तुष्टिकरण का राजनीतिक कुरोग

By: Apr 1st, 2017 12:08 am

NEWSडा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

बहुत साल पहले, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और देश में से अंग्रेजों को गए और पाकिस्तान के बने हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था। तब मध्य प्रदेश सरकार ने स्कूलों में पहली कक्षा में पढ़ाई जाने वाली पुस्तक में ‘ग’ से गणेश को हटा कर ‘ग’ से गधा कर दिया था। सरकार का तर्क था गणेश से सांप्रदायिकता की गंध आती है और गधे से पंथनिरपेक्षता की सुगंध निकलती है। अभी भी बहुत से राजनीतिक दल तुष्टिकरण के गधे में सत्ता की सुगंध तलाश रहे हैं। यह तुष्टिकरण देश के लिए घातक सिद्ध हो सकता है…

वर्षा के बाद आकाश में जो अनेक रंगों का धनुष दिखाई देता है, हिंदी में उसे इंद्रधनुष कहते हैं। इसका आकार धनुष की तरह होता है। वर्षा का देवता इंद्र माना जाता है, इसीलिए इसका नाम इंद्रधनुष प्रचलित हो गया होगा। बांग्ला भाषा में इसी इंद्रधनुष को रामधनु कहा जाता है। धनुष और धनु तो एक ही चीज है। अब यह धनुष इंद्र का है या राम का है, इससे भी हिंदी भाषी उत्तर प्रदेश या फिर बांग्ला भाषी पश्चिम बंगाल में कभी विवाद नहीं हुआ। यहां तक कि रामधनु को लेकर पश्चिम बंगाल और पूर्वी बंगाल यानी बांग्लादेश में भी कभी विवाद नहीं हुआ। बांग्लादेश पाकिस्तान में भी रहा और अब अलग होकर भी अपने आप को इस्लामी गणतंत्र कहता है, पर उसको भी कभी वर्षा के इस धनु को रामधनु होने पर आपत्ति नहीं हुई।

पश्चिम बंगाल में तो तीस साल तक मार्क्सवादी सरकार रही। उसको भी रामधनु पर कोई आपत्ति नहीं थी। लेकिन अब इस धनु में राम के नाम पर ममता सरकार को आपत्ति है। राम का नाम प्रयुक्त करने से मुस्लिम बच्चों को भी यह शब्द उच्चारित करना पड़ता है। सरकार को लगता है कि उनका मजहब ऐसा करने की इजाजत नहीं देता।  सरकार तृणमूल की है। तृणमूल का अर्थ ही यह है कि वह जमीनी सच्चाई को जानती है। तृण के मूल को तुरंत पता चल जाता है कि धरती के नीचे क्या हो रहा है। यदि वह अपने आप को उसके अनुकूल ढाल लेता है तो बच सकता है अन्यथा उसका सूख जाना निश्चित है। कोई भी तृणमूल सूखना नहीं चाहेगा। वह हर परिस्थिति में जिंदा रहने का प्रयास करेगा। शायद यही प्रयास रामधनु को रंगधनु बना कर ममता बनर्जी की सरकार कर रही है।

सरकार की इच्छा तो यही रही होगी कि वह रामधनु को आकाश में बनने ही न दे। जिन कारकों से मुस्लिम समाज को कोफ्त होती है, उन सभी कारकों को ममता बनर्जी की सरकार समाप्त करना चाहती है। लेकिन अग्निकन्या होने के बावजूद वह वर्षा के बाद आकाश में रामधनु के प्रकट हो जाने को रोक नहीं सकतीं और मुसलमानों की आपत्ति को दरकिनार भी नहीं कर सकतीं। लेकिन वह रामधनु में से राम को तो निकाल ही सकती हैं। इसलिए पश्चिम बंगाल के शिक्षा विभाग ने किताबों में रामधनु को रंगधनु बना दिया है। ममता को लगता है कि रामधनु को रंगधनु कहने से मुसलमानों खुश हो जाएंगे। एक बार वे खुश हो गए तो ममता के तृणमूल की सरकार के अगले पांच साल फिर पक्के। लेकिन मुझे अभी भी लगता है कि पश्चिम बंगाल के मुसलमानों को रामधनु पर कोई आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि ऐसा तो नहीं है कि आकाश में रामधनु अभी तीन-चार साल पहले ही प्रकट होना शुरू हुआ हो। रामधनु तो तब से है, जब से आकाश और वर्षा है। राम त्रेता युग के हैं। बांग्ला भाषा का उदय और विकास भी शताब्दियों पुराना है। छह सात सौ साल तो बंगाल पर अरबों, तुर्कों, अफगानों और मुगलों का विदेशी राज रहा। उन्होंने बंगाल के लाखों हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान तो बना लिया, लेकिन रामधनु पर उन्हें भी कोई आपत्ति नहीं हुई।

