शराबबंदी को धार्मिक मान्यता जरूरी

By: Apr 25th, 2017 12:08 am

newsडा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

शराब के सेवन से कष्ट को केवल कुछ समय तक राहत मिलती है। किसी भी समस्या का स्थायी समाधान शराब पीना नहीं है। दुर्भाग्य है कि हिंदू एवं ईसाई धर्मगुरु इस विषय पर मौन बने रहते हैं। देश में शराबबंदी को सफलतापूर्वक लागू करना है, तो सरकार को पहले हिंदू, मुसलमान एवं ईसाई धर्मगुरुओं की सभा बुलानी चाहिए। इनके माध्यम से शराब पीने वाले को पाप का बोध कराना चाहिए। इसके बाद शराबबंदी को लागू किया जाए, तो कुछ हद तक सफल हो सकती है…

बिहार ने शराबबंदी लागू की है। उत्तराखंड में शराबबंदी लागू करने को जन आंदोलन उग्र हो रहा है। हिमाचल में भी शराबखोरी के विरोध में लहरें चल रही हैं। इसके विपरीत केरल में पूर्व में लागू की गई शराबबंदी को हटाने पर सरकार विचार कर रही है। राज्यों की यह विपरीत स्थिति बताती है कि जनता को दोनों तरह से सकून नहीं है। शराबबंदी लागू करने के तमाम प्रयास असफल हो रहे हैं, बल्कि उनका दीर्घकालीन नकारात्मक प्रभाव भी पड़ा है। 1920 में अमरीका में शराबबंदी लागू की गई थी। इसके बाद शराब का अवैध व्यापार करने को लिक्वर माफिया उत्पन्न हो गया। लोगों को शराब उपलब्ध होती रही, केवल इसका दाम बढ़ गया और इस काले धंधे को करने वालों की बल्ले-बल्ले हुई। देश में अपराध का माहौल बना। फलस्वरूप 1933 में शराबबंदी को हटाना पड़ा था, लेकिन तब तक लिक्वर माफिया अपने पैर जमा चुका था। इस माफिया ने आय के दूसरे रास्तों को खोजना चालू किया, जैसे स्मगलिंग करना। वर्तमान में वैश्विक माफियाओं की जड़ें उस शराबबंदी में बताई जाती हैं। अपने देश में भी परिस्थिति लगभग ऐसी ही है।

किसी समय मैं उदयपुर से अहमदाबाद बस से जा रहा था। सीट न मिलने के कारण खड़े-खड़े जाना पड़ा। थक गया तो किसी ट्रक वाले से बात करके ट्रक में बैठ गया। ट्रक ड्राइवर ने रास्ते में गाड़ी रोक कर टायर के ट्यूबों में भरी शराब को गाड़ी में लोड किया और शराब को अहमदाबाद पहुंचा दिया। गुजरात में शराबबंदी के बावजूद समय-समय पर जहरीली शराब पीने से लोगों की मृत्यु होती रहती है। यह प्रमाणित करता है कि अवैध शराब का धंधा चल ही रहा है। इस पक्ष को ध्यान में रखते हुए केरल के मंत्री ने शराबबंदी हटाने के पक्ष में दलील दी कि ड्रग्स के सेवन में भारी वृद्धि हुई है। यानी कुएं से निकले और खाई में गिरे। शराब की खपत कम हुई, तो ड्रग्स की बढ़ी। तमाम उदाहरण बताते हैं कि शराब के सेवन को कानून के माध्यम से रोकना सफल नहीं होता है, बल्कि इससे अवैध गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है। शराबबंदी का दूसरा प्रभाव राज्यों के राजस्व पर होता है। वर्तमान में राज्यों का लगभग 20 प्रतिशत राजस्व शराब की बिक्री से मिलता है। शराबबंदी से यह रकम मिलनी बंद हो जाती है। इसकी पूर्ति करने को राज्यों को दूसरे ‘सामान्य’ माल पर अधिक टैक्स वसूल करना होता है। जैसे बिहार ने शराबबंदी के कारण हुए राजस्व नुकसान की भरपाई करने को कपड़ों पर सेल टैक्स में वृद्धि की है। यानी शराब के हानिप्रद माल पर टैक्स वसूल करने के स्थान पर कपड़े के लाभप्रद माल पर टैक्स अधिक वसूल किया जाएगा। लोग कपड़ों की खरीद में किफायत निश्चित रूप से करेंगे। कहना न होगा कि यह टैक्स पालिसी के उद्देश्य के ठीक विपरीत है। टैक्स पालिसी एक सामाजिक अस्त्र होता है। इसके माध्यम से सरकार द्वारा समाज को विशेष दिशा में धकेला जाता है, जैसे लग्जरी कार पर अधिक टैक्स लगा कर सरकार समाज को इस माल की कम खरीद करने की ओर धकेलती है।

