नोटबंदी के निशां

By: Jun 3rd, 2017 12:05 am

(रूप सिंह नेगी, सोलन)

नोटबंदी से आई आर्थिक मंदी को किसी भी सूरत मे नकारा नही जा सकता है और विकास दर में तकरीबन एक फीसदी की गिरावट के साथ 6 फीसदी विकास  दर रहने से देश का विकास के मामले मे पिछड़ जाना स्वाभाविक है। विकास दर की इस गिरावट को विश्व की आर्थिक मंदी से जोड़ना और पिछली सरकारों को जिम्मेदार ठहराने में कोई  औचित्य नही रहता है। वास्तव मे नोटबंदी से निर्माण क्षेत्र में भारी सुस्ती आई, साथ में कई प्रमुख क्षेत्रों में सुस्ती का आलम रहा। छोटी औद्योगिक इकाइयों, छोटे कारोबारियों पर भारी असर  रहा। लाखों लोगों को बेरोजगार होने में परेशानी हुई और जो रही सही कसर थी, वह नकदी की कमी ने पूरी कर दी, जिस से अव्यवस्थित क्षेत्र को थमना पड़ा था। नोटबंदी से पहले व बाद में देश के निर्यात में निरंतर कमी आती रही, जिस का भी  कुछ असर जरूर रहा होगा। यदि कृषि क्षेत्र में भी मंदी होती तो विकास दर में और गिरावट देखी जा सकती थी। गौरतलब है  कि वित्त वर्ष 2016-17 के लिए 7.1 फीसदी विकास दर आंकी गई थी पर यह 6.1 फीसदी ही रही। उम्मीद की जानी चाहिए  कि देश के विकास  में तेजी आएगी और विकास दर में बढ़ोतरी होगी। नोटबंदी ने बेशक भ्रष्टाचार की जड़ों को हिलाया, पर आर्थिक विकास दर को कुछ नुकसान भी पहुंचाया है। इतनी मुश्किलें सहन करने के बाद भी देश नोटबंदी के हक में ही रहा। क्योंकि देश का आम आदमी दशकों से जड़ें जमाए बैठे भ्रष्टाचार से तंग आ चुका था। हर अच्छी चीज के कुछ बुरे असर भी होते हैं। नोटबंदी के निशां भी यही कह रहे हैं।

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