जीएसटी के प्रभाव का जटिल प्रश्न

By: Jun 20th, 2017 12:05 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक आर्थिक विश्लेषक  एवं टिप्पणीकार हैं

डा. भरत झुनझुनवालाकोलंबिया, पेरू तथा जापान में भी आम आदमी पर इसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके विपरीत वियतनाम, इथोपिया एवं पाकिस्तान में जीएसटी का आम आदमी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इन देशों में आम आदमी द्वारा खपत किए जाने वाले माल पर टैक्स की दरें कम रखी गई थीं। अपने देश में विभिन्न राज्यों द्वारा अलग-अलग माल पर अलग-अलग दरों से सेल टैक्स वसूल किया जा रहा था। अतः कुल प्रभाव का आकलन करना फिलहाल कठिन है…

गुड्स एंड सर्विस टैक्स जुलाई से लागू होने जा रहा है। वर्तमान मे फैक्टरी मालिकों को एक्साइज ड्यूटी एवं वैट अलग-अलग अदा करना होता है तथा रेस्तरां आदि को सर्विस टैक्स तथा वैट अलग-अलग अदा करना होता है। जीएसटी लागू होने के बाद ये दोनों टैक्स एक हो जाएंगे। उद्यमियों तथा व्यापारियों को दो मासिक रिर्टन नही भरने होंगे। साथ-साथ अंतरराज्यीय व्यापार आसान हो जाएगा। एक राज्य में अदा किए गए जीएसटी का सेट-ऑफ  दूसरे राज्य में लिया जा सकेगा। एक राज्य से दूसरे राज्य में माल भेजने को बार्डर पर प्रवेश के फार्म की जरूरत नही होगी। निश्चित रूप से जीएसटी आर्थिक गतिविधियों को सरल बनाएगा और अर्थव्यवस्था को गति देगा। जीएसटी व्यवस्था में टैक्स की पांच श्रेणीयां हैं – शून्य, 5, 12, 18 एवं 28 प्रतिशत। विभिन्न माल को इन श्रेणियों मे वर्गीकृत किया गया है। जैसे फल, सब्जी, छपी हुई पुस्तकें एवं अखबार को शून्य श्रेणी में रखा गया है। 1000 रुपए से कम के रेडीमेड कपड़ों एवं 500 रुपए से कम के जूते-चप्पलों को 5 प्रतिशत की श्रेणी में रखा गया है। घी, मक्खन, नमकीन को 12 प्रतिशत की श्रेणी में रखा गया है। 500 रुपए से अधिक के जूते- चप्पल, चीनी, आईस क्रीम, स्टील के उत्पाद एवं अधिकतर अन्य उत्पादों को 18 प्रतिशत की श्रेणी मे रखा गया है। बीड़ी, चॉकलेट, पान मसाला, बोतलबंद पीने का पानी, वाशिंग मशीन, कार तथा बाइक को 28 प्रतिशत की श्रेणी मे रखा गया है। मूल रूप से वस्तुओं का श्रेणियों में विभाजन सही दिखता है। कमजोर वर्गों द्वारा खपत की जाने वाली वस्तुओं को न्यून श्रेणी मे रखा गया है जबकि उच्च वर्ग द्वारा खपत की जाने वाली वस्तुओं को 28 प्रतिशत की श्रेणी में रखा गया है।

फिर भी कुछ विसंगतियां दिखती हैं। जैसे आयुर्वेदिक दवाओं, छाता, सिलाई मशीन, स्वास्थ्य की जांच की मशीनें जैसे बीपी मशीन तथा छात्रों द्वारा उपयोग की जाने वाली नोट बुक को 12 प्रतिशत की श्रेणी मे रखा गया है। इन माल को ज्यादा छूट देना चाहिए था और 5 प्रतिशत की श्रेणी में रखना था। 12 प्रतिशत की श्रेणी मे मोबाइल फोन को भी रखा गया है। इसे 18 या 28 प्रतिशत की श्रेणी मे रखा जा सकता था। सेवाओं का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है। 1000 रुपए से कम प्रतिदिन चार्ज करने वाले होटल को शून्य श्रेणी में रखा गया है। रेल तथा हवाई यात्रा को 5 प्रतिशत की श्रेणी में रखा गया है। बिजनेस क्लास की हवाई यात्रा को 12 प्रतिशत में रखा गया है। एयर कंडीशन होटल तथा टेलीफोन सेल को 18 प्रतिशत की श्रेणी में रखा गया है। 5 सितारा होटल एवं सिनेमा को 28 प्रतिशत की श्रेणी मे रखा गया है। मूल रूप से यह वर्गीकरण भी सही है परंतु यहां भी कुछ विसंगतियां हैं। रेल यात्रा में एयर कंडीशन टिकट को 18 या 28 प्रतिशत में रखा जाना चाहिए था। बिजनेस क्लास की हवाई यात्रा को 18 प्रतिशत के स्थान पर 28 प्रतिशत की श्रेणी में रखा जाना चाहिए था। जीएसटी का दूसरा पक्ष कुल टैक्स का है। देखना होगा कि सब माल को जोड़ लेने पर कुल टैक्स वसूली पर क्या प्रभाव पड़ेगा। दूसरे देशों में जीएसटी के दोनों तरह के प्रभाव देखे गए हैं। मलेशिया मे 2015 मे जीएसटी लागू किया गया था। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ  मलेशिया द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि 64 प्रतिशत नागरिकों पर टैक्स का अतिरिक्त बोझ पड़ा और उनकी कुल खपत में कमी आई। दूसरे अध्ययन में पाया गया कि 98 प्रतिशत कर्मियों ने जीएसटी के कारण वेतन वृद्धि की मांग की थी। आस्ट्रेलिया में जीएसटी का गरीब पर बोझ ज्यादा पड़ा है।

