डब्ल्यूटीओ के कुचक्र से निकलने का वक्त

By: Apr 11th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

( लेखक, आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं )

हमें मुक्त व्यापार के मूल सिद्धांत पर पुनर्विचार करना चाहिए। डब्ल्यूटीओ 1995 में लागू हुआ था। तब सोचा गया था कि यह व्यवस्था सभी के लिए लाभदायक सिद्ध होगी। बीते 20 वर्षों में स्पष्ट हो गया है कि मुक्त व्यापार फेल है, चूंकि इसमें नए देशों के उद्योगों को उचित संरक्षण देने की व्यवस्था नहीं है और इसमें श्रम के मुक्त पलायन पर रोक है। अतः सरकार को डब्ल्यूटीओ की संधि में संशोधन की मांग करनी चाहिए। जरूरी हो, तो डब्ल्यूटीओ की सदस्यता को त्याग देना चाहिए…

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खरीद नीति बनाने का निर्णय लिया है। सरकार द्वारा की जा रही खरीद में घरेलू निर्माताओं को प्राथमिकता दी जाएगी। जैसे मान लीजिए घरेलू सोलर पैनल 80 रुपए प्रति वाट में उपलब्ध है, जबकि आयातित पैनल 60 रुपए में। खरीद नीति के अंतर्गत महंगा होने के बावजूद घरेलू पैनल खरीदे जाएंगे। सरकार को अधिक मूल्य देने होंगे, परंतु पैनल के उत्पादन में देश में रोजगार बनेंगे, उत्पादक द्वारा टैक्स अदा किया जाएगा, नई तकनीकों का देश में उपयोग होगा इत्यादि। देश को अप्रत्यक्ष रूप से तमाम लाभ होंगे। इन अप्रत्यक्ष लाभों को अर्थशास्त्र में ‘मल्टीप्लायर’ अथवा गणक कहा जाता है। जैसे किसी उद्योग ने सोलर पैनल बनाए और बेचे। उस फैक्टरी के सामने किसी ने चाय की दुकान लगा दी। यह गणक हुआ, चूंकि कारखाने के मालिक ने चाय की दुकान नहीं लगवाई थी। इस प्रकार टैक्सी की सप्लाई, बिजली मोटर की मरम्मत आदि के तमाम कार्य शुरू हो जाते हैं। इन अप्रत्यक्ष लाभ को हासिल करने के लिए सरकार ने घरेलू उद्योगों से माल खरीदने की नीति बनाने का मन बनाया है। यह नीति सही दिशा में है। सरकार की यह नीति खुले व्यापार के सिद्धांत के विपरीत है। इस सिद्धांत के अनुसार विश्व अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। जो देश माल का सस्ता उत्पादन करे, उसे पूरे विश्व में माल बेचने की छूट देनी चाहिए। इससे संपूर्ण विश्व के लोगों को सस्ता माल उपलब्ध हो जाएगा। भारत सरकार द्वारा बनाई जा रही राष्ट्रीय खरीद नीति खुले व्यापार के इस सिद्धांत के विपरीत है। फिर भी सरकार को यह कदम उठाना पड़ रहा है, चूंकि खुले व्यापार के सिद्धांत में गणक की अनदेखी की जाती है। खुले व्यापार से सस्ते आयातित सोलर पैनल उपलब्ध हो जाएं, तो भी चाय वाले के रोजगार की रक्षा नहीं होती है। घरेलू खरीद को प्राथमिकता देने एवं खुले व्यापार के बीच सीधा टकराव बनता है। गत वर्ष सोलर पैनल की खरीद के मुद्दे पर यह टकराव डब्ल्यूटीओ में सामने आ गया था। हुआ यूं कि सरकार ने सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना चाहा।

