अपने पांवों के छालों से स्वर्णिम भविष्य को छूती सीमा

By: Jun 4th, 2017 12:08 am

अपने पांवों के छालों से स्वर्णिम भविष्य को छूती सीमापहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के चंबा जिला के रेटा गांव की सीमा ने अपने पांवों के छालों से स्वर्णिम इतिहास को छू लिया है। सीमा ने कड़ी मेहनत और अपने बुंलद हौसलों से हिमाचल प्रदेश के नाम सुनहरा अध्याय भी जोड़ दिया है, जोकि अब प्रदेश की उभरती खेल प्रतिभाओं के लिए सदियों तक एक प्रेरणा स्रोत बना रहेगा। एशियन यूथ एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत को कासां दिलाने का कारनामा एकमात्र सीमा ने कर दिखाया है। इससे पहले सीनियर एशियन गेम्स में 1986 में सुमन रावत ने प्रदेश को मेडल दिलाया था। सीमा ने रेटा के सरकारी स्कूल में मात्र 200 मीटर के मैदान में अभ्यास करके तीन हजार मीटर की दौड़ में राष्ट्रीय रिकार्ड अपने नाम करते हुए इंटरनेशनल पदक अपने नाम किया है। चंबा की बेटी ने बैंकाक में देश का नाम रोशन किया है। आर्थिक बाधाएं भी पहाड़ की बेटी की उड़ान नहीं रोक पाई हैं। मात्र पांच फुट कद और साढ़े 17 वर्षीय सीमा मैदान में पहुंचते ही तूफान बन जाती है। अब सीमा यूथ कॉमनवैल्थ गेम्स कनाडा के बाहामस में भारत के लिए मेडल लाने को जाएंगी।  चंबा के ग्रामीण क्षेत्र रेटा की रहने वाली सीमा अति गरीब परिवार से संबंध रखने के बाबजूद अपने हौसले और हुनर से बड़े-बड़े एथलीटों को धूल चटा रही है। साई होस्टल में मात्र दो वर्ष में ही सीमा ने दो नेशनल रिकार्ड तोड़ कर अपने नाम किए हैं। साथ ही राष्ट्रीय स्तर पर नौ मेडल जीते हैं, जिनमें से चार गोल्ड मेडल हैं। सीमा ने छठी कक्षा में पढ़ते हुए एथलेटिक्स का अभ्यास शुरू कर दिया था। पिता स्वर्गीय बजीरू राम की पांच वर्ष पहले मृत्यु होने के बावजूद सीमा ने हौसला नहीं हारा। माता केसरी देवी ने मेहनत कर बेटी को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाया। सीमा का परिवार चुराह उपमंडल की झुलाड़ा पंचायत के रेटा गांव में खेतीबाड़ी करके ही परिवार का पालन पोषण कर रहा है। सीमा के परिवार में माता, तीन भाई और तीन बहने हैं, वह परिवार में सबसे छोटी है। सीमा की कड़ी मेहनत और लगन को देखते हुए माता केसरी ने अपनी एफडी और भाई ने उधार पैसे लेकर भी आर्थिक रूप से मदद की है। सीमा ने अपने परिवार  के परिश्रम को सही अर्थों में अब पूरे देश के लिए पूरा करके दिखा दिया है। आरंभिक पढ़ाई रेटा के ही स्कूल में प्राप्त की। इस दौरान स्कूल के 200 मीटर के मैदान में लगातार सुबह-शाम अभ्यास जारी रखा। इसके बाद सीमा का वर्ष 2015 में स्पोर्ट्स होस्टल साई धर्मशाला में चयन हुआ। साई होस्टल में एथलेटिक्स कोच केएस पटियाल के मार्गदर्शन में वह दो सालों में ही नेशनल रिकार्ड तोड़ कर अंतरराष्ट्रीय मेडल अपने नाम कर चुकी हैं। सीमा गर्ल्ज स्कूल धर्मशाला में जमा दो की कक्षा में पढ़ाई कर रही हैं।

