हिंसा की विष बेल

By: May 25th, 2017 12:01 am

( मानसी जोशी )

सहारनपुर में फिर हिंसा भड़क उठी। उपद्रवियों के कारण वह जातीय हिंसा के चपेट में आ गया। जाति के मुद्दे को लेकर सामाजिक वातावरण अशांत करना मतलब उसी मुद्दे पर अड़े रहना है। इससे कभी कुछ हासिल नहीं होगा। उससे सिर्फ  समाज में जाति के सहारे दीवारें बनती जाएंगी और उस कारण किसी छोटे प्रश्न को लेकर भी हंगामा करने का मौका देखा जाएगा। उत्तर प्रदेश में जातीय हिंसा के मामले हमेशा सामने आते रहते हैं। जाति के आधार पर होने वाली लड़ाइयों ने राज्य का वातावरण हमेशा बिगाड़ कर रखा है। जिन्हें समाज में शांति पसंद नहीं ऐसे लोग खास कर अशांति फैलाने में आगे रहते है। खुद का घर महफूज रखकर दूसरों का घर आग में जलते हुए हंसकर देखने वालों को समाज से बाहर किया जाना जरूरी है। क्योंकि वही बदमाश हिंसा की जड़ होते है। वैसे यह सारा किया धरा तो नेताओं का ही होता है। वही अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोगों को कभी जाति के नाम से लड़ाते हैं, तो कभी धर्म के नाम पर दंगे करवाते हैं। वे अपने हित साधने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं, चाहे किसी की गोद सूनी हो जाए या कोई विधवा ही क्यों न हो जाए। लोग इनके बहकावे में आने के बजाय अपने विवेक से काम लें।

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