कश्मीर में कल्पना और नवाचार की जरूरत

By: May 19th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंहप्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

भीड़ को यह महसूस कराया जाना चाहिए कि अराजकता उसके हित में नहीं है और इसके कारण उन्हें जनधन की भयंकर हानि उठानी पड़ सकती है। उन्हें इस बात का एहसास कराया जाना चाहिए कि सैन्यबलों पर पत्थर फेंकना कोई मजाक का विषय नहीं है बल्कि ऐसा करने पर तीखा और कठोर जवाब मिल सकता है। शायद, इसके लिए पृष्ठभूमि तैयार किए जाने की जरूरत है। व्यापक रक्तपात से बचने के लिए पर्याप्त चेतावानी और निरोधक सलाहों को बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण में नवाचारी रणनीति और कदमों की जरूरत सबसे अधिक होगी…

एक मेजर द्वारा एक पत्थरबाज को अपनी जीप से बांधने का वाकया, अपने साथियों को बचाने की बहुत ही नवीन रणनीति का परिचायक है। ऐसा करके मेजर ने उन पत्थरबाजों पर बिना एक गोली चलाए अपने सहकर्मियों की रक्षा की, जो चारों तरफ से उनको घेरे हुए थे। इस प्रकरण को लेकर बहुत सारे मानवाधिकारवादियों और उदारवादियों ने हो-हल्ला मचाया, जबकि सच्चाई यह है कि इस घटना के दौरान न तो किसी को हिरासत में लिया गया था और न ही किसी पर गोली चली थी, जीप में बांधे गए व्यक्ति को भी बाद में छोड़ दिया गया। सैन्य इतिहास ऐसी अनेकों अपरंपरागत रणनीतियों से भरा पड़ा है। महान सेनानायक हनीबल अपने विरोधियों पर सांपों से भरे हुई संदूकों का इस्तेमाल करता था, इसके कारण वह अचंभित रह जाते और अंत में भागने के लिए विवश हो जाते। पुलिस या सेना के समक्ष आज सबसे बड़ा प्रश्न बिना लोगों को हताहत किए उपद्रवी भीड़ को नियंत्रित करना है। ऐसे लोग जिनकी मान्यता है कि संवाद ही कश्मीर समस्या का एकमात्र समाधान है, वे गलत अपेक्षाएं पाल बैठे हैं। ऐसी भीड़ से क्या संवाद किया जा सकता है, जिसे अपने हित-अनहित का ज्ञान नहीं है और धन द्वारा प्रायोजित अथवा धार्मिक भावनाओं को सनक की हद तक प्रेरित है। कानून से बंधे सैनिकों के ऊपर बिना भय के तीखा हमला करने वाले लोगों के खिलाफ निर्णायक और कठोर कार्रवाई करके ही संवाद की स्थितियां पैदा की जा सकती हैं। बहुत सारे लोगों को यह बात पता नहीं होगी कि पत्थरबाजी हिंसक दृष्टिकोण के कारण तीन हजार तीन सौ से अधिक जवानों को हास्पिटल में दाखिल होना पड़ा है।

जम्मू के एक सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सैन्यबल के प्रति कश्मीर में दिखलाई दे रहा वर्तमान दृष्टिकोण तीन चरणों में पैदा हुआ है। शुरुआती चरण में वे इस सेना की उपस्थिति को लेकर ज्यादा फिक्रमंद नहीं थे। दूसरे चरण में वे सेना से बहुत भयभीत हुए और इसके कारण एक अनुशासन पैदा हुआ। अब तीसरे चरण में, पृथक्कतावादियों के निरंतर उकसावे के कारण उनमें यह विश्वास पैदा हो गया है कि पत्थर फेंकने के बावजूद उनके खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा। उन्हें लगता है कि वह गाली दे सकते हैं, पत्थर फेंक सकते हैं क्योंकि सैन्य बलों की तरफ से इसका कोई जवाब नहीं दिया जाएगा। यह बहुत बुरी स्थिति है और अराजकता की स्थिति से बचे रहने के लिए हमें कठोर कदम उठाने से परहेज नहीं करना चाहिए। भीड़ को यह महसूस कराया जाना चाहिए कि अराजकता उनके हित में नहीं है और इसके कारण उन्हें भयंकर जनधन की हानि उठानी पड़ सकती है। उन्हें इस बात का अहसास कराया जाना चाहिए कि सैन्य बलों पर पत्थर फेंकना कोई मजाक का विषय नहीं है बल्कि ऐसा करने पर तीखा और कठोर जवाब मिल सकता है। शायद, इसके लिए पृष्ठभूमि तैयार किए जाने की जरूरत है। व्यापक रक्तपात से बचने के लिए पर्याप्त चेतावानी और निरोधक सलाहों को बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाना चाहिए। इस दृष्टिकोण में नवाचारी रणनीति और कदमों की जरूरत सबसे अधिक होगी। इस पूरी बहस में इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर के कुल 22 जिलों में से कश्मीर घाटी में केवल पांच जिले आते हैं और मात्र 15 प्रतिशत जनसंख्या रहती है। हाल में जब मै दिल्ली हवाई अड्डे पर था, तो मेरे समाने आधा हिजाब पहने एक लड़की बैठी हुई थी और वह श्रीनगर जा रही थी।

