प्रगति की प्राथमिकताओं को कम न करें-2

By: Jun 9th, 2017 12:05 am

प्रो.एनके सिंहप्रो. एनके सिंह

प्रो. एनके सिंह लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

समस्या यह है कि अब भी सरकार नौकरशाही पर निर्भर है और कोई वैकल्पिक व्यवस्था खड़ी नहीं कर सकी है।  नीति आयोग को योजना आयोग का प्रतिबिंब नहीं बनना चाहिए, बल्कि इसे शीर्ष स्तरीय सलाहकारों और ऐसे स्टाफ के समूह के रूप में काम करना चाहिए, जो विचारों को यथार्थ में तबदील कर सके। मोदी के पास एक बहुत उर्वर दिमाग है, जो अनेकों विचारों को जन्म देता है लेकिन यहां पर उन्हें एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत है, जो इन विचारों को धरातल पर उतार सके…

मोदी सरकार कानून व्यवस्था तथा देश की सुरक्षा के बेहतर प्रबंधन के आश्वासन के साथ अस्तित्व में आई थी। नरेंद्र मोदी के उभार ने देश की आशाओं को ऊंचा कर दिया और देश खुद को सुरक्षित तथा बेहतर महसूस करने लगा। देश में अब भी खुशनुमा माहौल बना हुआ है, लेकिन सुरक्षा के मोर्चे पर कुछ खामियां नजर आती हैं। कश्मीर की गुत्थी और वाम आतंकवाद को सुलझाने में कोई बड़ी सफलता मिलने के कारण सुरक्षा एक कमजोर कड़ी बनी हुई है। छत्तीसगढ़ के बस्तर में सुरक्षाबलों का बड़ी संख्या में हताहत होना और कश्मीर में पत्थरबाजी की अनसुलझी समस्या, सुरक्षा सबंधी निर्णायक असफलताएं हैं। जम्मू-कश्मीर को विशेष स्थिति प्रदान करने वाला अनुच्छेद 370 अब भी संविधान में बना हुआ है, जबकि अस्थायी उपबंध होने के कारण इसे अब तक हटा दिया जाना चाहिए था। हमेशा यह दावा किया जाता रहा है कि कश्मीर में उथल-पुथल मचाने के लिए पृथक्कतावादियों को पाकिस्तान से आर्थिक सहयोग प्राप्त होता है। सबसे बड़ी बात यह है कि इन पृथक्कतावादियों को केंद्र और राज्य सरकारों से भी विशेष रियायतें और सुविधाएं प्राप्त होती हैं। इन विशेष रियायतों को रोकने की बजाय अब तक देखो और इंतजार करो की नीति क्यों अपनाई जा रही है। अब कुछ जगहों पर छापेमारी की जा रही है लेकिन इस बात को लेकर अब भी गहरी अनिश्चितता है कि इस कवायद से क्या हाथ आने वाला है। यह सर्वविदित है कि जम्मू-कश्मीर के कुल 22 जिलों में से मात्र 5 जिलों में पृथक्कतावादी समस्या खड़ी करते हैं। इन्हें अलग-थलग कर, इनसे खास तरीके से निपटना क्यों संभव नहीं हो पा रहा है। पूरे भारत में पृथक्कतावादी शिक्षा, स्वास्थ्य और वित्तीय सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं लेकिन भारतीय नागरिकों को राज्य में पैर रखने देना क्यों नहीं चाहते। विस्थापित कश्मीरी भी अपने राज्य में नहीं लौट पा रहे हैं। शिया भी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं और सरकार की तरफ से उन्हें विश्वास में लेने का कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। गृहमंत्री के इस दावे को लेकर कोई संदेह नहीं है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान की तरफ से होने वाली घुसपैठ में 45 प्रतिशत की कमी आई है। उत्तर भारत को लेकर भी वह दावा कर रहे हैं कि नक्सलियों का समर्पण बढ़ा है और स्थितियां सुधरी हैं। आंकड़ों की दृष्टि से प्रगति होने के बावजूद, जमीनी स्तर पर सुरक्षा बलों के बड़ी संख्या में हताहत होने और बलात्कारों की बढ़ती संख्या के कारण गहरी निराशा महसूस होती है। काफी हीला-हवाली के बाद अंततः सरकार अब पृथक्कतावादियों पर शिकंजा कसती हुई