दुनिया को बचाने के लिए बस तीन साल

By: Jun 30th, 2017 12:02 am

दुनिया को अगर ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के जानलेवा खतरों से बचाना है तो इनसानों के पास केवल तीन साल बचे हैं। एक पत्रिका में छपे लेख में वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने यह चेतावनी दी है। उनका कहना है कि ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में सार्थक कमी लाने की शुरुआत करने के लिए दुनिया के पास अब केवल तीन साल का वक्त बचा है। अगर इतने समय में कार्बन गैसों के उत्सर्जन में प्रभावी कमी नहीं लाई गई तो पेरिस समझौते में तापमान को लेकर जो लक्ष्य तय किया गया था, उसे हासिल करना लगभग नामुमकिन हो जाएगा। साथ ही, स्थितियां शायद हमेशा के लिए इनसानों के हाथ से निकल जाएंगी। विशेषज्ञों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और धरती के तापमान के लिहाज से 2020 का साल बेहद अहम और निर्णायक साबित होने वाला है। इस लेख पर दुनिया के जाने-माने 60 से भी ज्यादा वैज्ञानिकों ने अपने हस्ताक्षर किए हैं। इस लेख में वैज्ञानिकों द्वारा जमा किए गए सबूतों के आधार पर विश्व के राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से अपील की गई है कि वे सच से मुंह न मोड़ें। लेख में कहा गया है कि सभी इको सिस्टम्स (पारिस्थितिक तंत्र) में विनाश की शुरुआत हो चुकी है। आर्कटिक में गर्मियों के दौरान जमी रहने वाली बर्फ गायब हो गई है और बढ़ते तापमान के कारण मूंगे की चट्टानें (कोरल रीफ्स) भी खत्म हो रही हैं। ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन मौजूदा रफ्तार से होता रहा, तो अगले चार से लेकर 26 सालों के बीच ही इतना कार्बन उत्सर्जित हो जाएगा कि तापमान में डेढ़ से लेकर दो डिग्री सेल्सियस का इजाफा होगा। पैरिस क्लाइमेट डील में अहम भूमिका निभाने वाली क्रिस्टियाना फेगेरिस, जो कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की कार्यकारी सचिव भी हैं, के नेतृत्व में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों की एक टीम ने यह बात कही है। क्रिस्टियाना ने कहा कि हमें तत्काल अपने प्रयासों में गंभीरता लानी होगी। उन्होंने कहा कि 2020 का साल हमारे लिए बहुत अहम है। 1880 के दशक से लेकर अब तक मानवीय गतिविधियों के कारण हुए कार्बन उत्सर्जन से दुनिया का तापमान एक सेल्सियस तक बढ़ गया है। स्वीडन के नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक ने 1895 में सबसे पहले यह बात कही थी। नेचर के इस लेख में तापमान बढ़ने के प्रभावों का भी विस्तार से जिक्र किया गया है। इसमें बताया गया है, ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक में बर्फ की चादरें तेजी से पिघल रही हैं।  गर्मी के कारण कोरल रीफ्स मर रही हैं और सारे ईको सिस्टम्स में तबाही की शुरुआत हो गई है।

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