संस्कृति बनाम आतंकवाद

By: May 6th, 2017 12:05 am

खेल, कला, फिल्म, साहित्य, संस्कृति और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते। युद्ध का मैदान और जनता-दर-जनता संबंध स्थापित नहीं हो सकते। ये स्थितियां आपस में पर्याय ही हैं। ये कथन पहले भी कहे जा चुके हैं। अब ज्यादा प्रासंगिक हैं। भारत सरकार ने पाकिस्तान की कबड्डी और स्क्वॉश टीम को एशियन चैंपियनशिप के लिए वीजा नहीं दिया। नतीजतन पाक खिलाड़ी इन प्रतियोगिताओं में भाग नहीं ले सकेंगे। एक एनजीओ ने पाकिस्तान के 47 बच्चों को दिल्ली आमंत्रित किया था। मकसद दोनों देशों के बच्चों के बीच संवाद और संपर्क था, लेकिन पाकिस्तानी बच्चे उसी दिन भारत आए, जब बॉर्डर एक्शन टीम ने बर्बरता से दो भारतीय जवानों के पार्थिव शरीरों को न केवल क्षत-विक्षत किया, बल्कि सिर कलम ही कर दिए। विदेश मंत्रालय के आग्रह पर तुरंत उन बच्चों को पाकिस्तान लौटा दिया गया। पाकिस्तान के प्रति ये फैसले वाकई राष्ट्रवादी हैं। कुछ बौद्धिक किस्म की खोपडि़यां आतंकवाद, युद्ध और सांस्कृतिक संबंधों को भिन्न मानती हैं। उनकी दलीलें हैं कि यदि दोनों देशों के लोग आपस में संवाद नहीं करेंगे, तो भारत-विरोधी फौज और आतंकियों के खिलाफ, पाकिस्तान में ही, एक व्यापक जनमत तैयार कैसे होगा? कई सालों से भारत-पाक के दरमियान क्रिकेट और हाकी खेलों की सीरीज नहीं हुई हैं। दोनों देश तीसरी जमीन पर खेलते रहे हैं, क्योंकि ओलंपिक और विश्व कप प्रतियोगिताओं की बाध्यताएं हैं। लेकिन मौजूदा दौर में आस्टे्रलिया जैसे तीसरे देश में फिल्म अवार्ड नाइट का आयोजन 7-13 मई के बीच किया जा रहा है। बॉलीवुड से धर्मेंद्र, जितेंद्र, शबाना आजमी, जावेद अख्तर, रणधीर कपूर, शेखर सुमन, अर्जुन रामपाल सरीखे करीब 50 पुराने-नए कलाकार उस समारोह में शिरकत करेंगे। विडंबना यह है कि उसी मंच पर फख्र-ए-आलम, फैजल कुरैशी और अली अजमत सरीखे पाकिस्तान के ऐसे कलाकार भी होंगे, जो बुनियादी और मानसिक तौर पर भारत-विरोधी हैं। फैजल ने अपना एक अवार्ड कश्मीर आंदोलन को समर्पित किया था। उसने कश्मीर में जारी कथित जुल्मों, अत्याचारों का भी जिक्र किया। फख्र्र यू-ट्यूब पर भारत को गालियां देता है और खूब कोसता है। उसने भारत विरोधी वीडियो भी तैयार किए हैं। वह कश्मीर की आजादी की बात करता है और हुर्रियत नेताओं को ‘हीरो’ करार देता रहा है। फख्र कश्मीर को पाकिस्तान में शामिल करने का समर्थक रहा है। अली अजमत हिजबुल मुजाहिदीन के मार दिए गए आतंकी बुरहान वानी का महिमामंडन करते हुए गीत गाता है। ये सृजन सांस्कृतिक कला के हिस्से हैं या आतंकवाद के स्तुति-गान…! एक तरफ पाकिस्तान की फौज हमारे सैनिकों के सिर कलम कर रही है, तो दूसरी ओर हमारे स्थापित कलाकार उन आतंकी कलाकारों के साथ मंच साझा करेंगे, तो भारत विरोधी हैं। शक्ति कपूर और सोनू निगम सरीखे कलाकारों ने उस समारोह में शिरकत करने से इनकार कर दिया है। पाकिस्तान हत्यारा है, बर्बर है, जानवर है। उसके साथ सांस्कृतिक और कलात्मक संबंधों की क्या मजबूरी है? आयोजन आईएफएफएए ने किया है। उसके अध्यक्ष विकास पॉल ने काफी दबावों के बाद पाकिस्तान के कलाकारों को शामिल न करने का आश्वासन दिया है, लेकिन इससे पहले उनका तर्क था कि टिकटें बिक चुकी हैं, करार हो चुके हैं, यह एक पेशेवर आयोजन है,उ से रद्द नहीं किया जा सकता। पाक कलाकारों को अलग करेंगे, तो उनकी फीस का खामियाजा झेलना पड़ेगा। कुल मिलाकर आर्थिक नुकसान होगा। फिर आयोजन भारत-पाक से काफी दूर तीसरे देश में होना है। इस कार्यक्रम को 7-13 मई के बीच किया जा रहा है। आखिरी तारीख को सिडनी में कार्यक्रम होगा। सवाल सिर्फ पाकिस्तान के कलाकारों का ही नहीं है। सवाल हमारे उन कलाकारों का भी है, पैसे की भूख जिनके लिए मायने नहीं रखती। उनमें से कुछ सांसद भी रह चुके हैं। फिल्मी दुनिया में वे एक लंबी पारी खेल चुके हैं। फिर उनके लिए ऐसा क्या आकर्षण था कि वे पाकिस्तान के विवादित कलाकारों के साथ मंच साझा करने को तैयार हुए? क्या सैनिकों के बलिदान उन्हें भावुक नहीं बनाते? क्या पाकिस्तान के प्रति रोष और गुस्सा पैदा नहीं होता? क्या एक ‘शहीद’ राष्ट्रीय स्वाभिमान नहीं है? क्या पैसे से बढ़कर देश नहीं है? एक तरफ सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के संकेत देते हैं। दूसरी ओर पाकिस्तान के साथ सभी तरह के संबंध तोड़ने का दबाव मोदी सरकार पर है। और हमारे कुछ फिल्मी कलाकार आस्टे्रलिया में ऐयाशी करना चाहते हैं। शर्मनाक…धिक्कार…राष्ट्रविरोधी…!

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