हिमाचल करेगा छरमा की खेती

By: Apr 12th, 2017 12:03 am

कुल्लू के देवसदन में कार्यशाला, प्रदेश के ऊंचे क्षेत्रों में हुई तैयारियां

newsकुल्लू – प्रदेश के ऊंचे क्षेत्रों में बडे़ पैमाने पर छरमा लगाया जाएगा। इसके लिए वन विभाग व जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण संस्थान के संयुक्त तत्त्वावधान के चलते  मंगलवार को कुल्लू के देवसदन में औषधीय पौधे छरमा (सीबकथोर्न) पर एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। छरमा की खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित इस कार्यशाला में अतिरिक्त मुख्य सचिव वन विभाग तरुण कपूर ने बतौर मुख्यातिथि शिरकत की। तरुण कपूर ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में छरमा की बढ़ती मांग को देखते हुए प्रदेश के चार जिलों लाहुल-स्पीति, किन्नौर, शिमला और कुल्लू के ऊपरी क्षेत्रों में इसकी खेती व बड़े पैमाने पर पौधारोपण को प्राथमिकता दी जाएगी। मुख्य अरण्यपाल एसएस नेगी ने बताया कि प्रदेश के अन्य जिलों में भी छरमा को सेब व अन्य फलों के विकल्प के रूप में अपनाने के लिए बागबानों को प्रेरित किया जाएगा। छरमा की पत्तियों में विटामिन सी व कई अन्य पोषक तत्त्व प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। कई दवाइयों व कॉस्मेटिक्स में छरमा का प्रयोग किया जाता है। कार्यशाला में प्रधान मुख्य अरण्यपाल अमर सिंह , अरण्यपाल बीएल नेगी, डीएफओ डा. नीरज चड्डा, हीरा लाल राणा, ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के डीएफओ कृपाशंकर तथा अन्य अधिकारियों के अलावा लगभग 200 किसानों-बागबानों ने भी भाग लिया। कृषि विवि पालमपुर के पूर्व कुलपति तेज प्रताप सिंह ने बताया कि छरमा से तैयार किए गए कई उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में अलग पहचान बना चुके हैं। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयन पर्यावरण संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. एसएस सावंत, डा. बीसी कुनियाल, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के डा. वीरेंद्र कुमार और अन्य लोगों ने भी छरमा से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां दीं।

अब लाहुल-स्पीति की बल्ले-बल्ले

लाहुल-स्पीति के लोग अब इस नायाब पौधे की खेती से जहां शीत मरुस्थल को हरा-भरा करने की तैयारी में हैं, वहीं आलू, मटर और हॉप्स के बाद छरमा सहित अन्य जड़ी बूटियों पर भी सर्च करने के बाद आर्थिक संपनता के लिहाज से नया द्वार खोलता दिखाई दे रहा है। जनजातीय क्षेत्रों में छरमा की अपार संभावनाएं देखते हुए अब इसे लाभकारी बनाने की दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं। यदि योजना फलीभूत हुई तो घाटी की आर्थिकी को दुनिया में भी अलग ही पहचान मिलेगी। विश्वभर में सीबकथॉर्न पर आधारित अरबों रुपए का कारोबार हो रहा है, लेकिन प्रदेश की भागीदारी बेहद कम है।

जायका को मिल गई मंजूरी किसानों को मिलेगी मजदूरी

कुल्लू — लाहुल-स्पीति शिमला व कुल्लू जिला को भारत व जापान सरकार के सामूहिक प्रयासों से जायका प्रोजेक्ट को मंजूरी मिली है। 800 करोड़ के इस प्रोजेक्ट से किसानों को काफी अधिक मजदूरी मिलेगी। इस प्रोजेक्ट से किस किस जड़ी बूटी पर कार्य किए जाएंगे। इसे लेकर अभी वन विभाग के पास किसी तरह की कोई गाइडलाइन नहीं आई है, लेकिन छरमा पर 800 करोड़ का प्रोजेक्ट मिल गया है। इस प्रोजेक्ट से अब लाहुल-स्पीति, कुल्लू, शिमला के लोगों की तकदीर बदल जाएगी। इसे लेकर विभाग के अधिकारियों ने इसका खुलासा मंगलवार को कुल्लू में हुए एकदिवसीय छरमा के सेमिनार के मौके पर किया है। जापान इंटरनेशनल कोरपोरेशन एजेंसी के साथ समझौता हुआ है। फंड को लेकर अब कोई कमी नहीं रहेगी। जल्द ही इस प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू होगा।

चीन कर रहा 90 फीसदी उत्पादन

40 देशों में पाए जाने वाले छरमा ने गुणवत्ता के लिहाज से बाजी मारी है, जिसका दावा सीएसआईआर त्रिवेंद्रम के वैज्ञानिक पहले ही कर चुके हैं। तिब्बत में दवा पद्धति के अहम घटक छरमा का 90 फीसदी उत्पादन चीन ही कर रहा है। रूस, मंगोलिया, स्कॉटलैंड सहित 40 से भी ज्यादा देशों में पाई जाने वाले इस बहुउपयोगी झाड़ी को विभिन्न बीमारियों के उपचार तथा सौंदर्य प्रसाधनों के लिहाज से अहम माना जा चुका है। इससे बनने वाली दवाओं में एंटीएजिंग, एंटी कैंसर, स्किन टॉनिक आदि के रूप में भी सफल प्रयोग हो चुके हैं। बाजार में सीबकथॉर्न अपना रंग जमाती जा रही है और ओमेगा सेवन नाम का कैप्सूल एंटी एजिंग के लिए कारगर माना जा रहा है। चीन में प्रतिवर्ष छरमा के उत्पादन एवं उत्पादों से प्रतिवर्ष करीब 300 मिलियन यूयान अर्जित कर रहा है। देश में लेह-लद्दाख के बाद किन्नौर, लाहुल-स्पीति सहित उत्तराखंड के चमोली, अरुणाचल तक इसके विस्तार को अमलीजामा पहनाने के प्रयास जारी हैं।


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