकारी अस्पतालों में ही उपलब्ध हो। एक सजग व जागरूक हिमाचली होने के नाते सरकार का ध्यान स्वास्थ्य सेवाओं की धरातलीय पहुंच सुनिश्चित करने की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है। प्रदेश सरकार मौजूदा अधोसंरचना का बेहतर इस्तेमाल करके आधुनिक सुविधाओं का सही उपयोग करना चाहिए, ताकि हर हिमाचली को सरकारी संस्थानों में उपचार मिल सके।

ई-मेल : ksthakur25@gmail.com


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