जीएसटी के कारण गरीब को अपनी आय का 4-4 प्रतिशत अधिक टैक्स देना पड़ा जबकि अमीर को मात्र 1-4 प्रतिशत। कोलंबिया, पेरू तथा जापान में भी आम आदमी पर इसी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इसके विपरीत वियतनाम, इथोपिया एवं पाकिस्तान में जीएसटी का आम आदमी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। इन देशों में आम आदमी द्वारा खपत किए जाने वाले माल पर टैक्स की दरें कम रखी गई थीं। अपने देश में विभिन्न राज्यों द्वारा अलग-अलग माल पर अलग-अलग दरों से सेल टैक्स वसूल किया जा रहा था। अतः कुल प्रभाव का आकलन करना फिलहाल कठिन है। एक ही माल पर किसी राज्य में जीएसटी की दर सेल टैक्स से कम हो सकती है। उसी माल पर दूसरे राज्य मे जीएसटी की दर ऊंची हो सकती है। जीएसटी का उपभोक्ता पर पड़ने वाले अंतिम प्रभाव कुछ समय बाद ही पता लगेगा। जीएसटी के लागू होने पर असंगठित क्षेत्र के उद्यमियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। वर्तमान में असंगठित क्षेत्र में तमाम छोटे उद्योग चलते हैं, जैसे साबुन या मोमबत्ती बनाना, कागज के लिफाफे बनाना इत्यादि। जीएसटी में छोटे उद्योगों को टैक्स के दायरे से बाहर रखा गया है। इसके बावजूद इनपर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है चूंकि इनके द्वारा सप्लाई किए गए माल पर सेट-ऑफ  नहीं मिलेगा। जैसे मान लीजिए किसी कंपनी को कागज के लिफाफे खरीदने हैं।

कुटीर उद्योग एवं बड़े उद्यमी द्वारा इन्हें एक ही दाम पर सप्लाई करने की पेशकश की जाती है। दोनों, यानी कुटीर उद्योग एवं बड़े उद्यमी द्वारा कागज एक ही दुकान से एक ही दाम पर खरीदा जाता है। कागज की खरीद पर दोनों द्वारा वैट अदा किया जाता है। ऐसे में कंपनी यदि बड़े उद्यमी से लिफाफे खरीदेगी तो लिफाफे के निर्माता द्वारा कागज की खरीद पर अदा किए गए वैट का उसे सेट-ऑफ  मिलेगा। उसी लिफाफे को कुटीर उद्यमी से खरीदने पर यह सेट ऑफ  नहीं मिलेगा चूंकि कुटीर उद्यमी द्वारा जीएसटी में पंजीकरण नहीं कराया गया है और मासिक रिटर्न दाखिल नहीं किया गया है। फलस्वरूप जीएसटी का उन छोटे एवं कुटीर उद्योगों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा जो कि टैक्स के दायरे से बाहर है। यहां संज्ञान लेना चाहिए कि वैट के अंतर्गत भी असंगठित श्रेत्र की यह समस्या मौजूद है। कुटीर उद्योग द्वारा सप्लाई किए गए माल पर वैट का सेट ऑफ  नही मिलता है। एक्साइज ड्यूटी के अंतर्गत भी असंगठित क्षेत्र की यह समस्या मौजूद है। कुटीर उद्योग द्वारा सप्लाई किए गए माल पर एक्साइज ड्यूटी का सेट ऑफ  नहीं मिलता है। इस समस्या का समाधान जीएसटी के अंतर्गत है ही नहीं। जीएसटी के इस नकारात्मक प्रभाव को समाज के कमजोर वर्गों को झेलना ही होगा। निर्विवादित है कि जीएसटी के कारण टैक्स प्रशासन का सरलीकरण होगा। इससे अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। जीएसटी के अंतर्गत टैक्स व्यवस्था के सरलीकरण से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। परंतु यदि उपभोक्ता पर टैक्स का कुल भार बढ़ा और असंगठित क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव गहरा पड़ा, तो यह साहसिक कदम उल्टा पडे़गा।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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