मैंने उससे पूछा कि वहां पर स्थितियां कैसी हैं। वह वास्तव में भयभीत थी। उसने कहा कि वह शिया मुसलमान है और वहां पर सुन्नी मुसलमानों ने उनका जीना हराम कर रखा है। पहली बार जम्मू-कश्मीर के संदर्भों में मुझे एक नए किस्म के भय का पता चला। मैंने तब महसूस किया कि कश्मीरियों की आजादी मांगने की बात एक दुष्प्रचार है और यह पूरी तरह से झूठे तथ्यों पर आधारित है। उन अलगाववादियों को जिन्हें मीडिया में पर्याप्त स्थान मिलता है, जम्मू-कश्मीर के बहुत छोटे से हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं। घाटी के बाहर रहने वाले 85 प्रतिशत जनसंख्या और गैर सुन्नी मुसलमान बड़ा बदलाव पैदा कर सकते हैं लेकिन इसके लिए उन्हें आगे आना होगा। सरकार को इन लोगों की आकांक्षाओं और कल्पनाओं को पकड़ना होगा, उसके अनुसार रणनीति बनानी होगी ताकि यह मूक जनसंख्या सशक्त होकर सामने आ सके। यही लोग घाटी के दबदबे वाली आवाज को अलग-थलग कर सकते हैं। इतिहास में इस बात के पुख्ता प्रमाण है कि यदि नेहरू घाटी के सम्मोहन में न उलझे होते तो सरदार पटेल ने इस समस्या का समाधान कर दिया होता। मैं यहां पर सरदार पटेल द्वारा कश्मीर समस्या का हल ढूंढने के दौरान घटित हुई दो घटनाओं को उल्लेख करना चाहूंगा। जब पाकिस्तान द्वारा समर्थित कबायली श्रीनगर के करीब पहुंच गए और महाराजा हरि सिंह विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हो गए, तब यह प्रश्न उठा कि पाकिस्तान समर्थक सेना को कैसा रोका जाए।

जवाहर लाल नेहरू अंतरराष्ट्रीय बिरादरी द्वारा उठाए जाने वाले कदमों को लेकर बहुत सशंकित थे। उन्हें लगता था कि इससे संयुक्त राष्ट्र उत्तेजित हो जाएगा। तब पटेल ने नेहरू से पूछा कि ‘जवाहर लाल तुम कश्मीर चाहते हो कि नहीं।’ सहमति में नेहरू ने सिर हिलाया। इसके बाद पटेल मानेकशॉ की तरफ मुड़े और कहा कि ‘तुम्हें सहमति का आदेश मिल गया है, सेना को आगे बढ़ने के लिए आदेश दो।’ रातोंरात सेना श्रीनगर पहुंची। इस तरह स्थिति संभली, लेकिन इसके बाद नेहरू फिर से मामला संयुक्तराष्ट्र में लेकर चले गए, इस तरह भारत एक नए गतिरोध में फंस गया। यह कहानी फील्ड मार्शल ने मुझे खुद श्रीनगर एयरपोर्ट पर बताई थी। पटेल नेहरू के खिलाफ कभी कुछ नहीं बोले, तब भी जब कश्मीर मामले का कार्यभार उनसे छीन लिया गया। एक बार उन्होंने जयप्रकाश नारायण से कहा था कि यदि नेहरू ने हस्तक्षेप नहीं किया होता तो कश्मीर मामले का समाधान चार दिनों में हो जाता। हैदराबाद की समस्या का समाधान करने में भी उन्हें समय नहीं लगा था। नेहरू अपनी ही रूमानी दुनिया में रहते थे और यथार्थ को भांपने की क्षमता उनके भीतर क्षीण थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि वह कश्मीर से प्रेम करते थे, लेकिन उनका सामना एक ऐसे शत्रु से था, जिसके सफाए के लिए  कश्मीर में उसे कल्पनाशील झटके दिए जाने की जरूरत थी। मोदी को इस बिगड़ी हुई स्थिति को संभालने के लिए एक सर्वथा नए दृष्टिकोण की जरूरत हागी।

बस स्टैंड

पहला यात्री : ज्यों ही ही हम हिमाचल की गड्ढों और पैबंद भरी सड़कों को छोड़कर पंजाब में प्रवेश करते हैं, पूरी तरह समतल सड़के मिलती हैं। क्यों?

दूसरा यात्री : हिमाचल के शीर्षस्थ नेता हेलिकाप्टर से यात्रा करते हैं,इसलिए उन्हें सड़कों की स्थिति के बारे में कुछ नहीं पता है।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com

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