नजर आ रही है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि सुरक्षा से जुडे़ हुई कदम उठाने के तमाम अधिकार राज्य सरकार के अधीन आते हैं, लेकिन केंद्र सरकार के पास भी हस्तक्षेप करने की भूमिका और जिम्मेदारी है। अब हम नीतियों और योजनाओं की कमियों पर नजर डालते हैं। योजना आयोग को भंग करना सही दिशा में उठाया गया कदम था क्योंकि उदारीकरण के बाद यह निरर्थक जैसी हो गई थी। यह समाजवादी शासन व्यवस्था और कंद्रीय नियंत्रण पद्धति का अवशेष है। इसकी जगह अस्तित्व में आए नीति आयोग ने अर्थव्यवस्था में कोई खास उत्साह नहीं पैदा किया है और न ही अर्थव्यवस्था को नई दिशा देने के लिए कोई खास बौद्धिक निवेश किया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि स्वच्छ भारत और मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं के जरिए प्रधानमंत्री ने सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में नई ऊर्जा पैदा की है। विमुद्रीकरण की लड़ाई भी अकेले प्रधानमंत्री और उनके कुछ खास सलाहकारों की लड़ाई थी। रोजगार देने संबंधी अपेक्षाएं अभी तक पूरी नहीं हो पाई हैं, हालांकि इससे जुड़ी अनेक परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। संविधान में बदलाव कर वस्तु एंव सेवाकर विधेयक का पास होना सरकार की असाधारण उपलब्धि है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि वित्त मंत्री से जुड़ी हुई है। हो सकता है इसके कारण अंततः रोजगार पर विपरीत प्रभाव पड़े और यह बढ़ने की बजाय घटे। अभी इसका क्रियान्वयन किया जाना बाकी है और निष्कर्षों से ही यह पता चल पाएगा कि इसके कारण नई परियोजनाएं अथवा कंपनियां खड़ी हुई हैं अथवा नहीं। समस्या यह है कि अब भी सरकार नौकरशाही पर निर्भर है और कोई वैकल्पिक व्यवस्था खड़ी नहीं कर सकी है।  नीति आयोग को योजना आयोग का प्रतिबिंब नहीं बनना चाहिए, बल्कि इसे शीर्ष स्तरीय सलाहकारों और ऐसे स्टाफ के समूह के रूप में काम करना चाहिए, जो विचारों को यथार्थ में तबदील कर सके। मोदी के पास एक बहुत उर्वर दिमाग है, जो अनेकों विचारों को जन्म देता है लेकिन यहां पर उन्हें एक ऐसी व्यवस्था की जरूरत है, जो इन विचारों को धरातल पर उतार सके। यदि हम निजी क्षेत्र में रोजगार सृजित करना चाहते हैं तो हमें निजी क्षेत्र के नीति-निर्माण संबंधी योग्यता का भी लाभ उठाना पड़ेगा। रोजगार सृजित करने वाली व्यवस्था के त्वरित निर्माण और बेरोजगारी नियंत्रित करने की अक्षमता की स्थिति में बाजार के भीतर संरक्षणवादी भाव पैदा करेगा, हालांकि अभी तक बाजार ने बहुत अच्छी प्रतिक्रिया दिखाई है। पर्यटन और निर्यात क्षेत्र का भी विस्तार किया जा सकता है लेकिन ऐसा करने के लिए अधोसंरचना का विकास आवश्यक है और हम जानते हैं कि यह समय लेता है। गैर निष्पादित परिसंपत्तियों का मामला हल करने में बैंकों को वर्षों लग सकते है। निजी निवेशकों की निवेश दर भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। इसके कारण विनिर्माण क्षेत्र और नई व्यापारिक गतिविधियों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। पिछली तिमाही में विनिर्माण क्षेत्र में आई गिरावट के कारण आशाओं को धक्का लगा है। यद्यपि अब भी देश 7 प्रतिशत की गति से विकास करने की आशा की जा सकती है और कृषि फिर से अर्थव्यवस्था का तारणहार बन सकती है।

बस स्टैंड

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