क्या पाक की एक और ‘सर्जरी’?

By: Apr 13th, 2017 12:05 am

पाकिस्तान में भारतीय कैदी कुलभूषण जाधव के मुद्दे पर संसद के दोनों सदन गरम और आक्रोशित रहे। संसद में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को यहां तक बयान देना पड़ा कि भारत के बेटे को बचाने के लिए ‘आउट ऑफ दि वे’ काम भी करेंगे। ‘आउट ऑफ दि वे’ पाकिस्तान के लिए साफ धमकी है और उसे हर अंजाम भुगतने को तैयार रहना चाहिए। लोकसभा में गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट कहा कि भारत को जो करना है, हम करेंगे। कुलभूषण को बचाने और इनसाफ दिलाने की हरसंभव कोशिश की जाएगी। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे की यह टिप्पणी थी-यदि हम कुलभूषण को फांसी से नहीं बचा सके, तो देश के तौर पर हमारी हार होगी। राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद का मानना था कि जाधव के जरिए यह विश्व मंच पर भारत की छवि खराब करने की कोशिश है। एक सोची-समझी साजिश के तहत जाधव को फंसाया गया है। कई सांसद भी बोले। मुद्दा साफ है और हालात भी उग्र हैं। भारतीय नेताओं के बयानों की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी जवाब देना पड़ा-पड़ोसी देशों से दोस्ताना रिश्ते रखना पाकिस्तान की नीति है, लेकिन इसे कमजोरी समझने की गलती नहीं करनी चाहिए। हमारी फौज किसी भी धमकी का सामना करने को सक्षम और तैयार है। भारतीय नागरिक एवं पूर्व नौसेना अधिकारी कुलभूषण जाधव को जिस तरह फांसी की सजा सुनाई गई है, उससे तमाम हदें लांघी जा चुकी हैं। अब भारत सरकार की ओर से कार्रवाई राजनयिक हो या अंतरराष्ट्रीय मंच पर हो अथवा अंततः फौजी कार्रवाई करनी पड़े, भारत को भी पलटवार प्रतिक्रिया के लिए तैयार रहना चाहिए। सवाल उठ रहे हैं कि क्या मौजूदा संदर्भ में पाकिस्तान पर एक और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की जाए? इस मामले को किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या जाधव की रिहाई तक पाकिस्तान के साथ तमाम रिश्ते तोड़ लिए जाएं? दरअसल न्याय के उसूलों और कायदे-कानून की बात करना तो समझदार और विवेकशील देशों के संदर्भ में ही उचित है। ‘केला गणतंत्र’ और ‘केला अदालतों’ वाले देश को उनसे क्या लेना-देना…! लिहाजा बार-बार विएना संधि की चर्चा बेमानी है, जबकि खुद पाकिस्तान ने उस संधि पर दस्तखत किए थे। सवाल एक और सर्जरी का तार्किक लगता है। पहले सर्जिकल हमले के बाद पाकिस्तान के जिस रवैये की हमने कल्पना की थी, वह हम हासिल नहीं कर पाए। पाकपरस्त आतंकवाद समाप्त नहीं हुआ। कश्मीर में आतंकियों की घुसपैठ और हमले नहीं थमे, बल्कि कश्मीर को आग की घाटी बना दिया गया। आतंकी अड्डे फिर बना लिए गए। लिहाजा इस बार ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ ऐसी की जानी चाहिए कि पाकिस्तान पलक तक न झपक सके और उसकी रीढ़ तोड़ दी जाए। भारतीय सेना में यह क्षमता और रणनीति खूब है। माना जा सकता है कि यह स्ट्राइक एकतरफा नहीं होगी, लेकिन एक सीमित सी जंग तो अब लड़नी ही होगी। पाकिस्तान अपनी फितरत से बाज नहीं आएगा और हम कब तक उसका शिकार होते रहेंगे? पाकिस्तान की दरिंदगी की तुलना में भारतीय एनआईए कोर्ट के एक फैसले का उल्लेख जरूर किया जाना चाहिए। एनआईए कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि दो पाकिस्तानी नौजवान मासूम और बेकसूर थे, नतीजतन उन्हें रिहा कर दिया गया। इज्जत और हिफाजत के साथ उन्हें वाघा बॉर्डर पर पाक फौज को सौंप दिया गया। यह भारतीय न्यायिक व्यवस्था का मानवीय पक्ष है। क्या कुलभूषण के संदर्भ में अब भी पाक हुकूमत और फौज से ऐसी अपेक्षाएं की जा सकती हैं? पाकिस्तान के अलावा, श्रीलंका में पांच भारतीयों को फांसी की सजा सुनाने का प्रसंग भी याद आता है। अक्तूबर, 2014 में भारत सरकार ने श्रीलंका सरकार पर ऐसा तार्किक दबाव बनाया था कि नवंबर, 2014 में ही पांचों भारतीयों को बाइज्जत रिहा करना पड़ा। क्या कुलभूषण के संदर्भ में भारत सरकार को वैसी कामयाबी हासिल होगी? उधर पाक रक्षा मंत्री का बयान आया है कि जाधव के पास 60 दिनों में ही अपील करने का विकल्प है। अपील भी सैन्य कोर्ट में ही मेजर जनरल स्तर का अफसर सुनेगा। उसके बाद पाक सेना प्रमुख, सुप्रीम कोर्ट और अंततः राष्ट्रपति के विकल्प भी शेष हैं, लेकिन अंदरूनी तौर पर सभी पाकिस्तानी पक्ष मक्कार हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र के जरिए यह मुद्दा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भी उठा सकता है। लेकिन सबसे पहले मोदी सरकार इसकी पुष्टि पाक हुकूमत से करे कि कुलभूषण जिंदा हैं या नहीं। पाकिस्तान की फितरत के मद्देनजर यह आशंका भी स्वाभाविक है।


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