भविष्य का उपभोग करते हम

By: Jun 8th, 2017 12:05 am

पीके खुरानापीके खुराना

लेखक, वरिष्ठ जनसंपर्क सलाहकार और विचारक हैं

नुकसान सिर्फ तापमान की बढ़ोतरी तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका व्यापक प्रभाव है। हम जैसे- जैसे प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं वैसे-वैसे अस्थाई सुविधा, थोड़े से स्वाद, समय की बचत आदि के नाम पर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। हमारी इन गलतियों के कारण हम जल्दी बीमार होंगे, ज्यादा बीमार होंगे, हमारे शरीर की सुरक्षा प्रणाली बेकार हो जाएगी, मोटापा बढ़ेगा, कमजोरी बढ़ेगी, दिल के दौरे बढ़ेंगे, सुविधा होगी पर सेहत नहीं होगी, स्वाद नहीं होगा। जीवन होगा लेकिन जीवंतता नहीं होगी…

अप्रैल के अंतिम सप्ताह में खबर आई कि मौसम विभाग ने केरल में पहली बार लू की चेतावनी दी है। यह चेतावनी केरल तथा दक्षिणी कर्नाटक के अंदरूनी भागों के निवासियों को दी गई। गत माह लोगों को कहा गया कि सवेरे 10 बजे से शाम 5 बजे तक धूप में न निकलें। प्रदेश में सामान्य से ज्यादा तापमान रिकार्ड किए जाने के बाद यह चेतावनी जारी की गई। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक पोस्ट चल रही है जिसमें देश के विभिन्न शहरों के तापमान की जानकारी दी गई है। सभी जगह तापमान सामान्य से अधिक है। कई शहरों में तो तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से एक-दो डिग्री ही कम है।  इस पोस्ट में जो कहा गया है उसका लब्बोलुआब यह है कि बढ़ती आबादी और आधुनिकीकरण के चक्कर में हम प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं और अपने लिए मुसीबत मोल ले रहे हैं। हम सड़कें चौड़ी कर रहे हैं और इस प्रक्रिया में सैकड़ों पेड़ों की बलि दे रहे हैं। हम ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं बना रहे हैं जो हवा के बहाव को रोक रही हैं। हम पहाड़ों को काट रहे हैं, पेड़ काट रहे हैं और पहाड़ों को खोखला कर रहे हैं। आधुनिकीकरण की हमारी सारी आदतें और आवश्यकताएं मिल कर आग में घी का काम कर रही हैं। परिवहन बढ़ रहा है, गाडि़यां बढ़ रही हैं, नये राजमार्ग बन रहे हैं, पुरानी सड़कें चौड़ी हो रही हैं। अनुमान यह है कि पिछले दस सालों में हमने 10 करोड़ पेड़ों की हत्या की है जबकि नए पेड़ इतने कम लगे हैं कि इस बड़े नुकसान की भरपाई के बारे में कुछ भी सोचा ही नहीं गया। ठेकेदार जंगल के जंगल काट देते हैं, फिर अपना अपराध छिपाने के लिए जंगल में आग लगा देते हैं। इस प्रकार प्रकृति का दोहरा नुक सान होता है।

बढ़ती गाडि़यों को ज्यादा पार्किंग स्पेस चाहिए, जिससे घरों के आंगन में लगे पेड़-पौधे कट रहे हैं और वे पक्के फर्श में तबदील हो रहे हैं। एयर कंडीशनर लगातार चल रहे हैं, फैक्ट्रियों से निकली दूषित गैस वातावरण को गंदला कर रही है जिससे प्रदूषण बढ़ रहा है। हमारी सारी नई आदतें प्रकृति के विरुद्ध जा रही हैं। प्लास्टिक की बोतलों में पानी, डिस्पोज़ेबल कप में चाय-काफी, डिस्पोज़ेबल प्लेट में खाना, और उसमें भी जंक फूड, हमें बर्बाद कर रहा है। यही कारण है कि आज हम कई तरह के प्रदूषण से जूझ रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि के अतिरिक्त रासायनिक कचरा, कार्बन का उत्सर्जन आदि बड़़ी समस्याएं हमारे सामने मुंह बाए खड़ी हैं। शेविंग क्रीम की जगह बिना ब्रश वाली शेविंग जेल का प्रयोग, एयर कंडीशनर का लगातार प्रयोग, कोलतार की सड़कों से निकलती गर्मी, पेड़ों के कटान से उबलता वातावरण, खेती में नई तकनीक के कारण वातावरण का नुकसान आदि ऐसे कारण हैं जो मिल-जुल कर वातावरण को गर्म कर रहे हैं। यह ग्लोबल वार्मिंग नहीं है, ग्लोबल वार्निंग है, मानव समाज के लिए वैश्विक चेतावनी है कि या तो संभल जाओ या फिर जल्दी ही और ज्यादा गर्मी में झुलस जाने के लिए तैयार रहो। क्या होगा जब तापमान 50 डिग्री से भी बढ़ जाएगा? क्या होगा जब हमारा पंखा घूमेगा पर वह और ज़्यादा गर्मी फैलाएगा ? क्या होगा जब हमारा एयर कंडीशनर तापमान आवश्यकता से अधिक बढ़ जाने के कारण सजावट की वस्तु बन कर रह जाएगा? हम कब तक प्रकृति का बलात्कार करते रहेंगे? हम कब तक पहाड़ काट-काट कर नये चमकदार भवन बनाते रहेंगे।