सरकार ने नीति बनाई कि वह स्वयं सौर उर्जा के उत्पादकों से दीर्घकालीन अनुबंध करेगी। उनसे बिजली खरीद कर बाजार में बेचेगी। साथ-साथ सौर ऊर्जा के पैनल के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सौर ऊर्जा उत्पादकों पर शर्त लगाई कि उपयोग किए जाने वाले सोलर पैनल देश में ही निर्मित होंगे। सरकार के इस प्रावधान का अमरीकी सोलर पैनल निर्माताओं ने विरोध किया, चूंकि उनका बाजार छोटा हो रहा था। अमरीका ने भारत सरकार के इस प्रावधान को विश्व व्यापार संगठन में चुनौती दी। अमरीका ने दलील दी कि डब्ल्यूटीओ के नियमों के अंतर्गत कोई सदस्य घरेलू एवं विदेशी निर्माताओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकता है। डब्ल्यूटीओ के अपीलीय न्यायालय ने अमरीका के पक्ष में निर्णय दिया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार सोलर पैनल की खरीद में घरेलू निर्माताओं को प्राथमिकता नहीं दे सकती है। इस विवाद से मुक्त व्यापार के सिद्धांत की समस्या स्पष्ट हो जाती है। सरकार चाहती थी कि सोलर पैनल का उत्पादन देश में हो, जिससे देश में उद्योग लगें, रोजगार बने, सरकार को टैक्स मिले, उत्पादन की गणक गतिविधियां, जैसे चाय की दुकान एवं टैक्सी की सप्लाई का कार्य बढ़े। परंतु डब्ल्यूटीओ का कहना है कि इन गणक लाभों की गिनती नहीं की जा सकती है। जो देश सस्ते सोलर पैनल उपलब्ध कराए, उसी से माल खरीदना होगा। मुक्त व्यापार में दूसरी समस्या नए उद्योगों को संरक्षण देने का है। जैसे यूरोप के कुछ देशों में औद्योगिकीकरण दो सदी पूर्व हुआ। इन देशों ने उद्योगों को लगाने और चलाने में महारत हासिल कर ली है। उन्हीं उद्योगों को अब अफ्रीकी देश लगाना चाह रहे हैं। इन्हें इस कार्य में वर्तमान में महारत हासिल नहीं है। इनके द्वारा नए उद्योग लगाने में कुछ गलतियां की जाएंगी, जिसके कारण कुछ समय तक उत्पादन महंगा पड़ेगा। ऐसे में अर्थशास्त्र कहता है कि कुछ समय के लिए अफ्रीकी देशों को संरक्षण देना चाहिए। उनके उद्योग कुशल हो जाएं, तब उन्हें यूरोप के देशों के सामने प्रतिस्पर्धा में झोंकना चाहिए। जैसे  बच्चे और वयस्क के बीच कुश्ती कराई जाए, तो बच्चा निश्चित रूप से हारेगा। कुछ वर्षों तक बच्चे को संरक्षण दिया जाए, तो बड़ा होने पर वह उसी वयस्क से जीत सकता है। इसी प्रकार औद्योगिक क्षेत्र में देर से प्रवेश करने वाले देशों को संरक्षण देना जरूरी है। यह सिद्धांत अर्थशास्त्र में मान्य है, परंतु डब्ल्यूटीओ में नहीं। फलस्वरूप भारत सरकार अपने उद्योगों को प्राथमिकता नहीं दे सकती है। डब्ल्यूटीओ की तीसरी समस्या श्रम के पलायन पर प्रतिबंध की है।

मान लीजिए सोलर पैनल बनाने के लिए यूरोप की जलवायु ज्यादा उपयुक्त है। ऐसे में हमारे उद्यमी बराबर की तकनीक का उपयोग करें, तो भी भारत के सोलर पैनल के उत्पादन की लागत ज्यादा आएगी। जैसे उन्हें फैक्टरी को एयर कंडीशन रखने के लिए भारी खर्च वहन करना पड़ सकता है। ऐसे में मुक्त व्यापार के सिद्धांत के अनुसार दुनिया में सोलर पैनल का संपूर्ण वैश्विक उत्पादन यूरोप में होना चाहिए। प्रश्न है कि भारतीय श्रामिक क्या करेगा? सोलर पैनल के उत्पादन मे रोजगार यूरोप में बनेंगे और वहां से भारत में लाकर बेचे जाएंगे। परंतु भारतीय श्रामिक को भारत से यूरोप पलायन करके वहां सोलर पैनल की फैक्टरी में रोजगार हासिल करने की छूट नहीं है। परिणाम होगा कि भारत के श्रामिक मरेंगे। भारत के श्रामिकों को भारत की सरहद के अंदर कैद कर दिया जाएगा, परंतु सोलर पैनल का आवागमन मुक्त रूप से होता रहेगा। मुक्त व्यापार के सिद्धांत में कमी है कि माल मात्र के आवागमन की छूट है, श्रम के आवागमन की छूट नहीं है। इस कारण श्रामिक अपने देशों में कैद हो जाते हैं, जबकि माल स्वतंत्र रूप से संपूर्ण विश्व में विचरण करता है। भारत सरकार ने सरकारी खरीद में घरेलू उत्पादन को प्राथमिकता देने का मन बनाया है। यह सोच सही दिशा में है। सरकारी खरीद पर डब्ल्यूटीओ लागू नहीं होता है। इसलिए इस कदम को डब्ल्यूटीओ में चुनौती नहीं दी जा सकती है, परंतु सरकारी खरीद मात्र से देश की अर्थव्यवस्था नहीं चलेगी। जरूरत है कि हमारे बाजार में बिकने वाले अधिकाधिक माल का उत्पादन देश में ही हो, जिससे गणक के सुप्रभाव हमें हासिल हों। अतः हमें मुक्त व्यापार के मूल सिद्धांत पर पुनर्विचार करना चाहिए। डब्ल्यूटीओ 1995 में लागू हुआ था। तब सोचा गया था कि यह व्यवस्था सभी के लिए लाभदायक सिद्ध होगी। बीते 20 वर्षों में स्पष्ट हो गया है कि मुक्त व्यापार फेल है, चूंकि इसमें नए देशों के उद्योगों को उचित संरक्षण देने की व्यवस्था नहीं है और इसमें श्रम के मुक्त पलायन पर रोक है। अतः सरकार को डब्ल्यूटीओ की संधि में संशोधन की मांग करनी चाहिए। जरूरी हो तो डब्ल्यूटीओ की सदस्यता को त्याग देना चाहिए, जिससे देश में उद्योगों का विस्तार हो और रोजगार तथा गणक के सुप्रभाव अपने देश में हासिल हों।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


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