शब्द वृत्ति

By: Jun 9th, 2017 12:01 am

मौत का कुआं

(डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर )

यह कैसा जादू हुआ, स्वयं देख लें आप,

गिरी कुएं में मौत के, उजमा निकली साफ।

उजमा निकली साफ, आप क्या समझे भाई,

कहीं मौत का कुआं, कहीं थी गहरी खाई।

जिंदा आई नरक से, वाह खुदा की शान,

सुषमा दी ने डाल दी, मृत शरीर में जान।

बेटी है वह देश की, निकल चुकी अब फांस,

खुली वायु में ले रही, आजादी की सांस।

सबसे अछा देश में, देखा भारत देश,

बेटी जो है देश की, लौटी अपने देश।

रोता आया नवाज

बनता बड़ा शरीफ है, रोता आज नवाज,

देख आज यह क्या हुआ, उठी भयंकर पीड़

हांफ रहा है, लग गई, अब हकीम की भीड़।

गिर पड़ा संडास में, फूल रही है सांस,

बेगम आंसू ढारती, पास आ गए खास।

आज बांवरे हो गए, क्या अब्दुल क्या पाक,

मलिक गिलानी की अब तो, कटी समूची नाक।

बुरी तरह कुचले गए, सब वानी के यार,

दहशतगर्द गिर पड़े, खपा पड़ा सबजार।

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