वीआईपी संस्कृति को ‘न’
(किशन सिंह गतवाल, सतौन, सिरमौर)
सच्चाई कड़वी होती है। हकीकत यह है कि देश में अति विशिष्ट संस्कृति बड़ी तेजी से पांव पसार रही है। यही कारण है कि खुद को औरों से अलहदा प्रदर्शित करने के प्रयत्न में हमारे कर्णधार और अधिकारीगण दिन-रात लगे हैं। इससे आम नागरिक और शासक-प्रशासक के बीच अंतर की खाई और बढ़ती गई। कहां एक सामान्य नागरिक और कहां अभिमानी शासक? मोदी सरकार ने इस वीआईपी नव अभिजात्य वर्ग की लालबत्ती उतार कर अच्छा ही किया। यदि जनता के सेवक लालबत्ती लगाकर घूमते रहेंगे, तो निश्चय ही मतदाताओं से दूरिया बढ़ती रहतीं। लालबत्ती संस्कृति से जनसामान्य और सरकारी कर्मचारी पूर्ण निष्ठा से कर्त्तव्य निर्वहन नहीं कर पाते और बड़ी बाधाएं आड़े आती हैं। अब देश लालबत्ती कल्चर और वीआईपी संस्कृति से राहत पाएगा। भले ही कुछ समय के लिए आलोचना हो, लेकिन यह अत्यंत सार्थक व उपयोगी कदम है।
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