इन सबसे होने वाला नुकसान सिर्फ तापमान की बढ़ोतरी तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका व्यापक प्रभाव है। हम जैसे- जैसे प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं वैसे-वैसे अस्थाई सुविधा, थोड़े से स्वाद, समय की बचत आदि के नाम पर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। हमारी इन गलतियों के कारण हम जल्दी बीमार होंगे, ज्यादा बीमार होंगे, हमारे शरीर की सुरक्षा प्रणाली बेकार हो जाएगी, मोटापा बढ़ेगा, कमजोरी बढ़ेगी, दिल के दौरे बढ़ेंगे, सुविधा होगी पर सेहत नहीं होगी, स्वाद नहीं होगा। जीवन होगा लेकिन जीवंतता नहीं होगी। हम अपनी आने वाली पीढि़यों को ऐसे गर्त में धकेल रहे हैं कि उनके लिए इस दुष्चक्र से निकलना ही मुश्किल हो जाएगा।  यह कोई ऐसी समस्या नहीं है जिसके हल के लिए हम कल तक का इंतजार कर सकते हैं। यह ऐसी समस्या है जिसके समाधान के लिए हमें तुरंत प्रयत्न आरंभ करने होंगे। यह एक वैश्विक समस्या है, संपूर्ण मानवता की समस्या है, और इसे इसी गंभीरता से स्वीकार किया जाना चाहिए। केरल में पहली बार गर्मी की ऐसी मार पड़ी जिसने कई जानें ले लीं। कल यह अन्य प्रदेशों में भी होगा और रोग बढ़ता चला जाएगा। हमारे बच्चे मोटापे का शिकार होते जा रहे हैं। जंक फूड का शौक, व्यायाम की कमी, अनिश्चित दिनचर्या, नींद का कोई निश्चित समय न होना, यानी असमय खाना और असमय सोना ऐसी समस्याएं हैं जिनसे कई बीमारियां पैदा होती हैं। छोटी से छोटी दूरी तय करने के लिए भी कार का प्रयोग हमारा सबसे बड़ा मजाक है। परंतु यह मजाक हम खुद के साथ कर रहे हैं। अब हमें एक ऐसे आंदोलन की आवश्यकता है, जिसमें देश का हर नागरिक जागरूक हो और हम प्रकृति के नियमों को समझें, प्रकृति की आवश्यकताओं को समझें, प्रकृति की सीमाओं को समझें। ऐसा किए बिना हम प्रकृति का सम्मान नहीं कर सकते। अब हमें प्रकृति का सम्मान करना होगा, प्रकृति के अनुसार चलना होगा। हर नागरिक को पेड़ लगाने होंगे, उनकी रक्षा करनी होगी, उन्हें बढ़ने देना होगा डिस्पोज़ेबल पैकेजिंग से बचना होगा, जंक फूड के स्वाद को नकारना होगा, पैदल और साइकिल पर चलने की आदत फिर से सीखनी होगी, तभी हम स्वस्थ जीवन जी पाएंगे और अपनी आने वाली पीढि़यों के लिए स्वास्थ्य की विरासत छोड़ सकेंगे।

इसी महीने हम विश्व योग दिवस मनाएंगे। यह एक अच्छा आंदोलन है। एक दिन का दिखावा भी धीरे-धीरे नई आदत में ढल सकता है। चुनाव हमें करना है। हम स्वस्थ जीवन चाहते हैं या रंग-बिरंगी  सुविधाओं वाला ऐसा जीवन जो अंततः बेरंग हो जाता है। प्रकृति हमें बार-बार चेतावनी दे रही है। उत्तराखंड की बाढ़, केरल की गर्मी, कभी सूखा, कभी बारिश, आंधी, तूफान। बादलों का फटना, भूकंप, सुनामी, कटरीना आदि प्रकृति की चेतावनियां हैं। प्रकृति हमें बार-बार संभलने को कह रही है। हम नहीं संभलेंगे तो यह साल तो कट जाएगा, शायद अगले कुछ साल भी कट जाएं, शायद विज्ञान की तरक्की के कारण हमारे एयरकंडीशनर कुछ और देर तक उपयोगी बने रहेंगे लेकिन अंततः विज्ञान छोटा पड़ जाएगा और प्रकृति अपना बदला ले लेगी। फिर हम असहाय होंगे, बौने पड़ जाएंगे, इसलिए प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद होना चाहिए। हर उत्सव को प्रकृति के अनुसार ढालना होगा। प्रकृति के विनाश के बजाय प्रकृति के संरक्षण की ओर ध्यान देना होगा ताकि जीवन रहे, जीवतंता रहे, हरियाली हो, खुशहाली हो। आशा करनी चाहिए कि शासन, प्रशासन, समाज और सब नागरिक इसे समझेंगे और समस्या के निदान के लिए अपना योगादन देंगे। इसी में हमारी भलाई है, समाज की भलाई है। आमीन !

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