इस बार सड़क-शिक्षा पर मौन रहा बजट सत्र

By: Apr 2nd, 2017 12:15 am

सदन में टकराते रहे नेताओं के अहम, 18 बैठकों में पूछे गए 601 सवाल

NEWSशिमला— वीरभद्र सरकार का यह अंतिम बजट सत्र था, जिसमें न तो शिक्षा और न ही सड़क जैसे महत्त्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हो सकी। आम व्यक्ति भी शिक्षा के व्यवसायीकरण और सड़कों की दशा को लेकर इस सत्र की ओर टकटकी लगाए बैठा था। शायद यह पहला मौका था कि आशा कुमारी जैसी वरिष्ठ नेत्री व विधायक राकेश कालिया ने अपने चुनाव क्षेत्रों की चिंता को भांपते हुए सरकार को आईना दिखाया। नेताओं के अहम इस सत्र के दौरान कैसे टकराते हैं, यह देखने को मिला। भोरंज उपचुनाव की छाया में संपन्न हुआ यह सत्र नियम-130 पर एक भी चर्चा नहीं कर सका। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने कई मौकों पर विपक्ष पर भारी पड़ने का भी प्रयास किया, वहीं नेता प्रतिपक्ष प्रो. धूमल ने आर्थिक नजरिए से सरकार को असलियत दिखाने में आंकड़ों की जुबानी कसर नहीं छोड़ी। विपक्ष की तरफ से विधायक सतपाल सत्ती, डा. राजीव बिंदल, रणधीर शर्मा, सरवीण चौधरी व कर्नल इंद्र सिंह ने खूब जौहर दिखाए, जबकि सत्तापक्ष की तरफ से मुख्यमंत्री के साथ स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह की परफार्मेंस देखने लायक थी। मंत्रियों में कर्नल धनीराम शांडिल, मुकेश अग्निहोत्री व सुधीर शर्मा ने भी अच्छा प्रदर्शन किया। मौजूदा सरकार के साढ़े चार वर्ष के कार्यकाल के दौरान शायद यह पहला सत्र था, जिसमें अंतिम रोज मुख्यमंत्री के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया, उनकी याचिका खारिज कर दी गई, मगर कांग्रेस इस मामले में सदन के भीतर विपक्ष के हाथों न फंसते हुए पतली गली से निकलने में कामयाब रही। हालांकि सदन के भीतर प्रो. धूमल के साथ विधायक रविंद्र रवि ने सरकार को इस मसले पर घेरने का प्रयास भी किया। बजट सत्र के दौरान 18 बैठकों में कुल 601 सवाल पूछे गए, जिनमें 422 तारांकित, 179 अतारांकित सवाल पूछे गए। नियम 62 के तहत सात और 101 के तहत तीन और 324 के तहत भी सात मामले लगे। इस दौरान विभिन्न समितियों द्वारा 56 प्रतिवेदन भी प्रस्तुत किए गए।

पत्रकारों का लंच विधानसभा पर भारी

इस बार फिर से एक विधायक के निशाने पर मीडिया रहा। उनका तर्क था कि विधायकों के लाखों के वेतन भत्तों को लेकर मीडिया खबरें छापता है, मगर एक खबर यह भी छापी गई कि माननीयों को 30 रुपए में भर पेट खाना, जिसमें चार सब्जियों के साथ मीट या चिकन, सलाद, रायता व तंदूरी रोटी के साथ चावल भी मिलते हैं। इसके अलावा 10 रुपए में जी भर कर स्वीट डिश का भी लुत्फ उठाया जाता है। विधायक का तर्क था कि पत्रकार विधायकों पर सवाल उठाते हैं, मगर वे भी तो लंच में शामिल होते हैं। पत्रकारों का कहना था कि उन्हें विधायकों की तरह मोटे अलाउंस नहीं मिलते। उन्हें हर बार निशाने पर लिया जाता है, लिहाजा आत्म सम्मान से परिपूर्ण 95 फीसदी पत्रकारों ने लंच का बहिष्कार करे रखा। इस पूरे प्रकरण को विधानसभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल ने प्रेस गैलरी कमेटी में दुखद बताया व उन्होंने यह भी कहा कि इसे कार्यवाही से डिलीट कर दिया गया है। हैरानी की बात रही कि इस मामले में सभी विधायक एकजुट दिखे।


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