अब अचानक भला बंगाली मुसलमानों को रामधनु में गड़बड़ क्यों दिखाई देने लगी? इसलिए हो सकता है कि मुसलमानों को केवल खुश करने के लिए ममता सरकार ने अपनी ओर से यह पहल की हो। लेकिन असम में कम से कम मुसलमानों ने स्पष्ट विरोध किया है। सही तरीके से कहना हो तो मुल्ला-मौलवियों ने विरोध किया है। अब मुल्ला-मौलवी क्या आम मुस्लिम समाज का प्रतिनिधि है भी या नहीं, यह अलग बहस का विषय है। परंतु असम के मुल्ला-मौलवियों के विरोध का विषय रामधनु नहीं, बल्कि संगीत है। एक टेलीविजन चैनल ने इंडियन आइडल 2015 आयोजित करवाया था। उसमें असम प्रदेश की सोलह साल की लड़की नाहिद आफरीन ने अपनी गायकी की बजह से जीत हासिल की और चैनल ने उसे इंडियन आइडल घोषित किया। असम के मुल्ला-मौलवियों का मानना है कि संगीत शरीयत के खिलाफ है। संगीत से अल्लाह या खुदा नाराज हो जाता है। किसी भी मुसलमान का फर्ज है कि वह किसी भी हालत में अल्लाह को नाराज न करे। अब बेचारी नाहिद आफरीन केवल सोलह साल की बच्ची है। मौलवियों को लगता है कि इसे खुदा के नियमों या उनकी प्रसन्नता-अप्रसन्नता के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है। इसे नहीं पता कि संगीत के सुरों से अल्लाह कुपित हो जाते हैं। अब नाहिद मुसलमान है तो उसे अल्लाह के कोप से बचाना इन मौलवियों का मजहबी फर्ज है, इसलिए उन्होंने नाहिद के खिलाफ फतवा जारी कर दिया है। अपने इस फरमान में उन्होंने नाहिद को गीत गाना बंद कर देने का आदेश दिया है।

किसी एक मौलवी ने नहीं, बल्कि एक के बाद एक छियालीस मौलवियों ने फरमान जारी कर दिए। शायद मौलवियों को लगता है कि सोलह साल की यह बच्ची अपने संगीत से खुदा के साम्राज्य में सुनामी ला देगी, इसलिए इसे दरबाजे पर ही रोका जाना लाजिमी है। ये छियालीस फरमान इसी का प्रयास हैं, लेकिन नाहिद है तो सोलह साल की लेकिन उसने इस मामले की व्याख्या दूसरी तरह से कर दी है। नाहिद ने कहा कि खुदा ने उसे गायकी का हुनर दिया है। संगीत की अनदेखी का मतलब खुदा की अनदेखी करना होगा। वह किसी फतवे से नहीं डरती और मरते दम तक संगीत से जुड़ी रहेंगी। नाहिद जो मर्जी कहे, लेकिन मौलवियों का मानना है कि खुदा को क्या पसंद है और क्या नहीं, यह उनसे अच्छा कोई नहीं जानता। इसलिए वे खुदा की रक्षा के लिए चौबीस घंटे सन्नद्ध हैं। खुदा पर मौलवियों के इस एकाधिकार से शायद मुसलमान भी चिंतित हो रहे होंगे। इसी चिंता में तमिलनाडु के एक मुसलमान युवक फारुक ने खुदा के अस्तित्व से ही इनकार कर दिया। इकतीस साल का फारुक कोयंबटूर का रहने वाला था। वह खुदा से मुनकिर छिप-छिप कर नहीं हुआ, बल्कि उसने इसका प्रचार भी शुरू कर दिया। लेकिन खुदा से मुनकिर होना उसे महंगा पड़ा। इस मृत्युलोक में रहने वाले खुदा के सिपाहियों ने उसकी हत्या कर दी। वैसे यदि खुदा फारुक से सचमुच नाराज होता तो स्वयं ही उसको इस दुनिया से उठा सकता था। लेकिन शायद धरती पर खुदा के इन सिपाहियों को खुदा पर भी इतना भरोसा नहीं था। इसलिए उन्होंने यह काम भी खुदा पर न छोड़ कर खुद ही निपटा दिया।

हिंदोस्तान में पिछले कुछ अरसे से एक नई प्रवृत्ति दिखाई दे रही है। मुल्ला-मौलवी मुसलमानों को अपने-अपने बाड़े में हांकने का प्रयास कर रहे हैं और अनेक राजनीतिक दल उन मौलवियों के तुष्टिकरण में लगे हुए हैं। दुर्भाग्य से इनमें से अधिकांश मुल्ला-मौलवी उन अरब और तुर्क कबीलों से जुड़े हैं, जिनके पूर्वज कभी भारत को जीतने के लिए यहां आए थे। लेकिन राजनीतिक दलों को इन मुल्ला-मौलवियों का तुष्टिकरण ही सत्ता प्रप्ति का सबसे आसान रास्ता दिखाई दे रहा है। पश्चिम बंगाल में रामधनु का रंगधनु हो जाना तृणमूल कांग्रेस के इन्हीं प्रयासों की ओर संकेत करता है। असम और तमिलनाडु की घटनाएं इसी की निरंतरता में देखी जानी चाहिएं।

बहुत साल पहले, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और देश में से अंग्रेजों को गए और पाकिस्तान के बने हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था। तब मध्य प्रदेश सरकार ने स्कूलों में पहली कक्षा में पढ़ाई जाने वाली पुस्तक में ‘ग’ से गणेश को हटा कर ‘ग’ से गधा कर दिया था। सरकार का तर्क था गणेश से सांप्रदायिकता की गंध आती है और गधे से पंथनिरपेक्षता की सुगंध निकलती है। अभी भी बहुत से राजनीतिक दल तुष्टिकरण के गधे में सत्ता की सुगंध तलाश रहे हैं। यह तुष्टिकरण देश के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। इसे किसी भी तरह रोकना होगा। मुसलमानों को तो रामधनु कहने में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन दिक्कत ममताओं को हो रही है।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com


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