इस दृष्टि से देखा जाए तो शराबबंदी का अंतिम प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि इसे सख्ती से लागू किया जाता है या नहीं। यदि वास्तव में शराबबंदी लागू हो जाए, तो यह समाज को इस नशीले पदार्थ से परहेज करने की ओर धकेलेगी। तब कपड़े पर अधिक टैक्स अदा करना स्वीकार होगा। शराब की खरीद न करने से हुई बचत से कपड़े पर बढ़ा हुआ टैक्स अदा किया जा सकता है, परंतु शराबबंदी खख्ती से लागू नहीं हुई तो इसका दोहरा नुकसान होगा। लोग अवैध शराब को महंगा खरीदेंगे। साथ-साथ कपड़े भी कम खरीदेंगे, चूंकि इस पर टैक्स बढ़ने से यह महंगा हो गया है। हानिप्रद माल की खपत कमोबेश जारी रहेगी और लाभप्रद माल की खपत कम होगी, लेकिन जैसा ऊपर बताया गया शराबबंदी को सख्ती से लागू करना कठिन होता है। अतः इसके नकारात्मक परिणाम होने की संभावना ज्यादा है, जैसा कि केरल का अनुभव बताता है।

इन समस्याओं के बावजूद शराबबंदी लागू होनी चाहिए। शराब बुद्धि को भ्रमित करती है। शराब के कारण तमाम सड़क दुर्घटनाएं होती हैं। घरेलू हिंसा से परिवार त्रस्त हो जाते हैं। प्रश्न है कि शराबबंदी को लागू कैसे किया जाए। यहां हमें मुस्लिम देशों से सबक लेना चाहिए। कई देशों ने धर्म के आधार पर शराबबंदी लागू की है। इस्लाम धर्म द्वारा शराब पर प्रतिबंध लगाने से शराब पीने वाले को स्वयं अपराध अथवा पाप का बोध होता है। समाज में शराबबंदी के पक्ष में व्यापक जन सहमति बनती है। इसके बाद कानून एक सीमा तक कारगर हो सकता है। जैसे अपने देश में सामाजिक मान्यता है कि किसी की हत्या नहीं करनी चाहिए। कोई हत्या करता है तो समाज उसकी निंदा करता है। ऐसे में हत्यारों को पकड़ने में पुलिस कुछ कारगर सिद्ध होती है। इसके विपरीत समाज में मान्यता है कि बेटी को विवाह के समय माता-पिता की संपत्ति में अधिकार के रूप में धन देना चाहिए। कोई दहेज देता है, तो समाज उसकी प्रशंसा करता है। ऐसे में दहेज के विरुद्ध पुलिस नाकाम है। तात्पर्य यह कि सामाजिक मान्यता बनाने के बाद ही कोई भी कानून सफल होता है। अतः ऐसी मान्यता बनाने के बाद ही शराबबंदी कारगर हो सकती है। स्पष्ट करना होगा कि मुस्लिम देशों में धार्मिक प्रतिबंध के बावजूद भी शराब उपलब्ध हो जाती है। कई देशों में बड़े होटलों में शराब बेचने की छूट है। दूसरे देशों में शराब के गैर कानूनी रास्ते उपलब्ध हैं। यानी धार्मिक प्रतिबंध स्वयं में पर्याप्त नहीं है, परंतु यह जरूरी है। केरल में शराबबंदी से पीछे हटने का कारण है कि शराब पीने के विरोध में सामाजिक मान्यता नहीं थी। ऐसे में शराब का धंधा अंडरग्राउंड हो गया अथवा इसने ड्रग्स के सेवन की ओर जनता को धकेला है। बिहार एवं उत्तराखंड में भी केरल जैसे हालात बनने की पूरी संभावना है, चूंकि यहां भी शराब के विरोध में सामाजिक मान्यता नहीं है। मुख्यतः महिलाएं ही इस कुरीति का विरोध करती हैं। मुस्लिम देशों की तरह शराब पीने वाले को पाप या अपराध का बोध नहीं होता है, बल्कि शराबबंदी को वह अपने हक के हनन के रूप में रखता है।  इस पृष्ठभूमि में चिंता का विषय है कि देश में शराब के सेवन में वृद्धि हो रही है। विकसित देशों के संगठन आर्गेनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-आपरेशन एंड डिवेलपमेंट के अनुसार भारत में शराब की प्रति व्यक्ति खपत में पिछले 20 वर्षों में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सभी धर्म शराब के सेवन की भर्त्सना करते हैं, चूंकि शराब के सेवन से कष्ट को केवल कुछ समय तक राहत मिलती है। यह भी कोई छिपा रहस्य नहीं है कि किसी भी समस्या का स्थायी समाधान शराब पीना नहीं है। दुर्भाग्य है कि हिंदू एवं ईसाई धर्मगुरु इस विषय पर मौन बने रहते हैं। देश में शराबबंदी को सफलतापूर्वक लागू करना है, तो सरकार को पहले हिंदू, मुसलमान एवं ईसाई धर्मगुरुओं की सभा बुलानी चाहिए। इनके माध्यम से शराब पीने वाले को पाप का बोध कराना चाहिए। इसके बाद शराबबंदी को लागू किया जाए, तो कुछ हद तक सफल हो सकती है। वर्तमान हालात में बिहार का शराबबंदी लागू करने का निर्णय अंत में हानिप्रद सिद्ध होगा।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App