ये रिकार्ड-मेडल किए अपने नाम

सीमा ने वर्ष 2016 में नेशनल यूथ चैंपियनशिप तमिलनाड़ु के कोएंबटूर में दो हजार मीटर में छह मिनट 27 सेकंड और 13 एस में नेशनल रिकार्ड बनाया। नेशनल यूथ एथलेटिक्स चैंपियनशिप में अप्रैल 22-23 में नया नेशनल रिकार्ड तीन हजार मीटर में नौ मिनट 56 सेकंड  मीटर में गोल्ड, नेशनल पाईका आंध्रप्रदेश में तीन हज़ार मीटर में गोल्ड, 1500 मीटर में ब्रांज, स्कूल नेशनल चैंपियनशिप में दो हजार मीटर में ब्रांज, स्कूल नेशनल केरल में सिल्वर मेडल और अब यूथ एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत के लिए ब्रांज मेडल के साथ कुल मिलाकर 10 मेडल, जिनमें चार गोल्ड अपने और प्रदेश को नाम किए हैं।

मुलाकात

जीवन सही मायने में अब खेल से शुरू हुआ है…

अब तब के सफर में खुद पर कितना भरोसा? इसकी वजह?

खुद पर भरोसा करने के साथ-साथ परिवार और अपने गुरुओं-कोच ने जो विश्वास मुझ पर दिखाया, उसी से मुझे अधिक आत्मविश्वास से कड़ा अभ्यास करने की प्रेरणा मिली।

दौड़ना ही क्यों शुरू किया? और पहली दौड़ कब हुई?

छठी कक्षा में स्कूल में आयोजित कंपीटीशन में भाग लिया और विजेता बनी। अपने सहपाठियों-अध्यापकों और परिवार का प्यार मिला, तब से दौड़ने का सिलसिला शुरू हो गया।

जब देश के लिए पदक मिला, तो मन में क्या विचार आया?

देश के लिए गोल्ड न जीत पाने का मलाल है, लेकिन उत्साह है कि अब वर्ल्ड गेम्स और कॉमनवैल्थ के लिए क्वालिफाई कर लिया है, वहां पर बेहतरीन प्रदर्शन कंरूगी।

किन लोगों का धन्यवाद करना चाहेंगी?

कोच केएस पटियाल, माता केसरी देवी और परिवार व दिव्य हिमाचल  का पासपोर्ट बनवाने के लिए तय दिल से शुक्रिया करना चाहूंगी।

अब खुद में कितना परिवर्तन आया है और दूसरे किस प्रकार देखते हैं। क्या सीमा बदल गई?

जीवन में परिवर्तन आना स्वाभाभिक है, लेकिन अब और अधिक मेहनत से अभ्यास करने की प्रेरणा बहुत अधिक लोगों से मिलकर मिल रही है। अपने गुरुओं, परिवार और देशवासियों के लिए मैं वही सीमा हूं।

इतने सारे मेडल कहां रखती हैं। जब मां को बताती हैं, तो उनकी प्रतिक्रिया क्या रहती है?

मैं मेडल अपने साथ रखती हूं। जब मां को मेडल दिखाती हूं, तो उनकी आंखों में खुशी के आंसू आ जाते हैं, मेरी मां मुझे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।

आपके जीवन में अब खेल के मायने क्या है?

मेरा जीवन सही मायने में अब खेल से शुरू हुआ है, और अब खेल ही मेरा जीवन है।

कोई ऐसा सपना, जो लुका छिपी कर रहा है?

अब ओलपिंक में भारत को गोल्ड मेडल दिलाने का सपना है।

एथलेटिक्स में आपके पसंदीदा खिलाड़ी?

भारत के लंबी दूरी के धावकों को पंसद करती हूं।

कोई अनुभव जो विदेश में मिला या ऐसी सीख जो इस प्रतियोगिता में आपसे आकर जुड़ गई?

खिलाडि़यों को बेहतरीन सुविधाओं के साथ-साथ कड़ी मेहनत करते हुए उनसे और अधिक आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली है।

लक्ष्य की ओर आपके कदमों की सबसे बड़ी ताकत?

लक्ष्य को प्राप्त करने में मेरी ताकत मेरा परिवार, मेरे कोच, मेरे सहपाठी और मुझे लगातार प्रोत्साहित करने वाले सभी लोग हैं।

जब मैदान पर नहीं होती, तो क्या करती है?

अधिकतर समय अभ्यास में ही बिताती हूं। इसके अलावा पढ़ाई करने में अपना समय लगाती हूं।

मनपसंद फिल्मी हस्ती और पहाड़ी गीत?

 फिल्मों और गीतों की तरफ मेरा रुझान बहुत कम है।

  • नरेन कुमार, धर्मशाला

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